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UP Election: वेस्ट यूपी की वो सीट जिसने दिए कई सियासी धुरंधर, लेकिन कोई भी नहीं कर सका एकछत्र राज

मेरठ
उत्तर प्रदेश के सियासी धुरंधरों की जन्मस्थली होने के नाते कई बार सत्ता का रास्ता किठौर से होकर गुजरता है। यहां 2002 से सपा से हैट्रिक लगा रहे तत्कालीन कैबिनेट मंत्री शाहिद मंजूर को 2017 के चुनाव में बीजेपी के सत्यवीर त्यागी ने शिकस्त दी थी। हालांकि इस सीट पर किसी एक राजनीतिक दल का कब्जा नहीं रहा। यहां के आवाम ने सपा, बसपा, भाजपा, कांग्रेस और लोकदल को प्रतिनिधत्व करने का मौका दिया।
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किठौर विधानसभा में तीन नगर पंचायत किठौर, शाहजहांपुर और खरखौदा, तीन ब्लाक माछरा, खरखौदा और रजपुरा आते हैं। जिनके वोटर क्षेत्र का विधायक चुनते हैं। एक लाख 17 हजार मुस्लिम, 70 हजार दलित, जाटव, करीब 20-20 हजार त्यागी-ब्राह्माण, 30 से 40 हजार गुर्जर, जाट 15 हजार, ठाकुर करीब 25 हजार और करीब 50 हजार पाल, कश्यप, प्रजापति, आदि की विधानसभा हैं।

कई दिग्गजों का रहा ठिकाना
1977 में खरखौदा से अब्दुल हलीम, मवाना से रामजीलाल सहायक, मुरादनगर से सखावत हुसैन और मेरठ शहर से चार बार विधायक रहे मंजूर अहमद जैसे दिग्गज किठौर के ही मूल निवासी थे। बसपा से दो बार राज्यसभा सांसद और प्रदेश अध्यक्ष रहे मुनकाद अली भी किठौर के हैं। किठौर की सियासी धुरी कई वर्षों तक अब्दुल हलीम और मंजूर अहमद परिवार के बीच घूमती रही। मंजूर अहमद कांग्रेस के टिकट पर यहां से विजयी हुए तो अब्दुल हलीम तत्कालीन खरखौदा सीट पर जीतकर मंत्री बने। 1989 में अब्दुल हलीम के बेटे परवेज हलीम यहां जनता दल से विधायक चुने गए।

1993 में बीजेपी के रामकृष्ण वर्मा ने उन्हें हराया। जिसका बदला परवेज हलीम ने 1996 में रामकृष्ण वर्मा को हराकर लिया। 2002 में शाहिद मंजूर ने अपने पिता की विरासत संभालते हुए बसपा के केदारनाथ को हराया और 2017 तक सपा से जीत की हैट्रिक लगाई। प्रदेश में वह कैबिनेट मंत्री रहे। 2017 के चुनाव में समीकरण फिर बदले और भाजपा के सत्यवीर त्यागी ने शाहिद को हराकर विधायक चुने गए। इस बार सपा ने शाहिद मंजूर, बसपा ने केपी मावी, कांग्रेस ने बबीता गुर्जर को मैदान में उतारा है। भाजपा ने अभी प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है।

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