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भारत गेहूं के उत्पादन में आत्मनिर्भर है। लेकिन सबसे बड़ी समस्या ये रही है कि पूर्व की सरकारों में लापरवाही और एक खास रणनीति की कमी की वजह से काफी मात्रा में गेहूं गोदामों में बर्बाद हो जाता था। न तो जनता को और न ही किसानों को लाभ पहुंचाने की कोशिश की गई। आज मोदी सरकार गेहूं को गोदाम में सड़ने और चूहों का निवाला बनने से रोक कर उसका सदुपयोग करने की रणनीति पर काम कर रही है। जनकल्याणकारी योजनाओं में इस्तेमाल के साथ ही दूसरे देशों के बाजार तक पहुंच बढ़ाने के लिए गंभीरता से प्रयास कर रही है। इसका नतीजा है कि आज भारत अपने देश के लोगों के साथ ही विश्व के दूसरे देशों के लोगों का पेट भर रहा है और किसानों की आमदनी भी बढ़ा रहा है।
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की वजह से पूरी दुनिया में गेहूं की आपूर्ति कम होने से इस साल गेहूं का निर्यात पहले से अधिक रहने की उम्मीद है। सूत्रों के मुताबिक मोदी सरकार के अनवरत प्रयासों की वजह से इजिप्ट समेत अधिकतर देशों ने भारत को अपनी बाजार तक पहुंच उपलब्ध कराई है। गेहूं की बढ़ती मांग को देखते हुए यह भारत के लिए गेहूं निर्यात बाजार में स्थायी जगह बनाने में मदद करेगा। इससे देश में किसानों की आमदनी में भी बढ़ोतरी होगी। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीईडीए) के चेयरमैन डॉ. एम. अंगमुतु ने कहा, “वैश्विक किल्लत से भारत के लिए मौका बना है। हम वित्त वर्ष 2022-23 में अपने निर्यात को दोगुना 1.2-1.5 करोड़ मीट्रिक टन करने का लक्ष्य रख रहे हैं।”
दुनिया में गेहूं की बढ़ती मांग और मोदी सरकार की सक्रियता के वजह से कई देशो में भारतीय गेहूं अपनी जगह बनाने सफल रहा है। एक साल के अंदर ही भारतीय गेहूं के निर्यात में साढ़े तीन गुना से अधिक बढ़ोतरी हुई है। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक इस साल बीते साल की तुलना में 50 लाख मीट्रिक टन गेहूं का निर्यात अधिक हुआ है। वित्त वर्ष 2020-21 में देश से कुल 21.55 लाख मीट्रिक टन गेहूं का निर्यात किया गया था। जिसका बाजार भाव 567.93 मिलियन डॉलर था। वहीं वित्त वर्ष 2021-22 में देश से 70.35 लाख मीट्रिक टन गेहूं निर्यात किया गया है। जिसका बाजार भाव 2035.09 मिलियन डॉलर रहा है।
भारत दुनिया का नंबर 2 गेहूं पैदा करने वाला देश है, लेकिन अपनी निर्यात क्षमता का अधिकतम लाभ उठाने में पिछड़ता रहा है। लेकिन मोदी सरकार के प्रयास और अवसर का लाभ उठाने से भारतीय गेहूं का निर्यात बड़े पैमाने पर होने की संभावना है। इससे किसानों को बेहतर कीमत मिलेगी और सरकारी खरीद पर उनकी निर्भरता कम होगी। इसके अलावा हमेशा हद से ज्यादा भरे रहने वाले भंडार को खाली करने में मदद मिलेगी। कीमतें कम होने से उपभोक्ताओं को भी लाभ मिला है। जहां पूरी दुनिया में गेहूं की कीमतें बढ़ी हैं, वहीं पर्याप्त भंडार के चलते भारत में वह बड़े स्तर पर स्थिर रही हैं। मार्च 2021 में गेहूं की कीमत 27.90 रुपये प्रति किलो थी जो मार्च 2022 में 28.67 रुपये रही। आटा की थोक कीमत मार्च 2021 में 31.77 रुपये प्रति किलो थी जो मार्च 2022 में 32.03 रुपये किलो रही।
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