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जाट नेताओं की बैठक में ‘चौधरी’ बने अमित शाह, खिसकते दिख रहे पश्चिमी यूपी को साधने की बीजेपी की कोशिश के क्या मायने?

नई दिल्ली/मुजफ्फरनगर
‘अमित शाह हम लोगों के लिए गृह मंत्री बाद में लेकिन पहले हमारे चौधरी हैं। चौधरी अमित शाह जिंदाबाद, जिंदाबाद। नरेंद्र मोदी जिंदाबाद। जय श्री राम…’ गणतंत्र दिवस के दिन लुटियन दिल्ली में अमित शाह ने जाट समुदाय के नेताओं और प्रतिनिधियों के साथ बैठक करके पश्चिमी यूपी को साधने की तैयारी कर ली है और यह नारे इसी बैठक में लगाए गए। किसान आंदोलन, कैबिनेट मंत्री का पद ना मिलने की नाराजगी, आरक्षण और रालोद का साथ जैसे मुद्दों पर खिसकते नजर आ रहे पश्चिम में प्रभावी फैक्टर रखने वाले जाट बिरादरी को साधने की तैयारी की गई है।

उत्तर प्रदेश का चुनाव पश्चिमी यूपी की जमीन से ही शुरू होगा। पहले दो चरण में 20 जिलों की करीब 100 सीटों पर मतदान होना है। इनमें से अधिकांश जगहों पर जाट बिरादरी प्रभावी फैक्टर मानी जाती है। जाट समुदाय की संख्या पूरे प्रदेश में 3 से 4 प्रतिशत, जबकि अगर बात वेस्ट यूपी की करें तो इनकी संख्या करीब 17 फीसदी तक हो जाती है। जाट पश्चिमी यूपी की करीब 100 विधानसभा और लोकसभा की एक दर्जन सीटों पर प्रभावी असर रखते हैं।

2014 और 2019 के लोकसभा के साथ ही 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में इस समुदाय ने भारतीय जनता भारतीय जनता पार्टी का पूरा साथ दिया था। साल 2013 में मुजफ्फरनगर में हुए सांप्रदायिक हिंसा का बड़ा रोल रहा था। इस बार भी तमाम मुद्दों पर गिरे होने के बावजूद भाजपा और उसके नेता कानून व्यवस्था, मुजफ्फरनगर दंगा, कैराना में पलायन जैसे मुद्दों को उठाकर जाट और हिंदू समुदाय को लामबंद करने की कोशिश में जुटे हैं। इसी के तहत गृह मंत्री अमित शाह कैराना में खुद डोर टू डोर जनसंपर्क अभियान में उतरे और अब जाट समुदाय को साधने की कोशिश में जुट गए हैं।

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बीजेपी के चुनावी रणनीतिकार अमित शाह इस बार पूरी स्ट्रैटेजी बनाकर पश्चिमी यूपी में खिसकते दिख रहे जनाधार को समेटने में लग गए हैं। राष्ट्रीय लोक दल और जयंत चौधरी के साथ जाटों की सहानुभूति को भांपते हुए अमित शाह ने यह भी इशारा कर दिया है कि चुनाव बाद उनके साथ गठबंधन किया जा सकता है। बीजेपी यह मान रही है कि पश्चिमी यूपी में किला फतह करने के लिए जाट बिरादरी का साथ बेहद जरूरी है।

अमित शाह ने जाट नेताओं के साथ बातचीत करते हुए यह दावा किया कि जाट समुदाय के साथ उनका रिश्ता 650 साल पुराना है। शाह ने कहा कि जाट समुदाय ने भी मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और भाजपा भी लड़ रही है। बैठक के दौरान उनसे यह अपील भी की कि भाजपा और जाट समुदाय की सोच एक जैसी ही है। मुद्दा चाहे किसानों का हो या देश की सुरक्षा का , दोनों ही महत्वपूर्ण मुद्दों पर भाजपा और जाट समुदाय की सोच एक जैसी ही है। शाह ने जाट मतदाताओं द्वारा हमेशा भाजपा का साथ देने के लिए आभार जताते हुए यह दावा भी किया कि किसानों के सर्वमान्य बड़े नेता महेंद्र सिंह टिकैत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा किसी ने सम्मान नहीं दिया है।

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बीजेपी सांसद संजीव बालियान पश्चिम में जाटों को साधने के बीजेपी की रणनीति में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। दिल्ली में हुई बैठक में अमित शाह के साथ बालियान, बागपत के साथ सत्यपाल सिंह, यूपी प्रभारी केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान भी मौजूद रहे। योगी सरकार में गन्ना मंत्री सुरेश राणा भी इस इलाके से आते हैं। बागपत, शामली, मेरठ, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद, हापुड़, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा, आगरा, अमरोहा, बिजनौर, सहारनपुर, नोएडा जैसे इलाकों में फतह के लिए जाट बिरादरी का साथ जरूरी माना जाता है।

पिछले चुनावों पर गौर करें तो पहले चरण की 73 सीटों पर बीजेपी को 2012 के 16% वोट की तुलना में 2017 में यहां 45% वोट मिले। वहीं, जाट नेता अजीत सिंह के नेतृत्व वाली आरएलडी का वोट शेयर 11% से घटकर 6% पर पहुंच गया। इस इलाके में अन्य दलों और निर्दलियों का वोट शेयर भी गिरा। इससे साफ पता चलता है कि जाट लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी के समर्थन में खड़े रहे। इसी के चलते पूरी हवा बदल गई। बीजेपी ने इस वोट बैंक को धीरे-धीरे खड़ा किया है। वह नहीं चाहती कि एकदम से यह उसके हाथों से निकल जाए। ‘चौधरी’ अमित शाह की अगुवाई में यह तैयारी कितना असर डालेगी, यह चुनावी नतीजे बताएंगे।

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