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UP Chunav: बयान, तारीफ और मायने…तैयार हो रही है चुनाव के बाद की बिसात

लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभाचुनाव (UP Assembly Election) के बीच नेताओं के बयान अलग-अलग दलों पर आने शुरू हो गए हैं। बयानों पर प्रतिक्रिया भी आ रही है। राजनीतिक जानकार इसे चुनाव बाद की बिछती बिसात के तौर पर देख रहे हैं। उनका मानना है कि इन बयानों और उनपर मिल रही प्रतिक्रियाओं के सियासी मायने बेहद गहरे हैं। चुनाव में सियासी दल कोई भी कसर नहीं उठाए रखना चाहते हैं। यही वजह है कि चुनाव के बीच में ही वे सियासी दलों की थाह ले लेना चाहते हैं। इन बयानों के यही मायने तलाशे जा रहे हैं।

हाल ही में गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने मायावती (Mayawati) को लेकर बयान दिया था कि बसपा प्रमुख मायावती (BSP Chief Mayawati) ने अपनी प्रासंगिकता नहीं खोई है। उन्होंने मायावती की तारीफ करते हुए कहा कि बसपा प्रमुख की जमीन पर अपनी पकड़ है। अगले रोज मायावती ने इसे अमित शाह का बड़प्पन करार दिया। राजनीतिक जानकारों की मानें तो यह केवल तारीफ को लेकर दिया गया बयान नहीं था बल्कि इसे दोनों दलों के बीच संवाद खोलने के रास्ते के तौर पर देखा जाना चाहिए।

वहीं, इस बीच कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) ने चुनाव बाद सभी विकल्प खुले रखने की बात कहकर इस तरह के बयानों पर स्थिति और भी साफ कर दी है। प्रियंका से जब यह पूछा गया था कि क्या चुनाव बाद वह सप के साथ जा सकती हैं तो उन्होंने सभी विकल्प खुले रखने की बात कही थी। उन्होंने यह भी कहा था कि उनका मत रहा है कि सभी विपक्षी दल एक साथ होने चाहिए थे।

पश्चिम के नेताओं में जारी है संपर्क
चुनाव भले ही रामनगरी अयोध्या तक पहुंच गया हो, लेकिन पश्चिम की तपिश अबतक जारी है। सूत्र बताते हैं कि यूपी के पश्चिमी हिस्से में भले ही वोट पड़ चुके हों लेकिन नेताओं का संपर्क लगातार जारी है। खापों में अलग-अलग दल के जाट नेताओं की बैठकें हो रही हैं। बातचीत के रास्ते पूरी तरह से खोले रखे जाने की गुंजाइश बनाई जा रही है।

पोल डायवर्ट करने का भी संदेश है
लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीतिक विज्ञान के प्रफेसर डॉ़ कविराज कहते हैं कि मतदान के बीच दलों के सार्वजनिक सियासी वार्तालाप को पोल डायवर्ट करने के भी नजरिए से देखना चाहिए। वह कहते हैं कि मायावती की प्रासंगिकता बनी रहने वाले बयान में अमित शाह मुस्लिम वोटों के बंटने और जाटव वोटों के मायावती के साथ जाने की बात कही है। यानी वह संदेश यह देना चाहते हैं कि मुस्लिम सपा की तरफ एकजुट नहीं है, जैसा कि चुनाव में परसेप्शन बनाया जा रहा है।

वहीं, मायावती के जवाब में भी जाटव और मुस्लिम के अलावा अति पिछड़ों व सर्व समाज का भी वोट भी मिल रहा है। इस बयान के मायने में यह देखना चाहिए कि बसपा के सपा से अधिक मजबूत होने का संदेश दिया जा रहा है ताकि जो लोग कमजोर होती बसपा मानकर सपा को मतदान कर रहे हैं, वे बसपा में ही बने रहें।