गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर जीवन का तंत्र इस कदर बिगड़ा कि 75 साल के बुजुर्ग को आश्रम की शरण लेनी पड़ी। ताजनगरी के बल्केश्वर के रहने वाले 75 साल के बुजुर्ग सुरेश कुमार लड़खड़ाते कदमों से अपने जीवन के नए संविधान की तलाश में रामलाल वृद्ध आश्रम पहुंचे। आश्रम के मुख्य द्वार पर खड़े हुए थे कि अंदर से आवाज आ गई। कोई नए बाबा आए हैं। आश्रम का एक सेवक बुजुर्ग सुरेश को अंदर लेकर पहुंचे। वहां पहुंचते ही सुरेश फूट फूटकर रोने लगे। आश्रम में पहले से रह रहे 270 बुजुर्गों को यह समझ आ गया कि सुरेश के घर का भी संविधान खराब हो चुका है। सुरेश का कहना था कि परचून की दुकान करते हैं। दो बेटे हैं। दोनों ने घर में रखने से मना कर दिया। इसलिए आश्रम की शरण में आना पड़ा है। उनका कहना था कि आज की सुबह इसलिए उन्हें ज्यादा सताएगी क्योंकि गणतंत्र दिवस पर बचपन में जिन बच्चों के लिए तिरंगे की झंडिया लेकर आता था, आज उन बेटों ने मुझे घर से बेघर कर दिया है।
रोटी के लिए करना पड़ता था घंटों इंतजार
आश्रम पहुंचे सुरेश कुमार रात को काफी गुमसुम रहे। काफी कोशिशों के बाद उन्होंने अपने आश्रम के बुजुर्ग साथियों को बताया कि भोजन की थाली के लिए काफी परेशान किया जाता था। दोनों बेटों की कोशिश रहती थी कि मैं उनके यहां खाना नहीं खाऊं। अकेले में देर तक रोता रहता था। कोई पूछने तक नहीं आता था कि पापा आपने खाना खा लिया या नहीं। अफसोस भरे लहजे में सुरेश यह कहते हुए फफक पड़े कि पता नहीं भगवान ने ऐसा क्यों कर दिया।
बुजुर्ग मित्रों की मिली नई मंडली
रामलाल वृद्ध आश्रम के अध्यक्ष शिव प्रसाद शर्मा ने बताया कि सुरेश बाबा शाम को आश्रम पहुंचे। यहां उन्हें रहने के लिए एक कमरा दिया गया है। उनकी आश्रम में नए बुजुर्गों की मंडली बन गई है। मंगलवार की शाम को आश्रम में होने वाली भजन संध्या में भी उन्होंने प्रभु के भजन गुनगुनाए।
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