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Uttar Pradesh BJP Politics: केशव मौर्य, सुनील बंसल और धर्मपाल, यूपी के इन 3 चेहरों से BJP ने कैसे चल दी बड़ी सियासी चाल, समझिए

लखनऊ : उत्‍तर प्रदेश भाजपा में बुधवार को सदन से लेकर संगठन तक के हुए बदलावों में कुछ की आहट बहुत पहले से थी। नजरें इस पर गड़ी थीं कि स्वरूप क्या होगा? विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद से ही अलग-अलग भूमिकाओं को लेकर बहसें भी थी और कयास भी। पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रमों ने भी इस कहानी की दिशा तय की है। सुनील बंसल की राष्ट्रीय भूमिका, केशव मौर्य का कद बढ़ाए जाने के साथ ही स्वतंत्रदेव को लगे झटके के निहितार्थ शक्ति के ‘संतुलन’ में भी तलाशे जा रहे हैं।

विधान परिषद के सभापति मानवेंद्र सिंह का कहना है कि स्वतंत्रदेव ने व्यस्तता का हवाला देकर सदन के नेता के पद से इस्तीफा दिया है। हालांकि जलशक्ति मंत्री स्वतंत्रदेव का भाजपा के अध्यक्ष के तौर पर भी कार्यकाल खत्म हो चुका है और उनकी जगह नया चेहरा चुना जाना तय है। हाल में ही उन्होंने अपने राज्यमंत्रियों को भी काम-काज बांट दिया है। सूत्रों का कहना है कि परिषद के पहले सत्र के दौरान सदन में विपक्ष के सवालों को लेकर नेता सदन से जिस आक्रामकता व तथ्यपरकता की उम्मीद थी, वह पूरी होती नहीं दिखी थी। जलशक्ति राज्यमंत्री दिनेश खटीक के वायरल ‘इस्तीफे’ के मजमून के बाद से ही स्वतंत्रदेव राष्ट्रीय नेतृत्व की निगाह में ‘खटक’ गए थे। खासतौर पर विभाग पर भ्रष्टाचार व संवादहीनता के आरोप असहज करने वाले थे। इसी बीच उनके अध्यक्ष पद से इस्तीफा सौंपने की चर्चाएं भी उड़ीं, जिसका स्वतंत्रदेव ने कभी खुलकर खंडन नहीं किया। इन विवादों के बीच यह नया घटनाक्रम उनके कद व साख के लिए झटके के तौर पर देखा जा रहा है।

तो ‘प्राथमिकता’ में बने हैं केशव
सरकार के पहले कार्यकाल में शीर्ष स्तर पर मनमुटाव की चर्चाओं के बीच केशव प्रसाद मौर्य सिराथू से विधानसभा चुनाव हार गए थे। बावजूद इसके पार्टी ने उन्हें डिप्टी सीएम बनाया, लेकिन विभाग बदल गया। विधान परिषद में उनकी मौजूदगी के बाद भी स्वतंत्रदेव को नेता सदन बनाना भी केशव के घटते कद के तौर पर देखा गया। हालांकि, संगठन के अहम कार्यक्रमों, बैठकों का हिस्सा होने के साथ ही महत्वपूर्ण मुद्दों पर केशव मुखर रहे। विधानसभा में सपा मुखिया अखिलेश यादव के साथ व्यक्तिगत आरोपों-प्रत्यारोपों को भी पार्टी ने पिछड़े कार्ड से जोड़ा। भाजपा की चुनावी राजनीति में अति-पिछड़े वोट अहम हैं, और केशव भी उस कड़ी से जुड़ते हैं। इसलिए, सदन के गठन के कुछ ही महीनों के भीतर उन्हें नेता सदन बनाकर भाजपा ने यह संदेश दिया है कि केशव प्राथमिकता में बने हुए हैं। बीच में उन्हें संगठन में अहम भूमिका दिए जाने तक के कयास लगाए जाने लगे थे, लेकिन नई भूमिका इशारा है कि फिलहाल वह जहां हैं, वहीं बने रहेंगे।

