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दुधवा ही नहीं, सैलानियों के लिए संजोईं हैं प्राचीन धरोहरें भी

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सार
विश्व पर्यटन दिवस पर विशेष
 

दुधवा टाइगर रिजर्व में घूमते हिरन।

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लखीमपुर खीरी। जंगल पर्यटन के रोमांच का आनंद चाहने वालों के लिए खीरी स्थित दुधवा टाइगर रिजर्व से बेहतर जगह दूसरी नहीं हो सकती। खीरी जिले ने इस अनमोल प्राकृतिक विरासत के साथ सैलानियों के लिए कई प्राचीन धरोहर भी संजो रखी हैं। अगर इन्हें सजाने-संवारने का बेहतर प्रबंधन हो तो इस ओर सैलानियों की और भी संख्या बढ़ सकती है।
दुधवा टाइगर रिजर्व के घने जंगल न केवल अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिहाज से अनूठे हैं, बल्कि यहां की जैव विविधता भी बेहद समृद्ध है। जंगल में स्वच्छंद विचरण करते वन्य जीवों के बीच भ्रमण के रोमांच के साथ प्राकृतिक सौंदर्य मन को नैसर्गिक शांति का अनुभव कराता है। जंगल में कुलांचे भरते बारासिंघा, चीतल, पाड़ा आदि हिरनों के झुंड, मदमस्त चाल से भ्रमण करते हाथी, बाघों की दहाड़, नदी किनारे धूप सेंकते मगरमच्छ, पानी में तैरते और पेड़ों पर कलरव करते रंग बिरंगे परिंदे शायद ही एक साथ किसी अन्य जगह आप को देखने को मिलें।
दुधवा में चल रही गैंडा पुनर्वासन परियोजना देश की ही नहीं पूरी दुनिया की विलक्षण परियोजना है।
यह है दुधवा नेशनल पार्क की खासियत
दुधवा में 48 गैंडों का परिवार वास करता है। 51 प्रजातियों के स्तनधारी जीव, रेप्टाइल की 25 प्रजातियों के अलावा 410 प्रजातियों के पक्षी पाए जाते हैं। इसी तरह दुधवा विभिन्न प्रजातियों की वनस्पतियों से मालामाल है। यहां 75 प्रजातियों के वृक्ष, 21 प्रकार की झाड़ियां, 17 प्रकार की बेल और लताएं, 77 प्रजातियों की घासें और 179 प्रजातियों के जलीय पौधे पाए जाते हैं, जो यहां की जैव और वानस्पतिक विविधता को समृद्ध बनाते हैं।
धार्मिक पर्यटन की हैं यहां अपार संभावनाएं
प्राचीन शिव मंदिर स्थापित होने के कारण गोला गोकर्णनाथ छोटी काशी के नाम से विख्यात है। यहां ‘शिवलिंग’ मंदिर में करीब 1.2 मीटर गहराई में स्थापित है। यह मंदिर देश के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में शुमार है।
मेढक मंदिर : सीतापुर रोड पर ओयल कस्बे में मंडूक तंत्र और श्री यंत्र के आधार पर निर्मित मेढक शिव मंदिर है। इतिहास के जानकारों के मुताबिक, ओयल स्टेट के राजा बख्त सिंह और राजा अनिरुद्ध सिंह ने इस विलक्षण शिव मंदिर का निर्माण करीब दो सौ साल पहले कराया था जो ‘मेढक मंदिर’ के नाम से विख्यात है। कभी यह मंदिर तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र हुआ करता था।
देवकली तीर्थ : देवकली का प्रसिद्ध सूर्यकुंड अभी भी अस्तित्व में हैं। बताया जाता है कि महाभारत काल के राजा जन्मेजय ने यहीं पुराण प्रसिद्ध नागयज्ञ किया था। यहां के तालाब की मिट्टी अब भी लोग नाग पंचमी को घर ले जाते हैं। लोगों का मानना है कि इस मिट्टी को घर के आसपास डाल देने से घर में सांप नहीं आते हैं।
लिलौटीनाथ मंदिर : जिला मुख्यालय से नौ किमी दूर स्थित इस मंदिर में शिवलिंग गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वथामा ने स्थापित किया था। मान्यता है कि सुबह मंदिर का पट खोलने पर शिवलिंग पूजा-अर्चना किया हुआ मिलता है। मोहम्मदी क्षेत्र का टेढ़ेनाथ शिव मंदिर भी महाभारत काल का बताया जाता है, जिसमें लोगों की गहन आस्था है।
ऐतिहासिक स्थल सैलानियों के लिए बन सकते हैं आकर्षण का केंद्र
पांडवों की अज्ञातवास स्थली : महाभारत काल में नेपाल से लेकर खीरी जिले का बड़ा क्षेत्र राजा विराट का साम्राज्य था। पांडवों ने द्यूत क्रीड़ा में हारने के बाद 12 साल के वनवास में एक साल का अज्ञातवास यहीं बिताया था। मोहम्मदी तहसील क्षेत्र में बलमियां बरखर में इस बात के सबूत आज भी मौजूद हैं।
खैरीगढ़ किला : सिंगाही क्षेत्र में 1379 ई. में सुल्तान फिरोज तुगलक के समय में यह किला निर्मित हुआ था। देश के इस चर्चित किले से सम्राट समुद्र गुप्त की एक मुद्रा तथा कन्नौज के राजा भोजदेव की अनेक मुद्राओं के अलावा घोड़े की एक पत्थर मूर्ति प्राप्त हुई थी, जो लखनऊ के म्यूजियम में आज भी सुरक्षित हैं। अबुल फजल के ‘आइने अकबरी’ के मुताबिक, इस किले में 300 घुड़सवार और 1500 सैनिक पूरे समय सजग रहते थे।
सिंगाही का राजभवन और मंदिर : राजशाही के दौैरान यहां अनेक भव्य इमारतों का निर्माण हुआ जो वास्तुकला के दृष्टिकोण से अनूठे हैं। इनमें सबसे प्राचीन खैरीगढ़ स्टेट की राजधानी सिंगाही में बना राजभवन, काली मंदिर तथा सरजू नदी किनारे बना भूल भुलैया शिव मंदिर दर्शनीय है। इस राजभवन और मंदिरों का निर्माण तत्कालीन महारानी सूरत कुमारी शाह ने कराया था जो उनकी स्थापत्य कला केे प्रति रुचि का प्रतीक है।

