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मुजफ्फरनगर पहुंचे किसानों को नाश्ता परोसते मुस्लिम युवक… यह तस्वीर बताती है 2013 दंगों के जख्म अब भर चुके हैं

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मुजफ्फरनगर के जीआईसी ग्राउंड में केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों की महापंचायत चल रही हैमहापंचायत के जरिए सामाजिक ताना-बाना भी जुड़ रहा है, किसानों को नाश्ता सर्व कर रहे मुस्लिम युवकऐसा माना जाता है 2013 मुजफ्फरनगर दंगों ने मुस्लिम और जाट समुदाय के बीच दूरियां पैदा कर दी थींमुजफ्फरनगर
मुजफ्फरनगर के जीआईसी ग्राउंड में केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों की महापंचायत चल रही है। पूरा मैदान किसानों से खचाखच भरा है। बाहर से कुछ किसान अभी भी जीआईसी ग्राउंड पहुंच रहे हैं। 2022 विधानसभा चुनाव से पहले किसानों की इस महापंचायत के राजनैतिक मायने निकाले जा रहे हैं तो दूसरी ओर इससे सामाजिक ताना-बाना भी जुड़ रहा है। बसों में सवार होकर पहुंच रहे किसानों को वहां मौजूद वॉलनटिअर्स नाश्ता बांट रहे हैं। इनमें कुछ मुस्लिम युवक भी शामिल हैं। यह तस्वीर बताती है कि 2013 के दंगों ने जो गहरे जख्म दिए थे, वक्त उन्हें भर चला है।

यह तस्वीर मुजफ्फरनगर के सुजरू इलाके की है जहां महापंचायत चल रही है। यहां बसों में सवार होकर आ रहे किसानों के लिए वॉलनटिअर्स ने नाश्ते का इंतजाम किया है। किसानों को मुफ्त में हलवा, केला और चाय सर्व की जा रही है। इस क्षेत्र में मुस्लिम आबादी अधिक है इसलिए वॉलनटिअर्स में कई मुस्लिम समुदाय के युवक भी शामिल हैं।

वक्त के साथ भरते गए जख्म
ऐसा माना जाता है 2013 मुजफ्फरनगर दंगों ने मुस्लिम और जाट समुदाय के बीच दूरियां पैदा कर दी थीं। इसके बाद विपक्ष खासकर 2019 लोकसभा चुनाव में आरएलडी की तरफ से जाट-मुस्लिम एकता की अपील की गई लेकिन नतीजों में दूरियां साफ झलकीं। लेकिन वक्त ने रिश्तों के बीच इन खाइयों को पाट दिया है।

महेंद्र टिकैत का मुस्लिम-जाट फ्रंट
न सिर्फ जाट-मुस्लिम एकता बल्कि बीकेयू और मुस्लिम समाज के बीच भी जो दूरियां आ गई थीं उसे भी इस महापंचायत के जरिए कम करने का प्रयास किया जा रहा है। दरअसल महेंद्र सिंह टिकैत ने जब 1986 में भारतीय किसान यूनियन की स्थापना की थी, तब उन्होंने कृषि से जुड़े साझा हितों के आधार पर मुस्लिम-जाट फ्रंट तैयार किया था जिसका इस क्षेत्र की राजनीति पर इसका गहरा प्रभाव था।

2013 दंगे को राजनैतिक मानते हैं स्थानीय लोग
लेकिन 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों से पहले जो खाप महापंचायत हुई थी, उसमें बीकेयू ने बीजेपी नेताओं के साथ भाग लिया था। मुस्लिम इस महापंचायत से दूर दिखे थे। यहां तक कि दंगों के दौरान सांप्रदायिकता भड़काने के लिए हुई एक एफआईआर में भी दोनों टिकैत भाइयों का नाम शामिल था। मुजफ्फरनगर में कुछ लोग अभी भी मानते हैं कि 2013 में हुए दंगे राजनैतिक थे, यहां के लोगों में एक-दूसरे समुदाय के प्रति आज भी उतना ही सम्मान है।

मुजफ्फरनगर में किसानों को नाश्ता बांटता मुस्लिम युवक

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