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Editorial: faarokh अब्दुल्ला की दोमुंही सियासत घाटी में पंडितों के खिलाफ ज़हर

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14-10-2021

क्या आप 1990 के कश्मीर के आलम से वाकिफ हैं? वही 1990 का दौर जब घाटी में कश्मीरी पंडितों का खून कट्टरपंथी आतंकी बहा रहे थे। उस वक्त प्रदेश के मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला हुआ करते थे, लेकिन मजाल है कि इन्होंने इन कट्टरपंथी cपंडितों के साथ किए जा रहे सलूक की मजम्मत करने की जहमत की हो, उस वक्त तो महाशय सत्ता की मलाई चाट रहे थे, लेकिन आज जब खुद का सियासी किला जमींदोज हो चुका है, तो जनाब को इंसानी इबारत याद आ रही है। कह रहे हैं कि इन दहशतगर्दों को जहान्नुम में ठिकाना मिलेगा।

लगता है जनाब कि इंसानियत जाग गई है, लेकिन तब कहां गई थी जनाब की इंसानियत जब घाटी में कश्मीरी पंडितों का लहू दरिया माफिक बह रहा था, उस वक्त कहां गई थी इनकी ये इंसानियत, जब निर्दोष, निष्कलंक कश्मीरी पंडित घाटी से विस्थापित होने पर बाध्य हो रहे थे और उस तो आप ही की सरकार थी, लेकिन अब जब कश्मीर हिंदुओं और सिखों की हत्या पर फारुख अब्दुल्ला हमदर्दी जता रहे हैं, तो ऐसे में आप ही बताइए कि इसे छलावा नहीं तो क्या कहे?

 फ ारुक ने मीडिया से मुखातिब होने के दौरान हाल ही में कश्मीर में हिंदू और सिखों की हत्या के संदर्भ में उक्त बयान दिया है। जिसमें उन्होंने ऐसा करने वाले दहशतगर्दों को जहान्नुम में भेजने की तकरीरें दी हैं, लेकिन अब उन पर ही सवाल उठ रहे हैं कि जब कश्मीरी पंडितों की हत्या और पुनर्वास की बात आती है, तो आप चुप्पी क्यों साध लेते हैं। वहीं, आज भी कश्मीर में कई ऐसे परिवार हैं, जिन्हें दहशतगर्दों का खौफ है, लेकिन आज तक कभी इन मसलों पर फारुक बेबाकी से अपनी राय देते या इनकी मजम्मत करते नहीं दिखें।

लेकिन, अगर इतिहास के चश्मे से देखे तो जिन आतंकवादियों को फारुक जहान्नुम भेजने की बात कर रहे हैं, कालांतर में इन्हीं की सरकार आतंक के सामने घुटने टेकते हुई दिखी थी। उनके खिलाफ आज तक कोई भी माकूल कदम नहीं उठा पाई। आज इसी का नतीजा है कि कश्मीर आतंक की आग में झुलस रहा है और फारुख हैं कि इन्हें जहान्नुम में भेजने की बातें कर रहे हैं। वहीं, 1990 का दिल दहला देने वाले याद कर और आज की तारीख में फारूख द्वारा दिए गए बयान की पारस्परिक तुलना करने पर यही मालूम पड़ता है कि उनका यह उक्त बयान दोमंही सियासत के अलावा और कुछ भी नहीं है।