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कांग्रेस महासचिव और उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी ने महोबा रैली में बुंदेली बोली बोलकर भले ही बुंदेलियों को रिझाने की कोशिश की, लेकिन चर्चा इस बात की रही कि उन्हें चुनाव से ठीक पहले ही बुंदेलियों की याद क्यों आई। दरअसल, प्रियंका ने बुंदेलखंड के किसी भी जिले में इससे पहले कभी कोई जनसभा नहीं की थी।
जबकि, वो इससे पहले भी पार्टी का चुनावी चेहरा रही हैं। यूपी में वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भी प्रियंका महत्वपूर्ण भूमिका में थीं। राजनीति के जानकार बताते हैं कि कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र में कांग्रेस सफाये की स्थिति में पहुंच चुकी है।
पार्टी का प्रदर्शन लगातार खराब होने की वजह यहां की 52 विधानसभा सीटों का सूखा खत्म नहीं हो रहा है। स्थितियां दिन पर दिन खराब होती जा रही हैं। यही वजह है कि प्रियंका के चुनावी एजेंडे में बुंदेलखंड प्रमुख स्थलों में से एक है। वर्ष 2012 में कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र में कांग्रेस को 52 में से पांच सीटें मिली थीं।
इसमें एक सीट कानपुर के किदवईनगर की थी। वर्ष 2017 में कांग्रेस की स्थिति और खराब हो गई। इस चुनाव में कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र की 52 विधानसभा सीटों में से 47 भाजपा और चार सपा ने जीत लीं। कांग्रेस के खाते में छावनी, कानपुर की एकमात्र सीट आई थी। वर्ष 2022 का चुनाव प्रियंका की देखरेख में लड़ा जा रहा है। इसलिए बुंदेलखंड का सूखा प्रियंका और कांग्रेस दोनों की चिंता में शामिल है।
कांग्रेस महासचिव और उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी ने महोबा रैली में बुंदेली बोली बोलकर भले ही बुंदेलियों को रिझाने की कोशिश की, लेकिन चर्चा इस बात की रही कि उन्हें चुनाव से ठीक पहले ही बुंदेलियों की याद क्यों आई। दरअसल, प्रियंका ने बुंदेलखंड के किसी भी जिले में इससे पहले कभी कोई जनसभा नहीं की थी।
जबकि, वो इससे पहले भी पार्टी का चुनावी चेहरा रही हैं। यूपी में वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भी प्रियंका महत्वपूर्ण भूमिका में थीं। राजनीति के जानकार बताते हैं कि कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र में कांग्रेस सफाये की स्थिति में पहुंच चुकी है।
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