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PM Modi के प्रयासों से 7 साल में 200 अति प्राचीन और दुर्लभ मूर्तियां स्वदेश वापस आईं,

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 27 फरवरी को अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम की शुरुआत ही भारतीय प्राचीन मूर्तियों को याद करके की थी। पीएम मोदी ने कहा, “इन मूर्तियों को वापस लाना, भारत मां के प्रति हमारा दायित्व है। इन मूर्तिंयों में भारत की आत्मा का, आस्था का अंश है। इनका एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व भी है…क्योंकि इनके साथ भारत की भावनाएं जुड़ी हैं, भारत की श्रद्धा जुड़ी है…ये भारत के प्रति बदल रहे वैश्विक नजरिए का ही उदाहरण है…साल 2013 तक करीब-करीब 13 प्रतिमाएं ही भारत आईं थीं,

प्रधानमंत्री की श्रद्धा, आस्था और भारतीय स्वर्णिम इतिहास के प्रति लगाव का ही सुफल है कि अभी पिछले दिनों काशी से चोरी हुई मां अन्नपूर्णा की प्रतिमा भी वापस लाई गई थी। मोदी सरकार के प्रयासों का ही सुपरिणाम है कि अब 10वीं शताब्दी की दुर्लभ नटराज की प्रतिमा लंदन से अगले माह राजस्थान लाई जाएगी। यह मूर्ति रावतभाटा (चित्तौड़गढ़) के सटे बाड़ौली के प्राचीन घाटेश्वर मंदिर से 1998 में चोरी हुई थी। अब यह प्रतिमा उसी मंदिर में या फिर कोटा के म्यूजियम में रखी जाएगी।

काबिले जिक्र है कि फरवरी 1998 में यह मूर्ति बाड़ौली के प्राचीन घाटेश्वर मंदिर से चोरी हुई थी। चोरी के 8 माह बाद मंदिर से समीप जंगल से मूर्ति कथित रूप से मिल भी गई, लेकिन आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया, नई दिल्ली के अधिकारियों ने जब मूर्ति को देखा तो इसे संदेहास्पद तो पाया, लेकिन कोई और सुबूत न होने के कारण इसे असली मूर्ति मानकर गोदाम में रखवा दिया। ऑपरेशन ब्लैक हॉल के दौरान जुलाई 2003 में मूर्ति चोरों ने खुलासा किया कि उन्होंने घाटेश्वर मंदिर से नटराज की वह मूर्ति चुराकर 85 लाख में लंदन में बेच दी थी।

मामले में कुख्यात मूर्ति तस्कर घीया गैंग का नाम भी आया था। उसके गुर्गों ने मूर्ति लंदन में बेच डाली थी। वरिष्ठ संरक्षक सहायक सुरेश कुमावत को इस मूर्ति की जांच के दौरान जान से मारने तक की धमकियां मिली थी। आश्चर्य की बात यह है कि 2004 में इस बारे में पुख्ता हो गया था कि नटराज की बेशकीमती मूर्ति लंदन में हैं, इसके बावजूद कई साल तक इसे वापस लाने के गंभीर प्रयास मनमोहन सरकार की ओर से नहीं दिखाए गए। इसके फलस्वरूप पिछले कई सालों से चोरी गई नटराज की यह दुर्लभ मूर्ति लंदन में ही रही।

आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया, नई दिल्ली के पूर्व संयुक्त महानिदेशक देवकीनंदन डीमरी के मुताबिक 2014-15 में इस मूर्ति को वापस लाने की दिशा में सरकार ने प्रयास शुरू किए। उन्होंने बताया कि उस समय वो एएसआई में डायरेक्टर थे। मूर्ति को वापस लाने के कई प्रयासों के बाद 2017 में इसकी मंजूरी मिली। इसके बाद वे और तत्कालीनी डिप्टी सुपरिटेंडेंट डॉ. विनय गुप्ता वेरीफिकेशन के लिए लंदन गए। मूर्ति की वेरीफिकेशन के बाद इसे भारत लाने का मार्ग प्रशस्त हुई। डीमरी के मुताबिक मूर्ति वहीं लगे जहां से चोरी हुई या कोटा के म्यूजियम में रखी जाए।