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 शहतूत पौधरोपण हेतु सीमांत कृषकों के लिए प्रति एकड़ 5 लाख रूपए दिए जाने की व्यवस्था

राज्य में शहतूती रेशम के उत्पादन की बेहतर संभावनाओं को देखते हुए इसके पौधरोपण के लिए सीमांत किसानों को प्रति एकड़ 5 लाख रूपए दिए जाने का प्रावधान सिल्क समग्र-2 कार्यक्रम के तहत किया गया है। सीमांत कृषकों को प्रति एकड़ शहतूत पौधरोपण एवं सिंचाई के लिए 60-60 हजार रूपए, कृमिपालन भवन के लिए सवा 3 लाख रूपए, कृमिपालन उपकरण के 50 हजार रूपए तथा निःसंक्रमण के लिए 5 हजार रूपए की सहायता दिए जाने का प्रावधान है।

ग्रामोद्योग विभाग के प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला ने राज्य के सभी कलेक्टरों को शहतूत पौध रोपण एवं शहतूती रेशम के उत्पादन को बढ़ावा देने के संबंध में केन्द्र सरकार की सिल्क समग्र-2 योजना का बड़े पैमाने पर क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के निर्देश दिए है। प्रमुख सचिव श्री शुक्ला ने कहा है कि छत्तीसगढ़ में शहतूत पौधरोपण कर शहतूती रेशम उत्पादन करने की अपार संभावनाएं है। देश में इस समय रेशम की बहुत कमी है, इसलिए जितना भी रेशम ककून उत्पादित होगा, उसके तत्काल विक्रय होने की संभावना भी है। केन्द्र सरकार द्वारा सिल्क समग्र-2 योजना बनाई गई है जिसके तहत् किसानों की भूमि पर शहतूत पौधरोपण करने के लिए 5 लाख प्रति एकड़ सीमांत कृषकों के लिए दिए जाने की व्यवस्था है।

प्रमुख सचिव डॉ. शुक्ला ने अपने पत्र में इस बात का उल्लेख किया है कि सिल्क समग्र-2 योजना के अनुसार इसमें से 80 प्रतिशत राशि केन्द्र सरकार द्वारा 10 प्रतिशत राज्य सरकार तथा 10 प्रतिशत राशि रेशम कृषक द्वारा वहन की जानी है। इसके अनुसार 5 लाख में से मात्र 50 हजार रूपए की राशि कृषक द्वारा वहन की जानी है। सीमांत कृषकों के खेतों में शहतूत पौधरोपण का कार्य मनरेगा के अंतर्गत कराया जा सकता है और मनरेगा में जो मजदूरी भुगतान की जायेगी, उसे मजदूरी के रूप में संबंधित कृषक का योगदान इस योजना के लिए माना जा सकता है। इसके बाद भी आवश्यकता हो तो बैंकों द्वारा ऋण दिलाने का प्रयास किया जाए। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राजीव गांधी किसान न्याय योजनातंर्गत धान के अतिरिक्त अन्य फसलों के लिए कृषकों को प्रति एकड़ 10 हजार रूपए प्रतिवर्ष देने की व्यवस्था है तथा पी.एम. किसान योजना के तहत पात्र कृषकों को प्रतिवर्ष 6 हजार रूपए दिया जाता है। एक एकड़ शहतूत पौधरोपण कर ककून उत्पादन से कृषकों को 1 लाख 29 हजार 600  रूपए की वार्षिक आय संभावित है। रेशम पौधरोपण के लिए लाल दोमट मिट्टी तथा ऐसे क्षेत्र उपयुक्त होते है, जहां जल का जमाव न हो शहतूत के पौधरोपण को सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। जिसके लिए ड्रीप एरिगेशन की व्यवस्था भी इस योजना के अंतर्गत की जा सकती है।

प्रमुख सचिव श्री शुक्ला ने कलेक्टरों को जिले में 250-500 कृषकों के लिए निजी भूमि पर शहतूत पौधरोपण की अपने जिले की कलस्टरवार योजना तैयार कर शीघ्र डॉ. राजेश बघेल, अपर संचालक रेशम मोबाइल नम्बर- 9977839369 भेजने को कहा है। उन्होंने कहा है कि सारे कृषक एक कलस्टर के रूप में होने से उन्हें सभी तकनीकी एवं आर्थिक सेवायें बेहतर ढंग से उपलब्ध कराई जा सकेंगी।