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आगरा वृद्धाश्रम में महिला की मौत: जिंदा रहते नहीं मिला बेटों का प्यार, शव के लिए हुई खूब तकरार

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संवाद न्यूज एजेंसी, आगरा
Published by: आगरा ब्यूरो
Updated Wed, 05 Jan 2022 11:44 AM IST

सार
मां जब जिंदा थी तब बेटे मिलने नहीं आए, मौत के बाद अंतिम संस्कार पर झगड़ा होने लगा। पुलिस ने मामले में दखल दिया और महिला का अंतिम संस्कार करवाया।

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जिंदा रहते जिन बेटों ने मां को घर से बेघर कर दिया, वही बेटे रामलाल वृद्धाश्रम से मां का शव ले जाने के लिए आपस में लड़ते रहे। दो बेटों में जमकर तकरार हुई। दो बेटियां भी अपने पति के साथ आश्रम पहुंच गई। पांच घंटों तक मामला निपटने के इंतजार में मां का शव जमीन पर रखा रहा। अंतिम सांस तक बड़े बेटे को याद करने वाली मां की मौत के बाद भी वह नहीं पहुंचा। पांच घंटे बाद पुलिस के हस्तक्षेप से मामले का निपटारा हुआ। 
मंगलवार को हुआ था देहांत
नया बांस, लोहामंडी की रहने वाली 87 साल की रामदुलारी अग्रवाल का मंगलवार की सुबह देहांत हो गया। रामदुलारी को चार साल पहले उनके  बेटों ने बेघर कर दिया था। मंदिरों और सड़कों पर भटकने के बाद रामदुलारी को रामलाल वृद्धाश्रम में शरण मिली थी। मंगलवार को सुबह देहांत होने के बाद छोटा बेटा संतोष शव ले जाने की जिद करने लगा। इस पर मंझले बेटे राजकुमार ने अपना हक जताया। इतनी देर में बेटी उर्मिला सिंघल और आशा अग्रवाल भी अपने-अपने पति के साथ आश्रम पहुंच गई। सुबह नौ बजे से तकरार शुरू हो गई। दोपहर दो बजे आश्रम प्रबंधन को मजबूरन पुलिस बुलानी पड़ी। पांच घंटे बाद यह फैसला हुआ कि सबसे छोटा बेटा शव को ले जाएगा, जबकि बीच वाला बेटा राजकुमार उनका दाह संस्कार करेगा। 
कभी मिलने नहीं आए बेटे 
आश्रम के अध्यक्ष शिव प्रसाद शर्मा ने बताया कि चार साल में तीनों में से एक भी बेटा अपनी मां से मिलने नहीं आया। हर त्योहार पर रामदुलारी अपने सभी बेटों का बेसब्री से इंतजार करती थी। 
बड़े बेटे का करती थीं इंतजार 
आश्रम के संयोजक सुनील कुमार जैन ने बताया कि पूरा प्रकरण काफी दुखद रहा। रामदुलारी कहती थीं कि उनका बड़ा बेटा एक दिन उन्हें लेने जरूर आएगा। लेकिन जिंदा रहते हुए उनकी यह उम्मीद पूरी नहीं हो सकी। 

विस्तार

जिंदा रहते जिन बेटों ने मां को घर से बेघर कर दिया, वही बेटे रामलाल वृद्धाश्रम से मां का शव ले जाने के लिए आपस में लड़ते रहे। दो बेटों में जमकर तकरार हुई। दो बेटियां भी अपने पति के साथ आश्रम पहुंच गई। पांच घंटों तक मामला निपटने के इंतजार में मां का शव जमीन पर रखा रहा। अंतिम सांस तक बड़े बेटे को याद करने वाली मां की मौत के बाद भी वह नहीं पहुंचा। पांच घंटे बाद पुलिस के हस्तक्षेप से मामले का निपटारा हुआ। 

मंगलवार को हुआ था देहांत

नया बांस, लोहामंडी की रहने वाली 87 साल की रामदुलारी अग्रवाल का मंगलवार की सुबह देहांत हो गया। रामदुलारी को चार साल पहले उनके  बेटों ने बेघर कर दिया था। मंदिरों और सड़कों पर भटकने के बाद रामदुलारी को रामलाल वृद्धाश्रम में शरण मिली थी। मंगलवार को सुबह देहांत होने के बाद छोटा बेटा संतोष शव ले जाने की जिद करने लगा। इस पर मंझले बेटे राजकुमार ने अपना हक जताया। इतनी देर में बेटी उर्मिला सिंघल और आशा अग्रवाल भी अपने-अपने पति के साथ आश्रम पहुंच गई। सुबह नौ बजे से तकरार शुरू हो गई। दोपहर दो बजे आश्रम प्रबंधन को मजबूरन पुलिस बुलानी पड़ी। पांच घंटे बाद यह फैसला हुआ कि सबसे छोटा बेटा शव को ले जाएगा, जबकि बीच वाला बेटा राजकुमार उनका दाह संस्कार करेगा। 

कभी मिलने नहीं आए बेटे 

आश्रम के अध्यक्ष शिव प्रसाद शर्मा ने बताया कि चार साल में तीनों में से एक भी बेटा अपनी मां से मिलने नहीं आया। हर त्योहार पर रामदुलारी अपने सभी बेटों का बेसब्री से इंतजार करती थी। 

बड़े बेटे का करती थीं इंतजार 

आश्रम के संयोजक सुनील कुमार जैन ने बताया कि पूरा प्रकरण काफी दुखद रहा। रामदुलारी कहती थीं कि उनका बड़ा बेटा एक दिन उन्हें लेने जरूर आएगा। लेकिन जिंदा रहते हुए उनकी यह उम्मीद पूरी नहीं हो सकी।