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भारत सरकार ने आपराधिक मामलों की जांच में आधुनिकता लाने के लिए एक बिल संसद में प्रस्तुत किया है। इस बिल का उद्देश्य आपराधिक छानबीन में पूर्व के नियमों में सुधार लागू करना है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में क्रिमिनल प्रोसीजर (आइडेंटिफिकेशन) बिल 2022 प्रस्तुत किया है। इस बिल के अंतर्गत दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 53 और 53ए में सुधार लागू किया गया है।यह विधेयक पुलिस को धारा 53 में संदर्भित “उंगली के निशान, हथेली के निशान, पदचिह्न छाप, तस्वीरें, आईरिस और रेटिना स्कैन, भौतिक, जैविक नमूने और उनके विश्लेषण, हस्ताक्षर, लिखावट या किसी अन्य परीक्षा सहित व्यवहार संबंधी विशेषताओं” को एकत्र करने की अनुमति देता है।
मौजूदा नियम के अनुसार एक सीमित श्रेणी के अपराधियों और दोषियों के फिंगरप्रिंट और फुटप्रिंट लेने का अधिकार पुलिस को था जबकि फोटोग्राफ लेने के लिए मजिस्ट्रेट को आदेश देना पड़ता था।विधेयक के प्रावधानों के अनुसार, किसी भी निवारक निरोध कानून ( प्रीवेंटिव डिटेंशन लॉ ) के तहत दोषी ठहराए गए, गिरफ्तार या हिरासत में लिए गए किसी भी व्यक्ति को पुलिस अधिकारी या जेल अधिकारी को “माप” अर्थात उंगली के निशान, हथेली के निशान, पदचिह्न छाप, तस्वीरें, आईरिस और रेटिना स्कैन आदि सभी प्रदान करने की आवश्यकता होगी।भारत में अधिकांश कानून संहिताएं ब्रिटिश काल की हैं। तब से अब तक अपराध के तरीकों और अपराधियों की प्रवृत्ति में बहुत बदलाव आ चुका है।
भारत में पुलिस को लॉ एंड ऑर्डर के साथ ही अपराधों की छानबीन का कार्य भी करना पड़ता है। ऐसे में भारत की पुलिस के साथ सबसे बड़ी समस्या ?प्रोफेशनलिज्मÓ की है। लेकिन इस सुधार के बाद एक ही ढर्रे पर चले आ रहे छानबीन के तरीकों में बहुत बदलाव होगा। अब तक भारत की पुलिस को अत्यधिक तकनीक का प्रयोग सिखाया जाता था लेकिन अब उन्हें स्वविवेक से इसका उपयोग करने की भी अनुमति होगा।भारत में पुलिस सुधार की मांग समय समय पर उठती रही है। अभी हाल में जब प्रयागराज में छात्रों पर लाठीचार्ज हुआ था तब भी पुलिस सुधार की बात उठी थी। पुलिस बल की कमी भी पुलिसकर्मियों के नकारात्मक व्यवहार और चिढ़चिढ़े रवैये का एक बड़ा कारण है।
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