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हाईकोर्ट : दुष्कर्म के आरोपों की प्रमाणिकता के लिए चिकित्सकीय जांच अनिवार्य, सगे भाइयों की जमानत अर्जी मंजूर

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सामूहिक बलात्कार के मामले में दो सगे भाइयों की जमानत अर्जी मंजूर कर ली है। न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी की पीठ ने आरोपियों को जमानत देते हुए कहा कि यह एक गंभीर मामला है, जिसमें उपस्थित परिस्थितियों में आरोपों की प्रमाणिकता स्थापित करना आवश्यक है।

दुष्कर्म के आरोप को प्रमाणित करने के लिए पीड़िता की चिकित्सकीय जांच अनिवार्य है। मेडिकल जांच उसकी पसंद के अनुसार नहीं हो सकती। कोर्ट ने यह आदेश सुरेश कुमार उर्फ सुरेश कुमार यादव की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।

कोर्ट ने विचारण के दौरान पाया कि पीड़िता ने मेडिकल जांच कराने से इनकार कर दिया है। मामले में विशेष न्यायाधीश एससी/एसटी कोर्ट की ओर से पारित आदेश की वैधता को चुनौती देते हुए दो याचिकाएं दायर की गईं थीं।

विशेष अदालत ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ  दर्ज मामले में जमानत अर्जी को खारिज कर दिया था। नैनी थाने में दर्ज प्राथमिकी में लगाए गए आरोपों के अनुसार पीड़िता का कुछ अज्ञात लोगों ने अपहरण कर बेहोश किया और उसके बाद उसे एक कमरे में बंद कर दिया। उसे शराब पिलाई और उसके साथ बार-बार दुष्कर्म करते रहे। एक सप्ताह बाद पीड़िता को रेलवे क्रासिंग के पास एक गंभीर स्थिति में छोड़ दिया।

बयान पर आंख मूंदकर नहीं किया जा सकता भरोसा

उसने अपने साथ सामूहिक बलात्कार में सभी तीन नामित व्यक्तियों (सगे भाइयों) की पहचान की। महत्वपूर्ण बात यह है कि अपीलकर्ताओं के वकील ने कोर्ट को बताया कि पीड़िता और उसकी मां को इस प्रकार की एफआईआर करने की आदत है। कोर्ट ने देखा कि पीड़िता ने खुद की चिकित्सकीय जांच कराने से इनकार कर दिया है।

कोर्ट ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी विभिन्न निर्णयों में स्पष्ट रूप से कहा है कि स्वतंत्र दस्तावेजी सबूत या अन्य विश्वास पैदा करने वाली सामग्री के बिना सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत पीड़ितों द्वारा दिए गए बयान पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए। पीठ ने कहा कि यह संभव नहीं कि तीन सगे भाई एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार करें। कोर्ट ने अपील की अनुमति देते हुए याची की जमानत अर्जी मंजूर कर ली।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सामूहिक बलात्कार के मामले में दो सगे भाइयों की जमानत अर्जी मंजूर कर ली है। न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी की पीठ ने आरोपियों को जमानत देते हुए कहा कि यह एक गंभीर मामला है, जिसमें उपस्थित परिस्थितियों में आरोपों की प्रमाणिकता स्थापित करना आवश्यक है।

दुष्कर्म के आरोप को प्रमाणित करने के लिए पीड़िता की चिकित्सकीय जांच अनिवार्य है। मेडिकल जांच उसकी पसंद के अनुसार नहीं हो सकती। कोर्ट ने यह आदेश सुरेश कुमार उर्फ सुरेश कुमार यादव की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।

कोर्ट ने विचारण के दौरान पाया कि पीड़िता ने मेडिकल जांच कराने से इनकार कर दिया है। मामले में विशेष न्यायाधीश एससी/एसटी कोर्ट की ओर से पारित आदेश की वैधता को चुनौती देते हुए दो याचिकाएं दायर की गईं थीं।

विशेष अदालत ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ  दर्ज मामले में जमानत अर्जी को खारिज कर दिया था। नैनी थाने में दर्ज प्राथमिकी में लगाए गए आरोपों के अनुसार पीड़िता का कुछ अज्ञात लोगों ने अपहरण कर बेहोश किया और उसके बाद उसे एक कमरे में बंद कर दिया। उसे शराब पिलाई और उसके साथ बार-बार दुष्कर्म करते रहे। एक सप्ताह बाद पीड़िता को रेलवे क्रासिंग के पास एक गंभीर स्थिति में छोड़ दिया।