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काश नर्मदा-अमरकण्टक-रेवाखण्ड पहचान बन पाते!

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ऋतुपर्ण दवे

महोदय,   माँ नर्मदा और सोन का उद्गम स्थल अमरकण्टक स्वयं में एक तीर्थ है। पूरे देश में धार्मिक, पौराणिक मान्यताओं के आधारों पर जगहों के नाम बदलने का चलन तेजी से बढ़ा है। पिछले एक-डेढ़ दशक और वर्तमान में कई शहरों, नगरों यहां तक कि वार्डों के नाम भी बदल गए। लेकिन देश की एकमात्र पवित्र नदी जिसके दर्शन मात्र से मोक्ष की मान्यता है ‘नर्मदा’ का पूरे अंचल की आज भी अपनी पहचान दूसरे नामों से है।   यह न केवल थोड़ा अटपटा सा लगता है बल्कि कहें तो अस्वीकार्य भी है। जाना-माना तीर्थ, पर्यटन स्थल लेकिन चूँकि निरा आदिमजाति वनवासियों का यह बेहद सीधा व सरल क्षेत्र है इसलिए यहाँ न तो कभी किसी ने जरूरत समझी और न ही प्रयास हुए। वहीं नर्मदा और सोन  के नाम पर दूर-दूर संभाग, जिले हैं क्योंकि ये पवित्र नदियाँ वहाँ से निकलती मात्र हैं।   इसी विडंबना पर मैने एक तथ्यात्मक आलेख लिखा है जो कि विशेष व अलग है। विश्वास है कि जरूर प्रकाशन हेतु उपयोगी लगेगा और इसे स्थान देंगे। लेख दो फाण्ट्स में हैं फाइल 1 में यूनीकोड फाण्ट में तथा फाइल 2 में क्रुतिदेव फाण्ट में मुद्रित है।  सादर प्रकाशनार्थ भेज रहा हूँ। 

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