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11-8-2022
कई बार वस्तु अपनी होते हुए भी जब तक आप उसपर अपना अधिकार व्यक्त नहीं करते, तब तक कोई आपका प्रभुत्व उसपर स्वीकार नहीं करता. ऐसा ही कुछ भारत के साथ हिंद महासागर में हुआ. हिन्द महासागर जो कि हमेशा से भारत का था, है, और रहेगा वहां कभी भारत ने उस तरह से अपना दावा नहीं किया जिस तरह से चीन दक्षिण चीन सागर में करता है. यही कारण था कि भारत के ही समुद्र में आकर चीन, अमेरिका और पाकिस्तान जैसे देश भारत को ही धमकाने का प्रयास करते रहें लेकिन अब स्थिति बदल गई है. ‘भारत एक शांति प्रिय देश है ये तो पूरी दुनिया ने देखा, पर हम शांति के लिए अपनी शक्ति का भी प्रदर्शन कर सकते हैं.Ó ये शब्द हैं पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय पं. अटल विहारी वाजपेयी के और पहली बार भारत हिंद महासागर क्षेत्र में इस सिद्धांत का पालन कर रहा है. इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे हिंद महासागर में भारत अपनी पकड़ को मजबूत करने में लगा हुआ है.
वर्ष 1971 में, जब भारत ने सोवियत संघ के साथ एक ‘शांति और मित्रताÓ संधि पर हस्ताक्षर किए थे. यह संधि ही भारत और रूस के मजबूत रिश्तों की प्रारंभ बिन्दु थी. पाकिस्तान से आज़ादी पाने के लिए बांग्लादेश संघर्ष कर रहा था. उस संघर्ष के दौरन भारत की तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी ने 27 मार्च 1971 को निर्णय लिया कि भारत पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के लोगों के स्वतंत्रता संग्राम में पूर्ण समर्थन देगा क्योंकि उन्हें यह भारी मात्रा में आने वाले शरणार्थियों को भारत में लेने से बेहतर विकल्प लगा. हालांकि, यह बात अलग है कि आज भी बांग्लादेश से कई घुसपैठिये भारत में आये दिन घुसते रहते हैं.
श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर निर्माण कार्य में चीन ने भारी निवेश किया था और इस समय वह बंदरगाह श्रीलंका ने चीन को लीज़ पर दिया है. लेकिन श्रीलंका पिछले कुछ महीनों में यह भी भली भांति समझ गया है कि यदि आज भी उसके लोग जीवित हैं और उनके पास पेट भरने के लिए अन्न की व्यवस्था हो रही है तो इसका कारण भारत ही है. चीन ने तो उन्हें कर्जजाल में ऐसा जकड़ा है कि वे बर्बादी की कगार पर हैं लेकिन इस समय भारत उनके लिए प्राणवायु से कम नहीं है.
ऐसे में श्रीलंका भी आखिरकार समझ गया है कि यदि इस बार उसने भारत को धोखा दिया तो यह न केवल अपने सहायक की पीठ में छुरा घोंपने जैसा होगा और अपने पैर पर ही कुल्हाड़ी मारने जैसा भी होगा. यही कारण है कि श्रीलंका के पीएम रानिल विक्रमसिंघे ने भी भारत को आश्वासन दिया है कि जहाज निर्धारित समय पर नहीं आएगा. जहां एक तरफ चीनी जहाज़ को रोक दिया गया वहीं दूसरी तरफ एक अमेरिकी जहाज़ ने “मरम्मत और रखरखाव” कार्य कराने के लिए भारतीय बंदरगाह में डॉक किया है जो भारत की तकनीकी दक्षता और भारत के कद को दर्शाता है. इसके साथ ही इससे भारत और अमेरिका के रिश्ते की प्रगाढ़ता भी उजागर होती है.
इसके अलावा रूस-यूक्रेन युद्ध के मध्य जब पूरे पाश्चात्य जगत ने रूस पर प्रतिबंध लगा दिए हैं, ऐसे समय में भारत उससे तेल खरीद रहा है और व्यापार कर रहा है. अमेरिका यदि आज भी 50 वर्षों पूर्व वाला ‘अमेरिकाÓ होता तो भारत पर नाराजग़ी दिखाता और कई तरह के प्रतिबंध भी लगा देता लेकिन इसके ठीक विपरीत अमेरिका, भारत से मजबूत रिश्ते चाहता है. श्रीलंका, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश अब भारत के साथ खड़े हैं और भारत का पलड़ा भारी हो चला है. इसी के कारण आज भारत पूरे जोश और ताकत के साथ हिंद महासागर में नियंत्रण की रस्सियां खींच रहा है क्योंकि देश जानता है कि जिन्हें सबसे अधिक आपत्ति हो सकती है वे पहले ही हमारे साथ खड़े हो गए है. हिन्द महासागर का सही मालिक होते हुए भी कभी अपने अधिकार का इस्तेमाल न करने के कारण जो शक्ति फीकी पड़ गयी थी अब भारत उसे जगा रहा है और हिंद महासागर में आने वाले अपने विशेष हिस्सों में अपनी प्रधानता का दावा कर रहा है।
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