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UP Election: निषादों को आरक्षण कैसे मिलेगा? योगी सरकार का यह कदम कितना प्रभावी है, जानिए क्या है पूरी प्रक्रिया

हाइलाइट्सयूपी के चुनावी मैदान में गरमाया है निषाद आरक्षण का मामलाअमित शाह की सभा में दिखा था आरक्षण के मामले पर आक्रोशनिषाद आरक्षण के मसले पर योगी सरकार ने केंद्र को लिखी है चिट्‌ठीआनन-फानन में आरक्षण देने से बढ़ सकता है राजनीतिक विवादलखनऊ
उत्तर प्रदेश में निषादों के आरक्षण का मामला अब एक बार फिर गरमाने लगा है। विधानसभा चुनाव से पहले निषाद आरक्षण के बवाल की तपिश केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी महसूस कर चुके हैं। 17 दिसंबर को अमित शाह की रैली में जो कुछ हुआ, उसके बाद इस मामले को विपक्ष ने भी लपक लिया। निषाद आरक्षण की मांग को लेकर मचे बवाल के बीच समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव भी कूदे और विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश साहनी भी। निषाद पार्टी अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद की नाराजगी पहले ही सामने आ चुकी थी। ऐसे में योगी सरकार की बैठकों के बाद लिखी गई चिट्‌ठी ने मामले को कुछ शांत जरूर करने का प्रयास किया है।

भाजपा ने निषादों को आरक्षण का वादा किया था। हालांकि, निषाद आरक्षण की मांग केवल उत्तर प्रदेश में नहीं हो रही है। बिहार और झारखंड से भी इस प्रकार की आवाज सामने आ रही है। ऐसे में केंद्र सरकार के स्तर पर इस प्रकार की किसी घोषणा से अन्य राज्यों से मांगों का उठाया जाना तय था। ऐसे में अब राज्य सरकार के स्तर पर निषाद आरक्षण की चर्चा शुरू की गई है। यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने निषाद आरक्षण को लेकर भारत सरकार के रजिस्‍ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्‍त को चिट्ठी लिखकर मार्गदर्शन मांगा है ऐसे में निषाद समाज को भी लगने लगा है कि बात कुछ आगे बढ़ी है। हालांकि, मराठा आरक्षण का मसला भी अब लोगों को याद आने लगा है।

प्रक्रिया को पूरा कराना होगा जरूरी
निषाद आरक्षण को लेकर योगी सरकार की चिट्‌ठी के बाद आरक्षण व्यवस्था में बदलाव की उम्मीद जताई जा रही है। हालांकि, किसी भी वर्ग को आरक्षण के दायरे में लाने के लिए आयोग का गठन करना होगा। उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में निषादों को ओबीसी का दर्जा मिला हुआ है। वे अब अनुसूचित जाति की श्रेणी के दर्जा की मांग कर रहे हैं। इसके लिए अनुसूचित जाति के लिए प्रावधानित आरक्षण लेबल में वृद्धि होगी या उसी में निषाद को एडजस्ट किया जाएगा, इसके लिए पूरी कवायद होनी है। अगर अनुसूचित जाति के लिए पूर्व से निर्धारित दायरे में निषादों को शामिल किया गया तो अन्य जातियां इसके विरोध में खड़ी हो जाएंगी। ऐसे में विवाद को बढ़ने से रोकने के लिए सरकार को पूरी प्लानिंग करनी होगी।

विवाद को कम करने की कोशिश
चुनावी मौसम में हर जाति वर्ग को साधने की कोशिश भाजपा करती दिख रही है। ऐसे में निषाद आरक्षण को लेकर कवायद को होता दिखाया जा रहा है। निषादों का भी मानना है कि अभी कुछ तो हो रहा है। अब तक तो उनके आरक्षण के मसले पर केवल बातें ही हो रही थी। पहली बार कागजी कार्रवाई शुरू हुई है। लेकिन, यह उनको भी पता है कि विवाद का समाधान इतनी जल्दी नहीं हो सकता है। वर्ष 1993 के मंडल कमीशन केस में सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की पीठ ने बताया था कि किस-किस आधार पर भारतीय संविधान के तहत आरक्षण दिया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने बाला जी मामले का जिक्र करते हुए कहा था कि जाति अपने आप में कोई आधार नहीं बन सकती। उसमें दिखाना पड़ेगा कि पूरी जाति ही शैक्षणिक और सामाजिक रूप से अन्य जातियों से पिछड़ी है। मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर मार्च 2015 में जाटों को यूपीए सरकार की ओर से दिए गए आरक्षण को रद्द कर दिया था।

मराठा आरक्षण भी है बड़ा उदाहरण
करीब एक दशक तक चले आंदोलन के बाद महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए की देवेंद्र फड़णवीस सरकार ने 2018 में इसके लिए राज्य सरकार ने कानून बनाया और मराठा समाज को नौकरियों और शिक्षा में 16 फीसदी आरक्षण दे दिया। जून 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसे कम करते हुए शिक्षा में 12 फीसदी और नौकरियों में 13 फीसदी आरक्षण फिक्स किया। हाईकोर्ट ने कहा कि अपवाद के तौर पर राज्य में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50 फीसदी आरक्षण की सीमा पार की जा सकती है।

मराठा आरक्षण का यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तो इंदिरा साहनी केस या मंडल कमीशन केस का हवाला देते हुए तीन जजों की बेंच ने इस पर रोक लगा दी। मामला बड़े बेंच को भेज दिया गया। इस केस में 9 जजों की बेंच ने कहा था कि आरक्षित सीटों, स्थानों की संख्या कुल उपलब्ध स्थानों के 50 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए। संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया है। अब इन तमाम बातों पर यूपी सरकार को गौर कर रही है।

जातिगत समीकरणों को साधने की कोशिश
निषादों की ओर से यूपी चुनाव में नारा दिया गया है, आरक्षण नहीं तो समर्थन नहीं। इसके बाद से योगी सरकार हरकत में है। हालांकि, सरकार जानती है कि निषाद समाज के आरक्षण की मांग को पूरा करने से पहले कानूनी पेचदगियों को दूर करने और अनुकूल वातावरण तैयार करने में समय लगेगा। अब जब यूपी चुनाव में दो-ढाई महीने का समय ही रह गया है, तब निषाद पार्टी अध्यक्ष संजय निषाद के बागी तेवरों के बाद यूपी सरकार हरकत में तो आ गई है। लेकिन, फिर भी यह सब इतनी जल्‍दी हो जाएगा इसे माना नहीं जा सकता।

ओम प्रकाश राजभर ने बोला है भाजपा पर हमला
इस बीच आरक्षण के संबंध में यूपी सरकार की ओर से केंद्र सरकार को भेजी गई ताजा चिट्ठी से यह तो साफ हुआ है कि योगी सरकार निषादों के आरक्षण की मांग पर आगे बढ़ रही है। वहीं, इस मामले पर राजनीति भी गरमाई हुई है। सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने करारा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि उन्होंने कहा कि भाजपा लोगों को आरक्षण के नाम पर गुमराह कर केवल उनका वोट हासिल करने का प्रयास कर रही है। दावा किया जा रहा है कि बिना विधानसभा में पास कराए आरक्षण देने का फायदा नहीं होगा।

आरक्षण की मांग को लेकर निषाद समाज की ओर से इस बार बढ़ा है आक्रोश