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Krishna Janmashtami: 5248 वर्ष के हुए ब्रज के लाडले कृष्ण कन्हाई, देखें मुरलीवाले के जन्मोत्सव की धूम

भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव हर साल भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म इसी तिथि को रोहिणी नक्षत्र, वृष राशि में हुआ था। इस साल कृष्ण जन्माष्टमी 19 अगस्त को मनाई जाएगी। इस बार यह भगवान श्रीकृष्ण का 5249वां जन्मोत्सव होगा। यानि ब्रज के लाडले कृष्ण कन्हाई इस बार 5248 वर्ष के हो गए हैं।  भगवान कृष्ण के 5249वें वर्ष में प्रवेश करने पर जन्मोत्सव की तैयारियां व्यापक स्तर पर की जा रही हैं। ब्रज भूमि सज संवर रही है। तिराहे-चौराहों को सजाया जा रहा है। कन्हैया के जन्म के दर्शन को श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर आने वाले भक्तों के लिए व्यापक व्यवस्थाएं की जा रही हैं।

ज्योतिषाचार्य कामेश्वर चतुर्वेदी ने बताया कि द्वापर युग में मथुरा पुरी में भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को मध्य रात 12:00 बजे भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। सागर पंचांग, श्री ब्रजभूमि पंचांग, श्रीराधा गोविंद पंचांग सहित अन्य पंचांगों के आधार पर भगवान श्रीकृष्ण के जन्म को 5248 वर्ष हो गए हैं। 

ज्योतिषाचार्य कामेश्वर चतुर्वेदी ने बताया कि 5249वें वर्ष में इस बार 19 अगस्त को भगवान कृष्ण प्रवेश करेंगे। कामेश्वर चतुर्वेदी का कहना है कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विक्रम संवत 2079 पंचांगों में कलियुग की आयु 5123 वर्ष की लिखी है। उसमें 125 वर्ष पूर्व भगवान का जन्म हुआ था, इसलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर इस बार 5248 वर्ष भगवान गोविंद को हो जाएंगे।

लाडले को 5248 वर्ष का होने ब्रज में उत्साह का वातावरण है। हर तरफ तैयारियों का दौर चल रहा है। कन्हैया की नगरी को सजाया संवारा जा रहा है। खासकर श्रीकृष्ण जन्मभूमि को तो और भी भव्यता प्रदान की जा रही है। कन्हैया के जन्मोत्सव के साक्षी बनने के लिए देश-विदेश से मथुरा आ रहे भक्तों को प्रसादी की व्यवस्था में ब्रजवासी जुटे हैं। नगर निगम से भंडारा लगाने की अनुमति मांगी जा रही हैं। लोगों में अद्भुत उत्साह बना हुआ है। 

जन्माष्टमी पूजन विधि
जन्माष्ठमी के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके व्रत का संकल्प लें। माता देवकी और भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति या चित्र पालने में स्थापित करें। पूजन में देवकी,वासुदेव,बलदेव,नन्द, यशोदा आदि देवताओं के नाम जपें। रात्रि में 12 बजे के बाद श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाएं। पंचामृत से अभिषेक कराकर भगवान को नए वस्त्र अर्पित करें एवं लड्डू गोपाल को झूला झुलाएं। पंचामृत में तुलसी डालकर माखन-मिश्री व धनिये की पंजीरी का भोग लगाएं तत्पश्चात आरती करके प्रसाद को भक्तजनों में वितरित करें।

जन्माष्टमी तिथि का महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु जी ने धर्म की स्थापना के लिए श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया था। इस दिन व्रत धारण कर श्रीकृष्ण का स्मरण करना अत्यंत फलदाई होता है। शास्त्रों में जन्माष्ठमी के व्रत को व्रतराज कहा गया है। भविष्य पुराण में इस व्रत के सन्दर्भ में उल्लेख है कि जिस घर में यह देवकी-व्रत किया जाता है वहां अकाल मृत्यु,गर्भपात,वैधव्य,दुर्भाग्य तथा कलह नहीं होती। जो एक बार भी इस व्रत को करता है वह संसार के सभी सुखों को भोगकर विष्णुलोक में निवास करता है।