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UP Election 2022 : कब और कैसे लिखी गई स्वामी प्रसाद और दारा सिंह चौहान के इस्तीफे की पटकथा? मंत्री ने खुद इस ओर किया था इशारा

10 फरवरी को उत्तर प्रदेश में पहले चरण का चुनाव होना है। इससे पहले भाजपा में पार्टी छोड़ने वालों की भगदड़ सी मच गई है। एक के बाद एक इस्तीफे हो रहे हैं। दो मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान के अलावा विधायक भगवती सागर, बृजेश प्रजापति, रोशन लाल वर्मा, विनय शाक्य, राधा कृष्ण शर्मा, राकेश राठौर, माधुरी वर्मा, जय चौबे, अवतार सिंह भड़ाना, मुकेश वर्मा भी इस्तीफा दे चुके हैं।

पार्टी सूत्रों की मानें तो अभी 10 से 12 और विधायक भाजपा का साथ छोड़ सकते हैं। ये इस्तीफे अचानक नहीं हो रहे हैं। इसकी पटकथा दो महीने पहले ही लिखी जा चुकी है। दारा सिंह चौहान ने इस ओर नवंबर में ही इशारा कर दिया था।

पहले जान लीजिए क्यों पार्टी छोड़ रहे हैं विधायक और मंत्री?
दरअसल भाजपा विधायकों की बेचैनी उस वक्त से ही शुरू हो गई थी, जब अमित शाह, नड्डा और योगी ने अलग-अलग स्तर पर विधायकों की समीक्षा शुरू करवाई। नवंबर में इसकी रिपोर्ट पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व और प्रदेश नेतृत्व को मिल चुकी थी। रिपोर्ट सामने आई कि करीब 100 से 150 भाजपा विधायकों से उनके क्षेत्र के लोग नाखुश हैं। कुछ विधायक जनता का काम नहीं करते और कुछ केवल गलत बयानबाजी में जुटे रहते हैं।

इस रिपोर्ट के आधार पर पार्टी के अंदर ही सुगबुगाहट होने लगी कि इन विधायकों का इस बार टिकट कट सकता है। मीडिया में भी ये रिपोर्ट आ गई। इसके बाद से विधायकों की बेचैनी और भी बढ़ गई। सभी ने अपने-अपने स्तर पर पता करना शुरू कर दिया। जिन विधायकों को थोड़ी भी आशंका हुई कि उनका टिकट कट सकता है वह नया ठिकाना तलाशने लगे। दिसंबर से यह सिलसिला शुरू भी हो गया।

इन विधायकों ने पहले छोड़ी पार्टी
1. बदायूं जिले के बिल्सी से विधायक राधा कृष्ण शर्मा।
2. सीतापुर से विधायक राकेश राठौर।
3. बहराइच के नानपारा से विधायक माधुरी वर्मा।
4. संतकबीरनगर से भाजपा विधायक जय चौबे।

इसके बाद इन्होंने दिया इस्तीफा
5. स्वामी प्रसाद मौर्य, कैबिनेट मंत्री
6. भगवती सागर, विधायक, बिल्हौर कानपुर
7. बृजेश प्रजापति, विधायक
8. रोशन लाल वर्मा, विधायक
9. विनय शाक्य, विधायक
10. अवतार सिंह भड़ाना, विधायक
11. दारा सिंह चौहान, कैबिनेट मंत्री
12. मुकेश वर्मा, विधायक

मंत्रियों ने क्यों दिया इस्तीफा?
1. स्वामी प्रसाद मौर्य : 2017 विधानसभा चुनाव से पहले ही स्वामी भाजपा में आए थे। उसके पहले वह बहुजन समाज पार्टी में थे। स्वामी को पार्टी में लाने वाले डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य थे। तब केशव पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे। उस चुनाव में केशव का पार्टी में काफी दबदबा था। उन्होंने बड़े पैमाने पर गैर यादव ओबीसी नेताओं और वोटर्स को पार्टी से जोड़ने का काम किया था। केशव के चलते ही स्वामी प्रसाद मौर्या और उनके बेटे को भी भाजपा से टिकट मिल गया। स्वामी तो जीत गए, लेकिन बेटा भाजपा की लहर के बावजूद हार गया। 2019 लोकसभा में केशव के चलते ही स्वामी की बेटी संघमित्रा मौर्या को भाजपा से टिकट मिला और वह जीत भी गईं।

इस बार स्वामी को तो टिकट मिल रहा था, लेकिन उनके बेटे और बहू की बात नहीं बन रही थी। पार्टी सूत्रों की माने तो स्वामी खुद के साथ-साथ बेटे और बहू के लिए भी टिकट मांग रहे थे। भाजपा ने इससे इंकार कर दिया था। यही कारण है कि स्वामी ने मौका देखते ही दांव खेल दिया।

2. दारा सिंह चौहान : योगी सरकार में वन एवं पर्यावरण मंत्री दारा सिंह चौहान मौका और माहौल देखकर राजनीतिक फैसला लेते हैं। राजनीतिक विश्लेषक प्रो. एमपी सिंह कहते हैं, ‘चौहान पहले ही भांप लेते हैं कि उनके क्षेत्र में क्या होने वाला है? यही कारण है कि 2014 में मिली हार के बाद उन्होंने पाला बदलने में देरी नहीं की। 2015 में ही वह भाजपा में शामिल हो गए। उसके एक साल के अंदर भाजपा पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया।’

प्रो. एमपी सिंह आगे बताते हैं, ‘ राष्ट्रीय स्तर पर नेता बनाने के बाद दारा सिंह चौहान को 2017 में मऊ के मधुबनी से चुनाव भी लड़ाया। जीतकर आने पर मंत्री भी बनाया। इस बार चौहान को डर था कि कहीं मऊ में सपा के प्रभाव से वह हार न जाएं। भाजपा के सर्वे में चौहान की रिपोर्ट भी कुछ खास नहीं थी। यही कारण है कि उन्होंने मौका देखते ही पाला बदलने का खेल कर दिया।’

कब इस्तीफे का फैसला ले लिया था?
सूत्रों के अनुसार, 22 नवंबर से ही स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के संपर्क में थे। दोनों ने उस दिन सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव को जन्मदिन की बधाई दी और वहीं से इस्तीफे की पटकथा लिखनी शुरू हो गई थी। दारा सिंह चौहान ने सोशल मीडिया के जरिए इस ओर इशारा भी किया था। चौहान का आखिरी ट्वीट भी 22 नवंबर का है। वह ट्वीट भी सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव को बधाई देने का है। बधाई देने के लिए चौहान ने जो पोस्टर तैयार करवाया था, उससे भाजपा का सिंबल यानी कमल का फूल हटवाकर लाल रंग शामिल कर लिया था।