Lok Shakti

Nationalism Always Empower People

नयी राजनीतिक सोच के जन्म का सुखद संकेत

-ललित गर्ग –

गुजरात में मुख्यमंत्री बदले जाने के बाद जिस तरह सभी पुराने मंत्रियों को हटा कर नए चेहरों को मौका दिया गया, वह बहुत बड़ा राजनीतिक बदलाव ही नहीं बल्कि एक अभिनव राजनीतिक क्रांति का शंखनाद है। इसके पहले शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि मुख्यमंत्री को हटाए जाने के साथ ही पुराने सभी मंत्रियों की भी विदाई कर दी जाए। गुजरात में ऐसा हुआ तो इसका मतलब है कि भाजपा नेतृत्व राज्य की सरकार को नया रूप-स्वरूप प्रदान करना चाहता था और इसके जरिये लोगों को व्यापक बदलाव का संदेश देना चाहता था। राजनीति से परे भारतीय जनता को सदैव ही किसी न किसी स्रोत से संदेश मिलता रहा है। कभी हिमालय की चोटियों से, कभी गंगा के तटों से और कभी सागर की लहरों से। कभी ताज, कुतुब और अजन्ता से, तो कभी श्रीराम, श्रीकृष्ण, बुद्ध और महावीर से। कभी गुरु नानक, कबीर, रहीम और गांधी से और कभी कुरान, गीता, रामायण, भगवत् और गुरुग्रंथों से। यहां तक कि हमारे पर्व होली, दीपावली भी संदेश देते रहते हैं। लेकिन कुछ मौलिक गढ़ने एवं रचने का सन्देश देने का काम भारतीय जनता पार्टी के शासन में देखने को मिल रहा है, जिससे राजनीति की दशा एवं दिशाएं बदलती हुई नजर आ रही है। ऐसे ही नये प्रयोगों एवं संदेशों से भारतीय जन-मानस की राष्ट्रीयता सम्भलती है, सजती है, कसौटी पर आती है तथा बचती है।
गुजरात सरकार में जो फेरबदल हुआ है, वह भले ही राजनैतिक अपेक्षाओं की मांग हो, लेकिन वह भारतीय राजनीति में एक नया प्रस्थान है, सत्तालोलुपता की पर्याय बन चुकी राजनीति को एक नई दिशा देने का सार्थक प्रयोग है। यूं तो बदलने के नाम पर समय, सरकार, उसकी नीतियां, योजनायें, उम्मीदें, मूल्य, राजनीतिक शैली एवं उद्देश्य तक बदलते रहे हैं। किन्तु सत्तालोलुपता के बीच राजनेताओं की मंत्री-पद की लालसा एवं आदत को बदल डालना न केवल साहस है बल्कि राजनीति को नयी दिशाओं की ओर अग्रसर करने का अनुष्ठान है। सत्ता में दो दशक से ज्यादा समय तक रहने के बाद भाजपा द्वारा किया गया यह प्रयोग सत्ता विरोधी लहर को रोकने की एक अभूतपूर्व एवं प्रेरक कोशिश है। इस बात को अच्छी तरह समझ लेना कि मंत्री-पद किसी भी सांसद या विधायक या नेता की बपौती नहीं है, उसको जीने का सबको समान अधिकार है। अक्सर हमने देखा है कि जब किसी एक मंत्री का भी पद छिनता है, तो पूरा मंत्रिमंडल अस्थिर हो जाता है, भूचाल आ जाता है, सरकार पर खतरे के बादल मंडराने लगते हैं, लेकिन गुजरात में एक नहीं, बल्कि सभी मंत्रियों को बदल दिया गया और तब भी सरकार की सेहत बरकरार प्रतीत हो रही है। अगर यह प्रयोग वाकई सफल रहा और पार्टी में कमजोरी न आई, तो यह बदलाव एक मिसाल बन जाएगा, एक नजीर होगी, जिसे एक नई राजनीतिक सोच एवं सन्दर्भ का जनक माना जायेगा। जो राजनीतिक प्रयोग हुआ है, वह आम राजनीतिक सोच से परे है। शायद ऐसा प्रयोग केवल गुजरात जैसे राज्य में ही संभव हो, लेकिन इससे पूरे देश की राजनीति में एक सन्देश गया है। बीते दो दशकों में राजनीति के क्षेत्र में क्रांति करने वाले दलों में भाजपा पुरोधा है। अटल बिहारी वाजपेयी एवं नरेन्द्र मोदी के समय में राजनीति में क्रांतिकारी बदलाव एवं प्रयोग की लहर उठी है, उसे तीव्रता से आगेे बढ़ाने की अपेक्षा है। इस राजनीतिक प्रयोग एवं व्यापक बदलाव को गुजरात की जनता किस रूप में लेती है, यह भविष्य के गर्भ में हैं। आशंका है कि जो मंत्री हटाए गए हैं, वे नई सरकार के लिए समस्याएं तो नहीं खड़ी करेंगे? वे इससे आशंकित हो सकते हैं कि कहीं उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट से तो वंचित नहीं कर दिया जाएगा? जो मंत्री हटाए गए हैं, उनका नाराज होना स्वाभाविक है, लेकिन यह भी एक तथ्य है कि लंबे समय तक सत्ता में रहे लोगों से एक तरह की ऊब पैदा हो जाती है, थके चेहरों से जनता के कल्याण की आशाएं भी संदिग्ध हो जाती है। उम्मीद की जाती है कि गुजरात सरकार में नए मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक एक नई तरह की कार्यसंस्कृति, नई सोच और नई ऊर्जा का संचार करेंगे। इसके बिना बदलाव का उद्देश्य पूरा होने वाला नहीं है।
