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Editorial:क्या पश्चिम बंगाल में ममता की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है

30-3-2022

पश्चिम बंगाल में भाजपा में मचे आंतरिक उथल-पुथल के कारण पार्टी की विफलता हुई, इसने भाजपा जैसी कठोर पदानुक्रमित पार्टी की संगठनात्मक संरचना की कमी को भी दर्शाया। राज्य विधानसभा चुनाव से कुछ दिन पहले, कई नेताओं ने टीएमसी में शामिल होने के लिए पार्टी छोड़ दी। भाजपा से टीएमसी में बड़े पैमाने पर दलबदल देखा गया और दोनों घटनाक्रमों ने पश्चिम बंगाल के राज्य भाजपा में पर्याप्त अराजकता पैदा कर दी थी। लेकिन इससे इतर और भी कई कारण थे। बंगाल ममता का गृह क्षेत्र होने के कारण भगवा पार्टी के लिए एक ऐसा चेहरा पेश करना जरूरी था, जो बंगाल में समान रूप से लोकप्रिय हो। इसके अलावा पार्टी के लिए ममता बनर्जी के खेल को समझना भी महत्वपूर्ण था। पर, पार्टी में दोनों की कमी थी।सुवेंदु, ममता के सबसे करीबी विश्वासपात्र के रूप में टीएमसी में महत्वपूर्ण स्थान रखते थे। उन्होंने वर्ष 2007 में नंदीग्राम आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने अंतत: वामपंथियों के तीन दशक के शासन को समाप्त कर उन्हें ममता की आंखों का तारा बना दिया। पर सुवेंदु अधिकारी वंशवाद की राजनीति के कारण टीएमसी में तेजी से दरकिनार हो गए, उन्होंने अपनी बुलंद राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए भाजपा में छलांग लगा दी। अधिकारी कभी ममता के करीबी और टीएमसी के एक प्रमुख सदस्य थे, वो टीएमसी सुप्रीमो के ग्राउंड गेम से भी अच्छी तरह वाकिफ हैं। यही वजह है कि बंगाल में भाजपा का विकास हो रहा है। उनके पास टीएमसी का मुकाबला करने और ममता की शैली में जवाबी कार्रवाई करने की क्षमता है।
बंगाल में भाजपा निश्चित रूप से सत्ता में नहीं है, पर अधिकारी का कद तेजी से बढ़ रहा है। इसे पश्चिम बंगाल विधानसभा में हाल ही में हुए हंगामे से समझा जा सकता है। जब विपक्ष ने बीरभूम हिंसा के मद्देनजर कानून-व्यवस्था की स्थिति पर चर्चा के लिए कहा, तो सरकार ने इससे परहेज किया। इसके चलते कोलकाता में असेंबली फ्लोर पर बवाल मच गया। भाजपा विधायक मनोज तिग्गा के साथ कथित तौर पर मारपीट की गई।
बंगाल भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता से टीएमसी डरी हुई है। यही कारण है कि उसने हिंसा से विपक्ष को चुप कराने का सहारा लिया है, लेकिन यह केवल टीएमसी की अक्षमता और कायरता को दर्शाता है!