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Editorial: सिंधु जल संधि से भारत चलाए ‘ब्रह्मास्त्र तो  तरसेगा पाकिस्तान

28-5-2022

जैसी करनी वैसी भरनी, भारत न कभी युद्ध या दुश्मनी का पक्षधर रहा है और न ही उसने पहले कभी शस्त्र उठाये हैं। यह उसके पड़ोसी देश ही हैं जो अपने कुकर्मों के बाद भी भारत से यह अपेक्षा रखते हैं कि भारत क्षमा तो कर ही देगा और संसाधनों की आपूर्ति में कोई कमी नहीं करेगा। इसी क्रम में भारत ने अपने पड़ोसी देश और उसके शत्रु पक्ष पाकिस्तान को पानी के लिए मोहताज बना देने के लिए एक्शन प्लान बना लिया है जिसके बाद पाकिस्तान पानी के लिए बिलखता तरसता रह जाएगा। निश्चित रूप से हर देश को अपनी शक्तियों और कमजोरियों के बारे में पता होना चाहिए, इसी क्रम में भारत ने इस बार आत्ममंथन करते हुए मुख्य दस्तावेजों की छानबीन की और उनमें सबसे अहम निकला “सिंधु जल संधि।”

 मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में 10 जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण पर काम कर रही है। काम पूरा होने के बाद ये परियोजनाएं संयुक्त रूप से राष्ट्र को 6.8 गीगावाट अक्षय ऊर्जा प्रदान करेंगी। यह परियोजना वर्ष 2030 के अंत तक 500 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा आधारित बिजली का उत्पादन करने के मोदी सरकार के लक्ष्य को हासिल करेगी।

 “सिंधु जल संधि” के आधार पर यह पता चला है कि कैसे, भारत विरोधी होने के कारण इसमें पाकिस्तान को पानी की आपूर्ति में कटौती करने के लिए पर्याप्त प्रावधान हैं। अब जब संधि में लिखा ही है तो एक्शन मोड़ पर आना स्वाभाविक ही था। तो चलिए अविलंब आरंभ करते हैं।

ज्ञात हो कि, पाकिस्तान भारत में रखी जा रही परियोजनाओं पर भी आपत्ति कर सकता है, वो निस्संदेह यह कहेगा कि संधि कितनी त्रुटियों से भरी हुई है। ढ्ढङ्खञ्ज के अनुसार, भारत की तीन पूर्वी नदियों- ब्यास, रावी और सतलुज नदियों में बहने वाले पानी पर नियंत्रण 33 मिलियन एकड़ फुट (रू्रस्न) के औसत प्रवाह के साथ भारत को दिया गया था और पानी पर नियंत्रण सिंधु, चिनाब और झेलम नदियों में बहने वाली 80 एमएएफ के औसत प्रवाह के साथ पाकिस्तान को दिया गया था। भारत सिंधु नदी प्रणाली द्वारा लाए गए कुल पानी का केवल 20 प्रतिशत गैर-उपभोग्य तरीके से उपयोग कर सकता है जबकि पाकिस्तान शेष 80 प्रतिशत का उपयोग करता है। हालांकि, पिछली भारतीय सरकारों ने कभी भी उस 20 प्रतिशत हिस्से का इस्तेमाल नहीं किया और पाकिस्तान को इसका पूरा उपयोग करने की अनुमति दी। इन सरकारों से और क्या ही उम्मीद की जा सकती है जो लद्दाख की उस भूमि को केवल इसलिए छोडऩे को तैयार थे क्योंकि सरकारों के मालिकों के अनुसार वो भूमि बंजर थी ऐसे में अपने हिस्से का 20 प्रतिशत पानी भी उपयोग न करना इसका साक्ष्य है कि कैसे पूर्व की सरकारें अपने हिस्से को लावारिश छोड़ दिया करती थीं फिर चाहे जमीन हो या पानी।

जीडीपी के लिए कृषि पर बहुत अधिक निर्भर है पाकिस्तान

2022 में भी, पाकिस्तान अपनी जीडीपी के लिए कृषि पर बहुत अधिक निर्भर है। कृषि का सकल घरेलू उत्पाद का 20 प्रतिशत हिस्सा है और 50 प्रतिशत पाकिस्तानियों को रोजगार प्रदान करता है। हालांकि, पाकिस्तान की वार्षिक वर्षा लगभग 240 मिली मीटर है, जो आवश्यक स्थायी स्तर 250 मिली मीटर से बहुत कम है। इसलिए इसे शुष्क देश घोषित किया गया है। पाकिस्तान के लिए आईडब्ल्यूटी के तहत उसके लिए उपलब्ध पानी का पूरी तरह से उपयोग करना आसान हो गया है। पाकिस्तान सिंचाई के लिए 93 प्रतिशत सिंधु जल का उपयोग करता है। ऐसे में यह भी अक्षम पाकिस्तानी प्रशासन के लिए काफी अच्छा साबित नहीं हो रहा है। प्रतिष्ठान उपलब्ध जल का लगभग 39 प्रतिशत ही कुशलतापूर्वक उपयोग कर सकता है। 25 मई को, पाकिस्तान के सिंधु नदी प्रणाली प्राधिकरण ने अपनी राज्य सरकारों से पानी के उपयोग में सुधार करने का आग्रह किया।

 अगर भारत अपनी परियोजनाओं का निर्माण नहीं करता है, तो भी 2025 तक पाकिस्तान की पानी की कमी आईडब्ल्यूटी के माध्यम से प्राप्त होने वाले कुल पानी का 67 प्रतिशत होगा। सीधे शब्दों में कहें तो पाकिस्तान को पहले से कहीं ज्यादा पानी की जरूरत है। अब आएगा ऊंठ पहाड़ के नीचे क्योंकि अब तक तो भारत मानवीय व्यवहार के साथ पाकिस्तान के कर्मों को नजऱअंदाज़ कर मौका देता रहता था पर अब और नहीं। पाकिस्तान अब पानी के लिए भारत पर आश्रित होगा और भारत उसे उसके आतंकी व्यवहार से प्रभावित होकर उपहार देने जा रहा है। यह पाकिस्तान की बेशर्मी की पराकाष्ठा है कि वो भारत के विनाश के सपने बुनता है और दूसरी ओर अपने देश की प्यास की पूर्ति करने के लिए अपने बाय-डिफ़ॉल्ट वालिद भारत से याचना भी करता है।