यह सही है कि भूपेंद्र पटेल सरकार में मंत्रियों के रूप में शामिल नए चेहरे बदलाव के साथ ताजगी का आभास कराने के साथ लक्ष्य पाने के लिये उन्हें इतनी तीव्र बेचैनी दिखानी होगी, जितनी नाव डूबते समय मल्लाह में उस पार पहुंचने की बेचैनी होती है। बदलाव से उपजी स्थितियों से बौखला कर न पुरुषार्थ के पांव रोकने है और न धैर्य की धड़कन को कमजोर पड़ने देना है। प्रतीक्षा करनी है प्रयत्नों को परिणामों तक पहुंचने की। जरूरत है विरासत से प्राप्त मूल्यों को सुरक्षा दें, नये निर्माण का दायित्व ओढ़े, तभी इस राजनीतिक बदलाव की संस्कृति को सार्थकता के साथ कामयाबी के पायदान चढ़ा पायेंगे।
गुजरात की भाजपा सरकार में एक नये सूरज की किरणें उतरी है, भले ही अनुभव का अभाव तब एक चुनौती बन सकता है, जब विधानसभा चुनाव सामने है। स्पष्ट है कि नए चेहरों वाली सरकार के सामने एक साथ दो चुनौतियां होंगी। एक तो सरकार का कामकाज प्रभावी ढंग से चलाना और दूसरे, भाजपा के पक्ष में चुनावी माहौल तैयार करना। नए मुख्यमंत्री और उनके मंत्रियों के सामने एक चुनौती यह भी होगी कि शासन के कामकाज में नौकरशाही न हावी होने पाए। हालांकि, नए मंत्रियों के चयन में जातिगत समीकरणों का पूरा ध्यान रखा गया है, लेकिन कुछ ऐसे लोग छूट गए हो सकते हैं, जो मंत्री बनने की इच्छा रखते हों। जो भी हो, भाजपा की प्रयोगशाला कहे जाने वाले गुजरात में एक नया प्रयोग हुआ है। वहां पहले भी विपरीत स्थितियां आती रहीं, चुनौतियां आती रहीं पर इसी प्रांत से शाश्वत संदेश भी सदैव मिलते रहे हैं। गत आठ दशकों से समूचे राष्ट्र में जोड़-तोड़ की राजनीति चलती रही। पार्टियां बनाते रहे फिर तोड़ते रहे। राजनीतिक अनुशासन का अर्थ हम निजी सुविधानुसार निकालते रहे। जिसका विषैला असर प्रजातंत्र के सर्वोच्च मंच से लेकर नीचले स्तर की छोटी से छोटी इकाइयों तक देखा जा सकता है। क्रांति का मतलब मारना नहीं, राष्ट्र की व्यवस्था को बदलना होता है, राष्ट्र को नयी ऊर्जा से आप्लावित करना है।
किसी भी जाति या उसके लोगों को सत्ता में भागीदारी मिलनी चाहिए और जातिगत वोटों को किसी एक या दो नेताओं के पीछे नहीं खड़ा होना चाहिए। मतलब, मंत्री कोई रहे, जाति का प्रतिनिधित्व महत्वपूर्ण है। यह बदलाव संकेत है कि लोगों को अपने नेता से नहीं, बल्कि अपनी भागीदारी से सरोकार रखना चाहिए। अगर ऐसा होने जा रहा है, तो फिर भारतीय राजनीति में एक बड़ा सकारात्मक बदलाव होगा। वैसे भी आदर्श राजनीति में महत्व व्यक्ति विशेष का नहीं, बल्कि सबकी भागीदारी और सेवा का है। वैसे भी राजनीति कोई स्वार्थ-सिद्धि का अखाड़ा एवं व्यवसाय नहीं, एक मिशन है। राजनीति को राजनेताओं से ऊपर नहीं रखेंगे तब तक राजनीति का सदैव गलत अर्थ निकलता रहेगा। रजनीति तो संजीवनी है पर इसे विष के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। गुजरात के इस नये प्रयोग की सफलता-विफलता का निर्धारण भविष्य करेगा, लेकिन इसमें दोराय नहीं कि भारत में राजनीति से रिटायर होने की कोई परंपरा विकसित नहीं हो पाई है। यह परंपरा विकसित होनी चाहिए, क्योंकि इससे ही राजनीति में बदलाव की प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ेगी, नये एवं ऊर्जावान चेहरों को काम करने का अवसर प्राप्त हो सकेगा और इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता कि भारतीय राजनीति में बदलाव और सुधार की इस तरह की आवश्यकता लम्बे समय से महसूस की जाती रही है। एक दीपक जलाकर फसलें पैदा नहीं की जा सकतीं पर उगी हुई फसलों का अभिनंदन दीपक से अवश्य किया जा सकता है। गुजरात की भाजपारूपी गर्भिणी की सूखी और पीली देह नये जन्म का सुखद संकेत है।