विस्तार

लखीमपुर खीरी। जंगल पर्यटन के रोमांच का आनंद चाहने वालों के लिए खीरी स्थित दुधवा टाइगर रिजर्व से बेहतर जगह दूसरी नहीं हो सकती। खीरी जिले ने इस अनमोल प्राकृतिक विरासत के साथ सैलानियों के लिए कई प्राचीन धरोहर भी संजो रखी हैं। अगर इन्हें सजाने-संवारने का बेहतर प्रबंधन हो तो इस ओर सैलानियों की और भी संख्या बढ़ सकती है।

दुधवा टाइगर रिजर्व के घने जंगल न केवल अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिहाज से अनूठे हैं, बल्कि यहां की जैव विविधता भी बेहद समृद्ध है। जंगल में स्वच्छंद विचरण करते वन्य जीवों के बीच भ्रमण के रोमांच के साथ प्राकृतिक सौंदर्य मन को नैसर्गिक शांति का अनुभव कराता है। जंगल में कुलांचे भरते बारासिंघा, चीतल, पाड़ा आदि हिरनों के झुंड, मदमस्त चाल से भ्रमण करते हाथी, बाघों की दहाड़, नदी किनारे धूप सेंकते मगरमच्छ, पानी में तैरते और पेड़ों पर कलरव करते रंग बिरंगे परिंदे शायद ही एक साथ किसी अन्य जगह आप को देखने को मिलें।

दुधवा में चल रही गैंडा पुनर्वासन परियोजना देश की ही नहीं पूरी दुनिया की विलक्षण परियोजना है।

