UP Election: अगर हमें धोखे ना मिले होते तो BJP का साथ लेने की जरूरत ही नहीं थी: संजय निषाद – Lok Shakti
November 2, 2024

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UP Election: अगर हमें धोखे ना मिले होते तो BJP का साथ लेने की जरूरत ही नहीं थी: संजय निषाद

लखनऊ/नई दिल्‍ली
यूपी की पॉलिटिक्स में इन दिनों अति पिछड़ा वर्ग धुरी बने हुए हैं। बीजेपी और एसपी के बीच इस वर्ग के नेताओं को अपने साथ लेने की होड़ दिख रही है। बीजेपी ने निषाद पार्टी को अपने साथ लिया है जो कभी एसपी के साथ थी। बीजेपी के समर्थन के लिए डेप्युटी सीएम का पद मांगने वाले निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद (Sanjay Nishad) को बीजेपी ने विधान परिषद भेजा है। उनका बेटा बीजेपी से ही सांसद भी है। यूपी की अति पिछड़ा वर्ग की पॉलिटिक्स पर डॉ. संजय निषाद से बात की एनबीटी के नैशनल पॉलिटिकल एडिटर नदीम ने। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश :

यूपी में अति पिछड़ा वर्ग बहुत महत्वपूर्ण हो गया है, क्या वजह देखते हैं?

हाल के वर्षों में जागरूकता आई है। अति पिछड़ा वर्ग के लोग अभी तक अपने को असहाय समझते थे। उन्होंने सब कुछ किस्मत पर छोड़ रखा था लेकिन हम लोगों ने उन्हें जगाया। अब उन्होंने अपनी ताकत पहचान ली है तो उन्हें अपने अधिकार भी चाहिए। चूंकि अधिकार पाने के लिए लोकतंत्र में वोट ही सबसे ताकतवर हथियार होता है, उसका वे इस्तेमाल कर रहे हैं। सीधा सा फंडा है कि वोट उसी को जो हक दे।

हाल में ही योगी सरकार से तीन अति पिछड़ा वर्ग के कैबिनेट मंत्रियों ने इस्तीफा दिया और वे समाजवादी पार्टी में शामिल हुए हैं। क्या समाजवादी पार्टी अति पिछड़ा वर्ग को ज्यादा स्पेस दे रही है या बीजेपी के मुकाबले समाजवादी पार्टी के सत्ता में आने की गुंजाइश ज्यादा दिख रही है?

मैं इन दोनों संभावनाओं को नहीं मानता। जहां तक तीन मंत्रियों के बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी में जाने का सवाल है, उसकी सचाई यह है कि अभी तक ये लोग सरकार में रसगुल्ले का मजा ले रहे थे। रसगुल्ले का मोह छोड़कर अगर ये लोग दो या तीन साल पहले बीजेपी से बाहर निकले होते तब तो यह बात मानी जा सकती थी कि इनके दिल में अति पिछड़ा वर्ग के लिए दर्द है, इसलिए उन्होंने सत्ता को ठोकर मार दी। लेकिन जब चुनाव की तारीख आ गई, आचार संहिता के चलते सरकारी गाड़ी का भी इस्तेमाल नहीं कर सकते तो कह रहे हैं कि बीजेपी अति पिछड़ा वर्ग विरोधी है। ऐसे में इनकी बात पर कौन भरोसा करेगा?

वैसे अति पिछड़ा वर्ग के ज्यादातर नेताओं के लिए कहा जाता है कि वे बात समाज की करते हैं लेकिन उनकी फिक्र अपने बेटे-बेटियों को संसद, विधानसभा में भेजने की होती है। इसीलिए वे बड़े राजनीतिक दलों के साथ मोलभाव करते रहते हैं?

मैं अपनी बात करता हूं। मेरा बेटा समाजवादी पार्टी से सांसद था। समाजवादी पार्टी उसे दोबारा टिकट भी दे रही थी और हमसे पूछ भी रही थी कि और कितने टिकट चाहिए। लेकिन मुझे टिकट नहीं चाहिए था। मैंने अपने समाज से जो वादा किया हुआ है, जिसकी लड़ाई मैं बरसों से लड़ रहा हूं, मुझे उसकी फिक्र ज्यादा है। अगर उसकी फिक्र नहीं होती और पुत्र मोह तक ही मेरी राजनीति होती तो समाजवादी पार्टी में बना रहता।

आपके बारे में भी यह कहा जाता है कि आप पाला बदलते रहते हैं?

मैं तो खुले मंच से कहता हूं कि हमने समय-समय पर सबको समर्थन देकर देखा है। कांग्रेस को समर्थन किया लेकिन धोखा मिला। बीएसपी को समर्थन किया, धोखा ही मिला। समाजवादी पार्टी को तो अपना बेटा ही दे दिया लेकिन वहां से भी धोखा मिला। अगर धोखे नहीं मिल रहे होते तो हमें बीजेपी में जाने की जरूरत ही नहीं होती। लेकिन समाज की जो लड़ाई है, उसमें फिलहाल किसी एक बड़े दल का साथ लेना जरूरी है। हम समाज की लड़ाई को बंद नहीं कर सकते तो हमें बीजेपी का साथ लेना जरूरी लगा।

लेकिन बीजेपी का साथ लेने के बाद भी आपकी जो मांगें हैं, उनमें से कोई एक भी पूरी नहीं हुई। खासतौर पर निषाद समाज को अनुसूचित जाति का दर्जा देने वाली मांग?

जब मैं बीजेपी में आया तो पता चला कि निषाद समाज को अनुसूचित जाति का दर्जा देने के लिए कार्रवाई की जो बात अब तक बीएसपी या एसपी सरकारों ने कही थी, वह सब मुंहजुबानी थी। हकीकत में कहीं कोई फाइल दौड़ ही नहीं रही थी। बीजेपी के साथ आने पर मेरे दबाव में जो विधि सम्मत प्रक्रिया होती है, वह शुरू हुई है। आने वाले वक्त में यह मांग पूरी हो जाएगी, यह बात मैं पूरे दावे के साथ कह सकता हूं।

आपने बीजेपी से डेप्युटी सीएम का पद मांगा था लेकिन बीजेपी ने आपको एमएलसी बना दिया। एमएलसी बनने के बाद डेप्युटी सीएम वाली मांग बरकरार है या वह खत्म हो गई?

मैंने पहले ही कहा कि हम अपने समाज की जिन मांगों को लेकर लड़ रहे हैं, वह पूरी होनी चाहिए। हमें कोई पद न मिले, हमसे एमएलसी से भी इस्तीफा ले लिया जाए लेकिन हमारे समाज की जो जरूरत है, वह अगर पूरी हो जाती है तो हमें स्वीकार है। हमें पद का कोई मोह नहीं है।

गठबंधन में आपको जितनी सीट मिल रही हैं, उससे संतुष्ट हैं आप?

अब जब हम गठबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं तो सारी 403 सीटें हमारी हैं।

बिहार की एक पार्टी है, जो निषाद समाज की ही नुमाइंदगी करती है, वह भी यूपी चुनाव लड़ रही है। वह आपका कितना नुकसान कर सकती है?

उससे हमारा कोई नुकसान नहीं होने वाला। समाज जानता है कि उसका वकील कौन है।