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Composition of Vande Mataram

वंदे मातरम् की रचना बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा की गई थी। उन्होंने 7 नवंबर, 1876 को बंगाल के कांतल पाडा नामक गांव में इस गीत की रचना की थी। वंदे मातरम् गीत के प्रथम दो पद संस्कृत में तथा शेष पद बांग्ला में थे।
1870 के दौरान अंग्रेज हुक्मरानों नेगॉड सेव क्वीन गीत गाया जाना अनिवार्य कर दिया था। अंग्रेजों के इस आदेश से बंकिमचंद्र चटर्जी को, जो तब एक सरकारी अधिकारी थे, बहुत ठेस पहुंची और उन्होंने 1876 में इसके विकल्प के तौर पर संस्कृत और बांग्ला के मिश्रण से एक नए गीत की रचना की और उसका शीर्षक दियावंदेमातरम् शुरुआत में इसके केवल दो पद रचे गए थे, जो केवल संस्कृत में थे।
इस गीत का प्रकाशन 1882 में बंकिमचंद्र के उपन्यास आनंद मठ में अंतर्निहित गीत के रूप में हुआ था। इस उपन्यास में यह गीत भवानंद नाम के संन्यासी द्वारा गाया गया है। इसकी धुन यदुनाथ भट्टाचार्य ने बनाई थी।
बंगाल में चले आजादी के आंदोलन में विभिन्न रैलियों में जोश भरने के लिए यह गीत गाया जाने लगा। धीरेधीरे यह गीत लोगों में लोकप्रिय हो गया। ब्रिटिश हुकूमत इसकी लोकप्रियता से सशंकित हो उठी और उसने इस पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करना शुरू कर दिया।
रवींद्रनाथ टैगोर ने इस गीत को स्वरबद्ध किया और पहली बार 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में यह गीत गाया गया। अरबिंदो घोष ने इस गीत का अंग्रेजी में और आरिफ मोहम्मद खान ने उर्दू में अनुवाद किया।
वंदेमातरम् का स्थान राष्ट्रीय गान जन गण मन के बराबर है। यह गीत स्वतंत्रता की लड़ाई में लोगों के लिए प्ररेणा का स्रोत था।
1901 में कलकत्ता में हुए एक अन्य अधिवेशन में चरनदास ने यह गीत पुन: गाया।
1905 में बनारस में हुए अधिवेशन में इस गीत को सरला देवी ने स्वर दिया। बैठक में गीत को राष्ट्रगीत का दजऱ्ा प्रदान किया गया। बंगभंग आंदोलन मेंवंदे मातरम् राष्ट्रीय नारा बना।
1906 मेंवंदे मातरम् देवनागरी लिपि में प्रस्तुत किया गया। कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने इसका संशोधित रूप प्रस्तुत किया।
कांग्रेस के अधिवेशनों के अलावा भी आजादी के आंदोलन के दौरान इस गीत के प्रयोग के काफी उदाहरण मौजूद हैं। लाला लाजपत राय ने लाहौर से जिस जर्नल का प्रकाशन शुरू किया, उसका नाम वंदेमातरम रखा।
अंग्रेजों की गोली का शिकार बनकर दम तोडऩे वाली आजादी की दीवानी मातंगिनी हजारा की जुबान पर आखिरी शब्द वंदे मातरम ही थे।
1907 में मैडम भीकाजी कामा ने जब जर्मनी के स्टटगार्ट में तिरंगा फहराया तो उसके मध्य में वंदे मातरम ही लिखा हुआ था।
1920 तक सुब्रह्मण्यम भारती तथा दूसरों के हाथों विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनूदित होकर यह गीत राष्ट्रगान की हैसियत पा चुका था।
1923 में कांग्रेस अधिवेशन में वंदे मातरम् के विरोध में स्वर उठे। लोग इस गीत की मूर्तिपूजकता को लेकर आपत्ति उठाने लगे। तब पंडित जवाहर लाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सुभाष चंद्र बोस और आचार्य नरेंद्र देव की समिति ने 28 अक्टूबर 1937 को कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में पेश अपनी रिपोर्ट में इस राष्ट्रगीत के गायन को अनिवार्य बाध्यता से मुक्त रखते हुए कहा था कि इस गीत के शुरुआती दो पद ही प्रासंगिक हैं, इस समिति का मार्गदर्शन रवींद्र नाथ टैगोर ने किया। इस गीत के उन अंशों को छांट दिया, जिनमें बुतपरस्ती के भाव ज़्यादा प्रबल थे और गीत के संपादित अंश को राष्ट्रगान के रूप में अपना लिया।
14 अगस्त 1947 की रात संविधान सभा की पहली बैठक का प्रारंभ वंदे मातरम के साथ और समापन जन गण मन के साथ हुआ।
15 अगस्त, 1947 को प्रात: 6:30 बजे आकाशवाणी से पंडित ओंकारनाथ ठाकुर का रागदेश में निबद्ध वंदेमातरम के गायन का सजीव प्रसारण हुआ था।
आजादी की सुहानी सुबह में देशवासियों के कानों में राष्ट्रभक्ति का मंत्र फूंकने में वंदेमातरम की भूमिका अविस्मरणीय थी। ओंकारनाथ जी ने पूरा गीत स्टूडियो में खड़े होकर गाया था; अर्थात उन्होंने इसे राष्ट्रगीत के तौर पर पूरा सम्मान दिया। इस प्रसारण का पूरा श्रेय सरदार बल्लभ भाई पटेल को जाता है। पंडित ओंकारनाथ ठाकुर का यह गीतदि ग्रामोफोन कंपनी ऑफ इंडिया के रिकॉर्ड संख्या स्ञ्जष्ट 048 7102 में मौजूद है।
24 जनवरी, 1950 को संविधान सभा ने निर्णय लिया कि स्वतंत्रता संग्राम मेंवंदेमातरम गीत की उल्लेखनीय भूमिका को देखते हुए इस गीत के प्रथम दो अंतरों को जन गण मन के समकक्ष मान्यता दी जाए। डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा का यह निर्णय सुनाया।
वंदेमातरम को राष्ट्रगान के समकक्ष मान्यता मिल जाने पर अनेक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय अवसरों पर वंदेमातरम गीत को स्थान मिला। आज भीआकाशवाणी के सभी केंद्र का प्रसारण वंदेमातरम से ही होता है। कई सांस्कृतिक और साहित्यिक संस्थाओं मेंवंदेमातरम गीत का पूरापूरा गायन किया जाता है।
15 सितंबर 1959 को जब दूरदर्शन शुरू हुआ तो सुबहसुबह शुरुआत वंदे मातरम से ही होती थी।
2003 में बीबीसी वल्र्ड सर्विस द्वारा आयोजित एक सर्वे में, जिसमें उस समय तक के सबसे मशहूर दस गीतों का चयन करने के लिए दुनिया भर से लगभग 7000 गीतों को चुना गया था और बीबीसी के अनुसार 155 देशों/द्वीप के लोगों ने इसमें मतदान किया था उसमें वन्दे मातरम् शीर्ष के 10 गीतों में दूसरे स्थान पर था!
2005 में वंदेमातरम के सौ साल पूरे होने के उपलक्ष्य में एक साल के समारोह का आयोजन किया गया। 7 सितंबर, 2006 में इस समारोह के समापन के अवसर पर मानव संसाधन मंत्रालय  ने इस गीत को स्कूलों में गाए जाने पर बल दिया। हालांकि इसका विरोध होने पर उस समय केमानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने संसद में कहा किगीत गाना किसी के लिए आवश्यक नहीं किया गया है, यह स्वेच्छा पर निर्भर करता है।