यह है दुधवा नेशनल पार्क की खासियत
दुधवा में 48 गैंडों का परिवार वास करता है। 51 प्रजातियों के स्तनधारी जीव, रेप्टाइल की 25 प्रजातियों के अलावा 410 प्रजातियों के पक्षी पाए जाते हैं। इसी तरह दुधवा विभिन्न प्रजातियों की वनस्पतियों से मालामाल है। यहां 75 प्रजातियों के वृक्ष, 21 प्रकार की झाड़ियां, 17 प्रकार की बेल और लताएं, 77 प्रजातियों की घासें और 179 प्रजातियों के जलीय पौधे पाए जाते हैं, जो यहां की जैव और वानस्पतिक विविधता को समृद्ध बनाते हैं।
धार्मिक पर्यटन की हैं यहां अपार संभावनाएं
प्राचीन शिव मंदिर स्थापित होने के कारण गोला गोकर्णनाथ छोटी काशी के नाम से विख्यात है। यहां ‘शिवलिंग’ मंदिर में करीब 1.2 मीटर गहराई में स्थापित है। यह मंदिर देश के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में शुमार है।
मेढक मंदिर : सीतापुर रोड पर ओयल कस्बे में मंडूक तंत्र और श्री यंत्र के आधार पर निर्मित मेढक शिव मंदिर है। इतिहास के जानकारों के मुताबिक, ओयल स्टेट के राजा बख्त सिंह और राजा अनिरुद्ध सिंह ने इस विलक्षण शिव मंदिर का निर्माण करीब दो सौ साल पहले कराया था जो ‘मेढक मंदिर’ के नाम से विख्यात है। कभी यह मंदिर तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र हुआ करता था।

देवकली तीर्थ : देवकली का प्रसिद्ध सूर्यकुंड अभी भी अस्तित्व में हैं। बताया जाता है कि महाभारत काल के राजा जन्मेजय ने यहीं पुराण प्रसिद्ध नागयज्ञ किया था। यहां के तालाब की मिट्टी अब भी लोग नाग पंचमी को घर ले जाते हैं। लोगों का मानना है कि इस मिट्टी को घर के आसपास डाल देने से घर में सांप नहीं आते हैं।

लिलौटीनाथ मंदिर : जिला मुख्यालय से नौ किमी दूर स्थित इस मंदिर में शिवलिंग गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वथामा ने स्थापित किया था। मान्यता है कि सुबह मंदिर का पट खोलने पर शिवलिंग पूजा-अर्चना किया हुआ मिलता है। मोहम्मदी क्षेत्र का टेढ़ेनाथ शिव मंदिर भी महाभारत काल का बताया जाता है, जिसमें लोगों की गहन आस्था है।
ऐतिहासिक स्थल सैलानियों के लिए बन सकते हैं आकर्षण का केंद्र
पांडवों की अज्ञातवास स्थली : महाभारत काल में नेपाल से लेकर खीरी जिले का बड़ा क्षेत्र राजा विराट का साम्राज्य था। पांडवों ने द्यूत क्रीड़ा में हारने के बाद 12 साल के वनवास में एक साल का अज्ञातवास यहीं बिताया था। मोहम्मदी तहसील क्षेत्र में बलमियां बरखर में इस बात के सबूत आज भी मौजूद हैं।
खैरीगढ़ किला : सिंगाही क्षेत्र में 1379 ई. में सुल्तान फिरोज तुगलक के समय में यह किला निर्मित हुआ था। देश के इस चर्चित किले से सम्राट समुद्र गुप्त की एक मुद्रा तथा कन्नौज के राजा भोजदेव की अनेक मुद्राओं के अलावा घोड़े की एक पत्थर मूर्ति प्राप्त हुई थी, जो लखनऊ के म्यूजियम में आज भी सुरक्षित हैं। अबुल फजल के ‘आइने अकबरी’ के मुताबिक, इस किले में 300 घुड़सवार और 1500 सैनिक पूरे समय सजग रहते थे।
सिंगाही का राजभवन और मंदिर : राजशाही के दौैरान यहां अनेक भव्य इमारतों का निर्माण हुआ जो वास्तुकला के दृष्टिकोण से अनूठे हैं। इनमें सबसे प्राचीन खैरीगढ़ स्टेट की राजधानी सिंगाही में बना राजभवन, काली मंदिर तथा सरजू नदी किनारे बना भूल भुलैया शिव मंदिर दर्शनीय है। इस राजभवन और मंदिरों का निर्माण तत्कालीन महारानी सूरत कुमारी शाह ने कराया था जो उनकी स्थापत्य कला केे प्रति रुचि का प्रतीक है।