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यूपी चुनाव 2022: हमारी पहचान ताजमहल की कोई बात नहीं करता, पर्यटन से जुड़े लोगों ने बयां किया दर्द

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ताजमहल के सेंट्रल टैंक पर सोमवार सुबह आठ बजे से फोटोग्राफर पहुंचे तो कोहरे में ताज दिखा नहीं। दोपहर तक इनमें से अधिकांश की बोहनी भी नहीं हुई। ताज की प्रसिद्ध डायना बेंच के पास ताजमहल के फोटोग्राफरों से संवाद किया तो उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमण काल के 22 महीनों से वह रोजी-रोटी के लिए परेशान हैं। जब ताज बंद हुआ तो उन्हें व्यवसाय बदलना पड़ा। दोबारा ताज खुलने पर उम्मीद बंधी कि सरकार से भी कुछ राहत मिलेगी लेकिन कोरोना प्रोटोकॉल के नाम पर बंदिशें लगा दी गईं।

ताजनगरी में चार लाख लोगों को रोजगार देने वाले पर्यटन उद्योग पर कोरोना के बाद से छाए काले बादल छंटने का नाम नहीं ले रहे। चुनावी दौर में पर्यटन से जुड़े लोगों को उम्मीद थी कि चार लाख लोगों के वोट की खातिर पर्यटन और ताजमहल पार्टियों के एजेंडे में शामिल होगा, लेकिन न उनके दर्द पर मरहम की बात की गई न पर्यटन की पहचान ताजमहल का कोई जिक्र इस चुनाव में किसी दल ने किया है।

ताज की प्रसिद्ध डायना बेंच के पास  सोमवार को ताजमहल के फोटोग्राफरों से संवाद किया तो उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमण काल के 22 महीनों से वह रोजी-रोटी के लिए परेशान हैं। जब ताज बंद हुआ तो उन्हें व्यवसाय बदलना पड़ा। दोबारा ताज खुलने पर उम्मीद बंधी कि सरकार से भी कुछ राहत मिलेगी लेकिन कोरोना प्रोटोकॉल के नाम पर बंदिशें लगा दी गईं।

पुरातत्व स्मारक फोटोग्राफर एसोसिएशन अध्यक्ष सर्वोत्तम सिंह बोले कि स्मारकों से 500 से ज्यादा फोटोग्राफरों के परिवारों की रोजी-रोटी चलती है। तीन हजार से ज्यादा गाइड और चार लाख लोग होटल, एंपोरियम, रेस्टोरेंट, टूर ऑपरेटर व्यवसाय से जुड़े हैं लेकिन चुनावी मौकेपर भी किसी दल के एजेंडे में ताज और पर्यटन उद्योग नहीं है।

सर्वोत्तम की हां में हां मिलाते हुए दीपक सोन ने कहा कि कोरोना काल में किसी ने टैक्सी चलाई तो किसी ने दवाओं की दुकान पर काम किया। न भत्ता मिला न लाइसेंस फीस से निजात मिली। अजीत चौहान ने बताया कि वर्ष 2017 के चुनाव में आगरा के लिए अलग घोषणा पत्र सपा ने जारी किया था, इस बार वह भी नहीं है। सलाउद्दीन और दीपांशु बोले कि आगरा और ताजमहल किसी के एजेंडे में नहीं है। अजीत चौहान ने कहा कि कोरोना की तीसरी लहर ने फिर कारोबार खत्म कर दिया। पर्यटक ही नहीं, तो फोटोग्राफी किसकी करें।

कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर ने एकाएक 15 दिनों में ही पूरे कारोबार को धड़ाम कर दिया। दीपोत्सव के बाद सैलानी बढ़े तो नवंबर और दिसंबर में बंद होटल, रेस्टोरेंट खुल गए। स्टाफ भी बुला लिया। लेकिन एक जनवरी के बाद जिस तेजी से सैलानी गिरे, फिर से होटल, रेस्टोरेंट बंद करने की नौबत आ गई।