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Ghazipur News: सरजू पांडेय जिन्होंने ब्रिटिश काल में ‘फूंक’ दी थी कोतवाली, जज के सामने खुशी से कुबूले थे आरोप

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गाजीपुर : 5 अगस्त 1942 को सरजू पांडेय के नेतृत्व में आम लोगों ने कासिमाबाद कोतवाली को आग के हवाले कर दिया था। इसके साथ ही ब्रिटिश पुलिस के असलहों को लूट लिया था। इस घटना के बाद पांडेय ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपो को ब्रिटिश जज के सामने सहर्ष स्वीकार किया था। सरजू पांडेय आज़ादी के बाद में गाजीपुर के कई बार सांसद निर्वाचित हुए। उस दौर में सरजू पांडेय से प्रेरित होकर कई युवाओं ने आज़ादी के आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था।

5 अगस्त 1942 को पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ माहौल अपने चरम पर था। सरजू पांडेय की अगुवाई में कई गांवों से जुटे नौजवानों की टोली एक साथ ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज़ बुलंद करते हुए कासिमाबाद कोतवाली की ओर निकल पड़ी। जैसे-जैसे लोगों का काफिला आगे बढ़ने लगा, भीड़ में अन्य लोग भी शामिल होने लगे। भीड़ जब कासिमाबाद कोतवाली पहुंची तो आज़ादी के दीवानों ने कोतवाली को आग के हवाले कर दिया। कोतवाली पर तैनात ब्रिटिश पुलिस के जवानों को इस बात की पहले से कोई भनक नहीं थी। वह कोतवाली से जान बचाकर भाग खड़े हुए। इस आगजनी में ब्रिटिश सरकार ने 51 लोगों को दोषी करार दिया। इन सब में से सरजू पांडेय ने अपने ऊपर लगे आरोपों को जज के सामने बेबाकी से स्वीकार किया। जिसके बाद उन्हें लंबे अरसे तक जेल में रहना पड़ा था।

सरजू पांडेय का जन्म 19 नवंबर 1917 को कासिमाबाद थाना के गांव उरहा में हुआ था। बचपन से ही वह सामंती व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठाते रहे। साल 1936 में वह कांग्रेस कौमी सेवादल में शामिल होने के बाद आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े। 1940 से लेकर 1946 तक पांडेय को आजादी के आंदोलन से जुड़ी गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल होने के कारण कई दफा जेल की सजा हुई।

1946 में जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की बागडोर संभाली और जिला इकाई का गठन किया। लंबे समय तक कम्युनिस्ट पार्टी में सक्रिय रहते हुए सरजू पांडेय ने 1957 के चुनावों में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करके सबको अचंभित कर दिया था। यह वह दौर था जब हर ओर कांग्रेस की लहर थी। तब लोकसभा और विधानसभा के चुनाव के साथ होते थे। सरजू पांडेय को नेहरू कैबिनेट में शामिल होने का प्रस्ताव भी मिला था जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था। कामरेड पांडेय का नाम अत्याचार और गरीब मजलूमों की आवाज उठाने के लिए आज भी जाना जाता है। उनका देहावसान 25 अगस्त 1989 को रूस में इलाज के दौरान हुआ था।
इनपुट: अमितेश कुमार सिंह