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Mathura: मुगल शासक औरंगजेब ने मथुरा का ‘इस्लामाबाद’ और वृंदावन का ‘मोमिनाबाद’ कर दिया था नाम

सार
ज्ञानवापी प्रकरण के बाद श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह का विवाद सुर्खियों में हैं। इसे लेकर इतिहासकारों के अपने-अपने दावे हैं। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि औरंगजेब न सिर्फ मंदिर तुड़वाए, बल्कि मथुरा और वृंदावन की धार्मिक पहचाने मिटाने के लिए दोनों नगरों के नाम भी बदल दिए थे। 
 

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मुगल शासक औरंगजेब ने हिंदुओं के मंदिर ही नहीं तुड़वाए, बल्कि धार्मिक नगरों के नाम तक बदल दिए थे। औरंगजेब ने मथुरा का नाम इस्लामाबाद और वृंदावन का नाम मोमिनाबाद कर दिया, लेकिन ये नए नाम शाही दस्तावजों तक ही सीमित रहे। कुछ मुगल इतिहासकारों ने भी इनका प्रयोग किया, लेकिन आम जनता ने इन नामों को न कभी प्रयोग किया न ही अपनाया।

बात 1670 ई की है, जब मुगल बादशाह औरंगजेब ने अपने शासनकाल के 13वें वर्ष में श्रीकृष्ण जन्मस्थान मथुरा के प्रसिद्ध केशव देव मंदिर को तोड़कर उस स्थान पर मस्जिद बनाने के साथ ही मथुरा और वृंदावन की सांस्कृतिक पहचान मिटाने के लिए एक आदेश और दिया। उसने मथुरा का नाम बदलकर ‘इस्लामाबाद’ और वृंदावन का नाम बदल कर ‘मोमिनाबाद’ कर दिया था। 

शाही दस्तावेजों में लिखे गए ये नाम 

यह आदेश पूरी तरह से अमल में भी लाया गया। लेकिन यह दोनों नाम साधारण आम जनता में कभी प्रचलित नहीं हो सके और केवल मुगल शाही दफ्तरों तक ही सीमित रह गए। फारसी दस्तावेजों में एक लंबे समय तक मथुरा के लिए ‘इस्लामाबाद’ और वृंदावन के लिए ‘मोमिनाबाद’ नाम लिखने की परंपरा चलती रही। इतिहासकार लक्ष्मी नारायण तिवारी बताते हैं कि 18वीं सदी के मध्य में जब मथुरा-वृंदावन जाट शासकों के अधिकार में आए तो उन्होंने सिक्के ढालने के लिए मथुरा और वृंदावन में अपनी टकसालें स्थापित कीं। 

उस वक्त सिक्के मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय के नाम पर ही जारी किए गए। सिक्कों पर भी फारसी में मथुरा टकसाल के नाम पर ‘इस्लामाबाद’ और वृंदावन टकसाल के नाम पर ‘मोमिनाबाद’ ही अंकित किया जाता रहा। इस दौर के कई महत्वपूर्ण दस्तावेज और मथुरा-वृदावन की टकसालों में ढले वह दुर्लभ सिक्के वृंदावन के मंदिर गोदा विहार स्थित ब्रज संस्कृति शोध संस्थान के संग्रह में आज भी देखे जा सकते हैं, जो औरंगजेब के दमनकारी नीति की कहानी कह रहे हैं।

औरंगजेब नामा में नाम बदलने का प्रमाण 

ब्रज संस्कृति शोध संस्थान के प्रकाशन अधिकारी गोपाल शरण शर्मा ने बताया कि ब्रज संस्कृति शोध संस्थान के ग्रंथागार में संगृहीत ग्रंथ मुआसिर आलमगीरी जिसका लेखक मोहम्मद साकी मुस्तइदखां बादशाह औरंगजेब का दरबारी इतिहासकार था। उसने अपने इस इतिहास ग्रंथ में औरंगजेब द्वारा केशवदेव मंदिर को तोड़कर उस के स्थान पर मस्जिद का निर्माण करने तथा मथुरा और वृंदावन के नाम बदलने का प्रमाणिक विवरण दिया है। झ्स फारसी ग्रंथ का 1909 ई. में हिंदी अनुवाद मुंशी देवीप्रसाद ने ‘औरंगजेब नामा’ के नाम से किया था। 

विस्तार

मुगल शासक औरंगजेब ने हिंदुओं के मंदिर ही नहीं तुड़वाए, बल्कि धार्मिक नगरों के नाम तक बदल दिए थे। औरंगजेब ने मथुरा का नाम इस्लामाबाद और वृंदावन का नाम मोमिनाबाद कर दिया, लेकिन ये नए नाम शाही दस्तावजों तक ही सीमित रहे। कुछ मुगल इतिहासकारों ने भी इनका प्रयोग किया, लेकिन आम जनता ने इन नामों को न कभी प्रयोग किया न ही अपनाया।

बात 1670 ई की है, जब मुगल बादशाह औरंगजेब ने अपने शासनकाल के 13वें वर्ष में श्रीकृष्ण जन्मस्थान मथुरा के प्रसिद्ध केशव देव मंदिर को तोड़कर उस स्थान पर मस्जिद बनाने के साथ ही मथुरा और वृंदावन की सांस्कृतिक पहचान मिटाने के लिए एक आदेश और दिया। उसने मथुरा का नाम बदलकर ‘इस्लामाबाद’ और वृंदावन का नाम बदल कर ‘मोमिनाबाद’ कर दिया था। 

शाही दस्तावेजों में लिखे गए ये नाम 

यह आदेश पूरी तरह से अमल में भी लाया गया। लेकिन यह दोनों नाम साधारण आम जनता में कभी प्रचलित नहीं हो सके और केवल मुगल शाही दफ्तरों तक ही सीमित रह गए। फारसी दस्तावेजों में एक लंबे समय तक मथुरा के लिए ‘इस्लामाबाद’ और वृंदावन के लिए ‘मोमिनाबाद’ नाम लिखने की परंपरा चलती रही। इतिहासकार लक्ष्मी नारायण तिवारी बताते हैं कि 18वीं सदी के मध्य में जब मथुरा-वृंदावन जाट शासकों के अधिकार में आए तो उन्होंने सिक्के ढालने के लिए मथुरा और वृंदावन में अपनी टकसालें स्थापित कीं।