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यूपी में सपा-कांग्रेस का राजनीतिक शिष्टाचार या राजनीतिक व्यापार?

सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं, चोर-चोर मौसरे भाई या फि र हार के डर से हाहाकार! इस खबर के लिए आप कोई भी मुहावरा इस्तेमाल कर सकते हैं, पर सपा ने इसे राजनीतिक शिष्टाचार का नाम दिया है। इसी कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवारों ने यूपी में करहल (मैनपुरी) और जसवंत नगर (इटावा) सीटों से नामांकन दाखिल नहीं किया है।
ध्यान देने वाली बात है कि करहल (मैनपुरी) से समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव और जसवंत नगर (इटावा) से प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल यादव चुनाव लड़ रहे हैं।जब यूपी में प्रियंका गांधी की रैली और अखिलेश-जयंत की रैली का सामना हुआ तो जिस प्रकार से दोनों छोर से अभिवादन किया गया इससे एक तस्वीर सामने निकलकर आई ये क्या राजनीतिक शिष्टाचार के बहाने राजनीतिक व्यापार है?दरअसल, राजनीतिक शिष्टाचार के आड़ में दोनों दल अपने भय को छिपा रहें हैं।
दोनों को पता है कि मोदी-योगी के सामने उनकी राह कठिन है, अत: वो राजनीतिक शिष्टाचार के आड़ में गठबंधन के संभावनाओं को खुला रखना चाहते हैं। इन दलों के पास कोई राजनीतिक आधार, विचार और शिष्टाचार नहीं है। इनका बस ये मानना है कि तुम हमारे परिवारवालों को जीतने दो, हम तुम्हारे परिवारवालों को जीतने देंगे, अन्यथा सबसे बड़ी लोकतांत्रिक शिष्टता तो प्रतिद्वंद्विता है।राजनीतिक पंडितों का मानना है कि कांग्रेस के ‘माँ-बेटेÓ की पकड़ अमेठी-रायबरेली में दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है।
राहुल गांधी को तो वायनाड़ ने बचा लिया, वरना अमेठी में तो उन्होंने हार का स्वाद चख ही लिया। इस बार उम्मीद है कि सोनिया गांधी की सीट भी उखड़ जाएगी, जिससे यूपी से प्रियंका गांधी का राजनीतिक अस्तित्व बनने से पहले ही मिट सकता है।अत: यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस ने सौदा कर लिया है। कांग्रेस यादव परिवार के खिलाफ अपना उम्मीदवार नहीं खड़ा करेगी, बदले में यादव परिवार भी लोकसभा चुनाव में ऐसा ही दांव चलकर कांग्रेस के राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित करेगी। राजनीतिक शिष्टाचार का आवरण तो बस इनके डऱ और राजनीतिक व्यापार को छिपाने के लिए डाला गया है!