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Editorial: शेख हसीना सिर्फ एक सेक्युलर चेहरा हैं, बांग्लादेश को चलाते हैं कट्टरपंथी

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17-10-2021

बांग्लादेश में नवरात्रि के दौरान पूजा पंडालों पर हुए हमलों को देखकर भारत सरकार को निश्चित रूप से चिंता होनी चाहिए, क्योंकि जिस पैमाने पर यह हमले हुए हैं और जैसे उन पर सरकार ने प्रतिक्रिया दी है, वह दर्शाता है कि बांग्लादेश में कट्टरपंथी इस्लाम पूरी तरह से हावी होता जा रहा है। एक ऐसे समय में जब दक्षिण एशिया में कट्टरपंथी इस्लामिक विचारधारा बड़ा सिरदर्द बनी हुई है तथा अफगानिस्तान पर तालिबान का शासन है, तो निश्चित तौर पर भारत यह नहीं चाहेगा कि उसके पड़ोस में एक और देश कट्टरपंथ के मार्ग पर निकल पड़े।
13 अक्टूबर को फेसबुक पर एक अफवाह फैल गई कि दुर्गा पूजा पंडालों में कुरान का अपमान किया गया है। देखते ही देखते कोमिल्ला जिले में पूजा पंडालों में तोडफ़ोड़ और हिंसा शुरू हो गई। इसके बाद चांदपुर के हबीबगंज, चटगांव के बांसखाली, कॉक्स बाजार के पेकुआ और शिवगंज के चापाईनवाबगंज समेत कई इलाकों में हिंसा भड़क उठी और पंडालों में तोडफ़ोड़ की गई। मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि कोमिल्ला अमूमन शांत रहने वाला क्षेत्र है और यहाँ साम्प्रदायिक हिंसा का कोई पुराना इतिहास नहीं है। ऐसे में केवल एक फेसबुक पोस्ट पर इतना बवाल होना साफ दिखाता है कि बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथ के विस्तार को रोकने के प्रयास पूरी तरह विफल हो चुके हैं। हिंसा में 4 हिंदुओं की मौत हुई है और 60 लोग घायल हुए हैं।
जिले के एक अधिकारी ने पुष्टि करते हुए कहा कि कुछ धार्मिक चरमपंथियों ने दुर्गा पंडालों में पहले कुरान की प्रति रख दी और कुछ तस्वीरें लीं, फिर भाग गए। कुछ घंटों के भीतर उन सभी ने फेसबुक का उपयोग करते हुए भड़काऊ तस्वीरों को वायरल कर दिया। साफ है कि हिंसा योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दी गई थी। हिंसा में मुख्य रूप से बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और जमात-ए-इस्लाम के कुछ कार्यकर्ताओं की भूमिका थी।
हालांकि, घटना के बाद शेख हसीना ने पूरी घटना की निंदा की है और हिंदुओं को उनकी सुरक्षा के प्रति आश्वस्त किया है। किंतु अपने बयान के दौरान प्रधानमंत्री हसीना ने यह भी कहा कि भारत में ऐसी कोई घटना नहीं होनी चाहिए जिसका असर बांग्लादेश के हिंदुओं पर पड़े।
साफ है कि हसीना कह रही हैं कि अगर भारत में इसकी कोई भी प्रतिक्रिया हुई तो बांग्लादेश के हिंदुओं पर सीधा प्रभाव होगा। तो फिर यह माना जाए कि बांग्लादेश में लोकतंत्र नाम का ही बचा है और सरकार जैसे-तैसे करके इस्लामिक कट्टरपंथियों के सामने अपनी इज्जत बचा रही है?
मान लेते हैं कि भारत में इसकी प्रतिक्रिया हुई भी, हालांकि, ऐसा कुछ होगा नहीं, लेकिन यदि कोई प्रतिक्रिया हुई और पंडाल में हुई तोडफ़ोड़ का बदला लेने के लिए भारत में मस्जिदों में तोडफ़ोड़ हुई तो इसका असर बांग्लादेश पर क्यों पडऩा चाहिए? क्या इतने वर्षों से बांग्लादेश में हिंदुओं के विरुद्ध हो रही हिंसा का प्रभाव भारत के मुसलमानों के जीवन पर पड़ा है?
यदि दूसरे देशों की घटनाओं का असर बांग्लादेश पर इतना व्यापक है कि बांग्लादेश लोकतांत्रिक मूल्यों को सहेज न सकें, तो वहाँ लोकतंत्र किस बात का रहा? स्पष्ट है कि बांग्लादेश की सरकार स्वीकार कर रही है कि उनके यहाँ लोकतंत्र की नींव कमजोर हो चुकी है। हसीना ने अपने बयान में भारत को सतर्क रहने की चेतावनी दी, जबकि हिंसा उनके यहाँ हुई और चेतावनी उन्हें मिलनी चाहिए थी।
सत्य यह है कि अफगानिस्तान में तालिबान की जीत और उसपर वैश्विक चुप्पी से इस्लामिक आतंकियों के हौसले बुलंद हैं। विशेषरूप से दक्षिण एशिया में कट्टरपंथियों के बड़े वर्ग को, यह लगने लगा की गैर-मुस्लिमों के विरुद्ध जिहाद को कोई ताकत रोक नहीं सकती।
अपनी अजयेता का भ्रम कट्टरपंथी इस्लाम के विस्तार को और तेज कर रहा है और बांग्लादेश में हुई हालिया हिंसा को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। आने वाले समय में बांग्लादेशी हिंदुओं पर अत्याचार और बढ़ेंगे। यह न केवल मानवाधिकार हनन का मामला है बल्कि भारत के लिए कूटनीतिक-सामरिक चुनौती भी है। यदि बांग्लादेश सरकार कट्टरपंथियों के सामने इसी प्रकार घुटने टेकती रही तो और इस्लामिक विचार का ऐसा ही विस्तार होता रहा तो पाकिस्तान के बिना प्रयास किए ही बांग्लादेश उसकी गोद में होगा।
साथ ही भारत इस्लामिकरण के विस्तार के प्रति सजग नहीं हुआ तो यह भारत के लिए आंतरिक चुनौती भी बनेगा, क्योंकि ऐसे तत्व भारत के मुस्लिम समाज में बहुतायत में हैं। सरकार को इस पूरी समस्या के प्रति गंभीर चिंतन करके कोई ठोस योजना बनानी चाहिए अन्यथा यह समस्या भारत की आंतरिक, कूटनीतिक, सामरिक और अंतत सैन्य चुनौती बन जाएगी।

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