25-1-2022
कभी-कभी इतिहास बदलने के लिए एक कदम ही पर्याप्त होता है और लगता है भारतीय नौसेना ने अब वो कदम उठाने का निर्णय ले लिया है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिवस के 125 वर्ष पूरे होने के शुभ अवसर पर भारतीय नौसेना ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में घोषणा की है कि गणतंत्र दिवस परेड में नौसेना की झांकी में न केवल भारत के नए स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर, ढ्ढहृस् विक्रांत की झलकी दिखाई जाएगी, अपितु 1946 में हुए रॉयल इंडियन नेवी क्रांति को भी चित्रित किया जाएगा। रॉयल इंडियन नेवी के ऐतिहासिक विद्रोह अब पुन: भारतीय इतिहास का केंद्र बनेगा। उसे अब पुन: लाईमलाइट मिलेगी, और जिस देश के लिए हजारों नौसैनिकों ने अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया, उसे अब वास्तव में उनका उचित सम्मान मिलेगा।
जब हर जगह जय हिन्द और वन्दे मातरम का उद्घोष होने लगा और इसका असर ऐसा पड़ा कि ब्रिटिश इंडियन आर्मी के सबसे कर्तव्यनिष्ठ गोरखा सिपाही तक अपने ही भाइयों पर गोली चलाने से मना करने लगे। उनके लिए राष्ट्रवाद सर्वोपरि था। 20 फरवरी 1946 तक भारतीय नौसेना ने गेटवे ऑफ इंडिया समेत सम्पूर्ण बॉम्बे को घेर लिया था। अब यह आर या पार की लड़ाई थी।
यदि उस समय सरदार पटेल ने हस्तक्षेप न किया होता, तो ऐसी खूनी क्रांति होती कि ब्रिटिश साम्राज्यवादियों की अगली सात पीढिय़ां इसका उल्लेख करने से पूर्व सिहर उठती। ये क्रांति रॉयल इंडियन नेवी से अब रॉयल इंडियन एयर फोर्स तक आ पहुंची और कुछ वर्षों बाद जब पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली भारत यात्रा पर आए, तो उन्होंने इस बात को स्वीकारा कि यह रॉयल इंडियन नेवी के विद्रोह का ही परिणाम था कि अंग्रेज़ों को भारत छोडऩे पर विवश होना पड़ा। आज जब भारतीय नौसेना ने इस इतिहास के इस महत्वपूर्ण भाग को श्रद्धांजलि देने का निर्णय किया, तो ये न केवल प्रशंसनीय है, अपितु भारतीय इतिहास के असली नायकों को उनका वास्तविक सम्मान मिलेगा। अब इतिहास का राजा वही बनेगा, जो योग्य होगा!
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