मथुरा: मथुरा के जेल में भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप लड्डू गोपाल की पोशाक का निर्माण किया जाएगा। मथुरा में ही कंस के कारागृह में भगवान श्रीकृष्ण माता देवकी की संतान के रूप में जन्म लिए थे। अब मथुरा जेल एक बार फिर चर्चा में यहां पर बनने वाले लड्डू गोपाल की पोशाक को लेकर है। इसमें सबसे अहम बात तो यह है कि इन पोशाकों को मुस्लिम कारीगरों ने डिजाइन किया है। इसे हर जगह सराहना मिली है। इसके बाद जेल प्रशासन को भगवान श्रीकृष्ण की मूर्तियों के लिए विभिन्न पोशाकों के पांच हजार पीस का ऑर्डर मिला है। यह अब तक का सबसे बड़ा ऑर्डर है। भगवान श्रीकृष्ण के ड्रेस को तीन मुस्लिम कैदियों ने दो अन्य हिंदू दर्जी की सहायता से तैयार किया। इसकी बाजार में खूब सराहना मिली है।
मथुरा के जेल अधीक्षक बृजेश कुमार ने कहा कि प्रदेश में एक मात्र मथुरा जेल में ही भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप के लिए लड्डू गोपाल पोशाक और कांठी माला हार का निर्माण किया जाता है। राज्य सरकार की ओर से एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत इसका चयन किया गया है। इस पोशाक के निर्माण के लिए हत्या के दोषी 30 वर्षीय मोहम्मद इरशाद के नेतृत्व में इस ड्रेस का निर्माण किया जाता है। टीम के दो अन्य सदस्य 42 वर्षीय सेजी और 28 वर्षीय तसनीम भी हत्या के मामलों में आरोपी हैं। ये तीनों दो अन्य हिंदू दर्जियों की मदद से पोशाक तैयार करते हैं।
प्रेमिका की हत्या के मामले में जेल में बंद है इरशाद
लड्डू गोपाल ड्रेस का निर्माण करने वाला मुख्य कारीगर इरशाद की हत्या के मामले में दोषी करार दिया गया है। उसने अपनी प्रेमिका की ही हत्या की थी। वह जिस लड़की से प्यार करता था, उसने शादी इंकार कर दिया। पहले तो उसने लड़की पर तेजाब फेंक दिया। इसके बाद लड़की की सगाई धौलपुर के एक लड़के से हो गई। इससे गुस्साए इरशाद ने लड़की की हत्या कर दी। पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था।
जेल अधिकारियों का कहना है कि सबसे पहले गाजियाबाद के निजी संस्था हरि प्रेम सोसायटी ने लड्डू गोपाल ड्रेस के 300 पीस का ऑर्डर दिया। इसे सफलतापूर्वक पूरा किया गया। एनजीओ ने उनके काम की सराहना की। बाजार से भी ड्रेस को लेकर अच्छी प्रतिक्रिया आई और संस्था को अतिरिक्त ड्रेस के ऑर्डर मिले।
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए बेचने की तैयारी
बाजार से लड्डू गोपाल ड्रेस को मिली सराहना से जेल प्रशासन काफी खुश है। जेल अधीक्षक ने कहा कि इन ड्रेस को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए भी बेचने के लिए बातचीत हो रही है। अगर डील फाइनल होती है तो ये ड्रेस फ्लिपकार्ट और अमेजन जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर भी मिल सकते हैं। उन्होंने कहा कि कैदियों को सभी सिलाई सामग्री और अन्य रसद की उपलब्धता कराई जा रही है।
कैदियों को दिया जाता है पारीश्रमिक
एनजीओ की सचिव मंजरी राठौर ने कहा कि पोशाक बनाने वाले कैदियों को उनका मेहनताना भी दिया जाता है। पोशाक के आकार के आधार पर एक रुपये से 5 रुपये प्रति पीस की दर से उन्हें भुगतान किया जाता है। उन्होंने कहा कि इन ड्रेसों की सिलाई और डिजाइन अच्छी गुणवत्ता के हैं। कोई भी यह नहीं समझ सकता कि वे थे कैदियों द्वारा किया जा रहा है।
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