धर्मपाल से संगठन व समीकरण दोनों सधेंगे?
यूपी में सुनील बंसल की जगह धर्मपाल के आने की चर्चाएं पहले से थीं। लेकिन पेच बंसल की ही भूमिका को लेकर फंसा हुआ था। सूत्रों का कहना है कि धर्मपाल को संगठन महामंत्री बनाए जाने के पीछे दोहरी वजहें हैं। यूपी में उन्होंने करीब ढाई दशक तक जमीन पर काम किया है, इसलिए वह यहां की राजनीतिक गणित व सामाजिक रसायन दोनों ही समझते हैं। पार्टी की नजर नए नेतृत्व गढ़ने पर है और एबीवीपी से निकले धर्मपाल इस लक्ष्य को ठीक से समझते हैं। 2024 के चुनाव को लेकर पार्टी ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। बिहार व महाराष्ट्र के घटनाक्रमों के बीच वहां एकजुट विपक्ष के खतरों को देखते हुए यूपी ही 2024 का सबसे बड़ा खेवनहार है। इसलिए यहां किसी ऐसे व्यक्ति को संगठन की धुरी नहीं बनाया जा सकता था, जिसको आकर प्रदेश को समझना पड़े। यूं तो संघ के पदाधिकारी जातीय खांचे से मुक्त माने जाते हैं लेकिन, जब राष्ट्रपति तक से जातीय गणित सधती है, तो संगठन मंत्री से भी सामाजिक समीकरण के संदेश स्वाभाविक हैं। धर्मपाल सैनी बिरादरी के हैं और वेस्ट यूपी की सियासत में इस बिरादरी का बड़ा असर है। ऐसे में पार्टी के पिछड़े वोटों के समीकरण साधने में भी काम आ सकते हैं। हालांकि पिछले 8 सालों में सुनील बंसल की धमक ने संगठन मंत्री के पद को जितना ‘चर्चित’ बनाया है, उन अपेक्षाओं, नियंत्रण और संतुलन को साधना भी चुनौती होगी।

बंसल की नई भूमिका में भविष्य के संकेत?
पिछले कुछ महीनों में यूपी भाजपा की सियासत में सबसे चर्चित सवाल यही थी कि सुनील बंसल का अब आगे क्या होगा? खासतौर पर प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक उनको लेकर जिस तरह के पक्ष-विपक्ष हैं, उनकी नई जगह को लेकर कई तरह के दावे थे। जिन राज्यों को उन्हें प्रभारी बनाया गया है। उनमें ही कुछ के उनके संगठन मंत्री बनाए जाने की चर्चा थी। लंबी जद्दोजहद के बीच जो भूमिका तय हुई है, उसकी उम्मीद शायद ही किसी को थी। सुनील बंसल राष्ट्रीय महामंत्री के तौर पर संघ की जगह अब पूरी तरह से भाजपा के हैं। अब वह पर्दे के पीछे न रहकर खुलकर खेलेंगे। उनके साथ यूपी की सफलता है और अमित शाह का समर्थन। पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और तेलंगाना की कठिन पिच को अगर वह भाजपा के मनमाफिक बनाने में सफल हो गए तो उनके लिए नई राजनीतिक भूमिकाओं के लिए भी स्पेस बनेंगे। सूत्रों का कहना है कि बंसल भले ही यूपी से चले गए हैं, लेकिन, यहां की नीति व रणनीति में आगे भी उनका दखल दिख सकता है। अगले साल दिसंबर में तेलंगाना का विधानसभा चुनाव है। उसके बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रभारी, सह प्रभारी या अन्य रणनीतिक भूमिका में भी बंसल को यूपी में लगाए जाने के आसार हैं।

अब नजर अध्यक्ष की कुर्सी पर
बदलावों के बीच अभी भी यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है कि भाजपा का अगला अध्यक्ष कौन होगा? सदन से लेकर संगठन तक जिस तरह से पिछड़ों को साधा गया है उसमें कयास यही लगाए जा रहे हैं कि अध्यक्ष की कुर्सी पर कोई अगड़ा या दलित बैठाया जा सकता है। हालांकि, सबसे अधिक चर्चा केंद्र में मंत्री एक अति पिछड़े व एक दलित चेहरे की है। हालांकि, कानपुर क्षेत्र से लेकर पूर्वांचल तक के कुछ ब्राह्मण चेहरों के नाम भी सत्ता के गलियारों में गूंज रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि इसी सप्ताह इस पर भी धुंधलका छंट जाएगा।

कौन हैं धर्मपाल सिंह
– बिजनौर के नगीना के रहने वाले हैं, संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता हैं
– मैकेनिकल इंजिनियरिंग की पढ़ाई है।
– 1990 से संघ के छात्र संगठन एबीवीपी से जुड़े
– एबीवीपी में उत्तराखंड, ब्रज, पश्चिम व पूर्वी यूपी के संगठन मंत्री रहे
– 2010 से 2017 तक पूर्वी व पश्चिमी क्षेत्र के संयुक्त क्षेत्र संगठन मंत्री रहे
– 2017 में झारखंड में भाजपा का प्रदेश संगठन महामंत्री बनाया गया
– बिहार, असम एवं यूपी के चुनावों में भी अलग- अलग क्षेत्रों की जिम्मेदारी रही