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गन्ना मूल्य वृद्धि: 425 रुपये प्रति क्विंटल से कम पर नहीं मानेंगे किसान, अन्नदाता के समर्थन में उतरे सांसद वरुण गांधी

सत्ता संभालने के चार साल में यूपी सरकार ने गन्ने के मूल्य में केवल 10 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की थी। इसे लेकर किसानों, विशेषकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना उत्पादक किसानों में सरकार के प्रति भारी नाराजगी थी। अब सरकार ने गन्ने के मू्ल्य में 25 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि कर किसानों का गुस्सा कम करने की कोशिश की है। लेकिन इस मूल्य वृद्धि के बाद भी सरकार के प्रति किसानों का गुस्सा बरकरार है। किसानों ने कहा है कि 425 रुपये प्रति क्विंटल से कम के किसी मूल्य पर सहमत होने के लिए वे तैयार नहीं हैं। इसी बीच, वरूण गांधी ने भी गन्ने का मूल्य कम से कम 400 रुपये प्रति क्विंटल करने की मांग कर राजनीति गरमा दी है।

संयुक्त किसान मोर्चा नेता अविक साहा ने से कहा कि बिजली, खाद, पानी, कीटनाशक, बीज, कृषि यंत्रों के मूल्य में अनियंत्रित वृद्धि हुई है। इससे सभी फसलों के साथ-साथ गन्ने का उत्पादन मूल्य में भी तेज बढ़ोतरी हुई है और कृषि लागत का घाटा बढ़ा है। इसलिए यदि सरकार गन्ना किसानों को बचाना चाहती है तो उसे इसका न्यूनतम मूल्य 425 रुपये प्रति क्विंटल करना होगा। इससे कम मूल्य पर गन्ने की खेती संभव नहीं है और किसान अब इस मूल्य से कम पर कोई बातचीत करने के लिए तैयार नहीं हैं।

गन्ने के दाम में 25 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि को किसानों को ‘बरगलाने’ की कोशिश बताते हुए किसान नेता ने कहा कि सरकार को यह दृष्टिकोण विकसित करना चाहिए कि किसान हमारे अपने ही लोग हैं। उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर होगी तो वे ज्यादा सामानों की खरीद करने में समर्थ होंगे। इससे बड़ी औद्योगिक कंपनियों के उत्पादों को बेचने में आसानी होगी और अर्थव्यवस्था गति पकड़ेगी।

किसान नेता डॉ. आशीष मित्तल ने कहा कि किसी फसलों के मूल्य में वृद्धि चुनाव के समय पीटने वाला बाजा नहीं होना चाहिए। इसके लिए एक वैज्ञानिक पद्धति पर काम करने वाली एक संस्था (कृषि आयोग) स्थापित की जानी चाहिए, जो हर साल अपने निर्धारित समय पर फसलों पर आने वाली लागत को ध्यान रखकर हर फसलों के मूल्य में अपेक्षित वृद्धि करे। जब तक फसलों की मूल्य वृद्धि को राजनीतिक हथकंडे से मुक्त नहीं करा लिया जाता, किसानों की समस्या कभी समाप्त नहीं होगी।