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BAU की मदद से विदेशी सब्जी जुकिनी का झारखंड में शुरू हुआ उत्पादन, सोनाहातु में हो रही है खेती

Ranchi: राज्य में एक फसली खेती प्राचीन काल से ही प्रचलित है, लेकिन अब किसान कृषि थिंक टैंक बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) की मदद से यहां जूकिनी जैसी विदेशी सब्जी की भी खेती कर रहे हैं. रांची जिले में सब्जी और फल के रूप में बहुउपयोगी विदेशी फसल जूकिनी की खेती में आनली जैविक फार्म को बड़ी सफलता मिली है. सोनाहातू प्रखंड के सालसूद गांव स्थित आनली जैविक फार्म की एक एकड़ भूमि में ड्रिप इरिगेशन, मल्चिंग तकनीक और जैविक कृषि विधि से दिसंबर 2021 में जूकिनी लगाई गई थी.

 

50 दिन बाद ही खेतों में प्रचुर मात्रा में फल निकलने लगे

फार्म में 50 दिन बाद ही खेतों में प्रचुर मात्रा में फल निकलने लगे. जनवरी मध्य से मार्च मध्य तक इस फार्म में लगभग 9 टन जूकिनी का उत्पादन हुआ है. आनली जैविक फार्म के खेतों से अभी भी फूल और फल निकल रहे हैं. जिसे लोग रांची और आसपास के बड़े शहरों में रिटेल रेट 240 रूपये प्रति किलोग्राम खरीद रहे हैं. आनली जैविक फार्म के संस्थापक राजेश कुमार श्रीवास्तव और बिरेंद्र कुमार अग्रवाल बताते हैं कि उनके 11 एकड़ के खेत में सब्जियों और फलों की खेती जैविक विधि से की जाती है. स्थानीय बाजार में विदेशी सब्जी फसलों सर्वेक्षण के दौरान जूकिनी की गुणवत्ता और महंगे रेट की जानकारी मिली.

ऑनलाइन माध्यम से इसकी खेती की जानकारी मिली और अमेजन से 10 ग्राम बीज मंगाया, जो संख्या में 70 थे. पुनः दिल्ली की एक कंपनी से जूकिनी के 200 ग्राम बीज मंगाया. इससे करीब 1400 पौधे तैयार हुए. जिससे फार्म के एक एकड़ भूमि में रोपाई की गई.

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मांग बढ़ने लगी है

रोपाई के 50 दिनों के बाद ही भरपूर फल मिलने लगा. फार्म में पीला एवं हरा रंग के जूकिनी का उत्पादन हो रहा है. शुरूआत में रांची में प्रतिदिन 20 किलो की मांग व खपत थी. शुरूआत में बाजार मांग कम होने की वजह से करीब 2 टन फसल का नुकसान हुआ, अब मांग बढ़ने लगी है.

 

240 रु प्रति किलो बिक रहा है

फार्म से प्रतिदिन 40-50 किलो जूकिनी की आपूर्ति रांची के फल व्यापारी को की जा रही है. इसका बढियां थोक मूल्य मिल रहा है. स्थानीय बाजार में जूकिनी का खुदरा भाव 240 रूपये प्रति किलो व 60–65 रूपये प्रति पीस बिक रहा है.

बीएयू के कुलपति डा.ओंकार नाथ सिंह ने बताया कि समशीतोष्ण जलवायु में जूकिनी की खेती करना बहुत आसान है. इसे घरेलू बाग एवं बगीचा में भी लगा सकते हैं. जूकिनी वानस्पतिक रूप से फल है, लेकिन दुनिया के अधिकांश लोग जूकिनी को सब्जियों के रूप में उपयोग के बारे सोचते हैं. स्थानीय स्तर पर इस फसल पर शोध की आवश्यकता है. महंगा होने की वजह से यह फसल झारखंड के किसानों के अधिक आय के लिए उपयोगी हो सकती है. बताते चलें कि वर्ष 2005 में ब्रिटेन के 2 जार लोगों ने एक सर्वेक्षण में इसे 10वीं पसंदीदा सब्जी के रूप में प्रगट किया था.

 

इसे कच्चा भी खाया जाता है

इसे कच्चा खाया जा सकता है. इसे सूप, स्टॉज, सैंडविच, सलाद व बेक कर सेवन किया जा सकता है. वास्तव में जूकिनी / कूर्गेट एक विदेशी फसल है, जो खरबूजा, खीरा एवं कॉहड़ा के साथ कुकुरबिटेसी पौधे परिवार का एक ग्रीष्मकालीन फसल है. समशीतोष्ण जलवायु में जूचिनी की खेती करना बहुत आसान होता है. इसे खाने के लिए अपरिपक्व अवस्था में 8 इंच (20 सेंमी) तक होने पर काटा. जाता है. यह लम्बाई में 3.2 फीट (1 मीटर) तक बढ़ सकता है. इस सब्जी फसल को वानस्पतिक रूप से फल के रूप में वर्गीकृत किया जाता है. इनके किस्मों का रंग गहरे पीले से लेकर गहरे हरे रंग तक होता है. इसकी उत्पति अमेरिका में हुई थी और इसके विशेष किस्म को पहली बार 1800 के दशक की शुरूआत में इटली में विकसित किया गया था.

 

विटामिनयुक्त है जुकिनी

जूकिनी विभिन्न प्रकार के विटामिन, खनिज और लाभकारी यौगिक से समृद्ध होते हैं. पकी हुई जूकिनी विशेष रूप से विटामिन ए से भरपुर होती है. इसमें मौजूद कई एंटीऑक्सीडेंट विभिन्न स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं. इसमें पानी और फाईबर प्रचूर मात्रा में होते हैं, इससे कब्ज के जोखिम और विभिन्न आंत विकार के लक्षणों को कम करके स्वस्थ पाचन को बढ़ावा मिलता है.

 

रक्त सर्करा के स्तर को स्थिर रखता है

इसमें मौजूद फाईबर इंसुलिन संवेदनशीलता को बढ़ा सकता है और रक्त शर्करा के स्तर को स्थिर कर सकता है, संभावित रूप से टाइप 2 मधुमेह के जोखिम को कम कर सकता है. इसमें मौजूद फाइबर, पोटेशियम और कैरोटेनॉयड्स जो उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रोल और हृदय रोग आदि के जोखिम को कम कर सकते हैं. यह आंखों, त्वचा, हड्डी, आयराइड और हृदय को लाभ पहुंचा सकते हैं. साथ ही कुछ प्रकार के कैंसर जैसे प्रोस्टेट कैंसर से कुछ सुरक्षा प्रदान कर सकता है.

 

जुकिनी गर्म जलवायु की फसल है

जुकिनी गर्म जलवायु की फसल है. इसलिए इसकी खेती ज्यादा तापमान वाले क्षेत्रों में की जाती है. जहां तापमान 20 से 40 डिग्री सेल्सियस होती है, वहां इसकी खेती आसानी से की जा सकती है.

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