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माओवादी हमले में जख्मी कौशाम्बी का जवान शहीद, आठ महीने से चल रहा था इलाज

Prayagraj News : शहीद नरेंद्र कुमार (फाइल फोटो)।
– फोटो : प्रयागराज

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माओवादी हमले में गोली का शिकार कौशाम्बी के लाल की सोमवार शाम को मौत हो गई। वह आठ महीने से अस्पताल में जिंदगी-मौत के बीच संघर्ष कर रहा था। मौत की मनहूस खबर परिजनों को हुई तो कोहराम मच गया। परिजन जवान का शव लेने के लिए पुणे रवाना हो गए हैं।  सिराथू तहसील के रमसहायपुर निवासी नरेंद्र कुमार पुत्र लल्लू राम भारतीय सेना की 72वीं टास्क फोर्स (स्पेशल ऑपरेशन) में तैनात थे। नरेंद्र की तैनाती आंध्रप्रदेेश के औरंगाबाद जिले में थी। जहां जंगल में माओवादी गतिवधियों की सूचना पर कांबिग शुरू हुई। घात लगा कर बैठे माओवादियों ने जवानों पर ताबड़तोड़ गोलियां चलानी शुरू कर दी।

इस दौरान नरेंद्र कुमार के सीने में गोली लगी। जवाबी कार्रवाई में माओवादी भाग खड़े हुए। घायल जवानों को अस्पताल में भर्ती कराया गया। जिसमे नरेंद्र कुमार भी थे। पुणे के कमांड हॉस्पिटल में आठ माह तक इलाज के बाद सोमवार को उन्होंने शाम 7.36 बजे अंतिम सांस ली। मातृभूमि के लिए अपना सर्वोत्तम बलिदान देने वाले जवान नरेंद्र कुमार के निधन की सूचना पर परिजन पुणे के लिए रवाना हो गए है। ग्राम प्रधान सूर्य प्रकाश मिश्रा ने बताया, गांव के लिए यह दु:ख की घड़ी है। परिजन पार्थिव शरीर लेने रवाना हो चुके हैं। ग्रामीण अपने वीर जवान का शव आने का इंतजार कर रहे हैं। पार्थिव शरीर मंगलवार की दोपहर तक गांव पहुंचने की जानकारी परिजनों से मिली है।

मासूमों के सिर से उठा पिता का साया
जवान नरेंद्र अपने पीछे पत्नी वीणा देवी, तीन बच्चे वैशाली (11), आमना (नौ), व दो माह की नवजात को छोड़ गए हैं। परिवार में पिता लल्लू राम दिवाकर (रिटायर्ड सीओ पुलिस) माता सुदामा देवी, दो भाई व दो बहन राकेश दिवाकर, महेंद्र दिवाकर, रेखा और सोनी हैं। भाई राकेश दिवाकर ने बताया, नरेंद्र कुमार 12 साल पहले सेना में भर्ती हुए थे। सेना में भर्ती होने के बाद वह 72वीं टास्क फोर्स के लिए चुने गए। इसके बाद से जवान नरेंद्र मातृभूमि की सेवा में देश के अलग अलग हिस्सों में तैनात रहे। तीन जनवरी को उसकी तैनाती आंध्र प्रदेश के औरंगाबाद जिले में थी। 

छुट्टी में गांव आने पर दोस्तों को सुनाते थे वीरता की कहानियां
सिराथू तहसील के रामसहायपुर गांव में पले बढ़े नरेंद्र कुमार पढ़ाई के दौरान ही मातृभूमि की सेवा की बातें किया करते थे। दोस्त प्रांशु मिश्रा ने बताया कि वह भी नरेंद्र कुमार के साथ सेना में भर्ती होने की तैयारी कर रहे थे। करीब 12 साल पहले भर्ती के लिए उनके साथ गांव के डेढ़ दर्जन युवा गए थे। जिसमें अनुज केसरवानी, आशीष केसरवानी, हरिप्रताप, अन्नू दुबे, मन्नू दुबे, श्रवण पाल, नारायण पांडेय और नरेंद्र कुमार एक ही बैच में भर्ती हुए। प्रांशु की हाइट कम होने के चलते वह भर्ती नहीं हो सका। बताया कि जब भी वह छुट्टी पर आते घंटों बात कर अपनी और अपने साथियों के वीरता की कहानियां सुनाते थे।

प्राणों की आहुति देकर गांव का नाम किया रोशन 
ग्राम प्रधानपति सूर्य प्रताप मिश्रा ने बताया कि गांव में हर तीसरे घर का बेटा देश की सेवा में कार्यरत है। नरेंद्र के शहीद होने पर सबको दु:ख है, लेकिन नरेंद्र ने देश के दुश्मनों से लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति देकर गांव का नाम सदा-सदा के लिए अमर कर दिया है। इसका सभी को गर्व है।

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माओवादी हमले में गोली का शिकार कौशाम्बी के लाल की सोमवार शाम को मौत हो गई। वह आठ महीने से अस्पताल में जिंदगी-मौत के बीच संघर्ष कर रहा था। मौत की मनहूस खबर परिजनों को हुई तो कोहराम मच गया। परिजन जवान का शव लेने के लिए पुणे रवाना हो गए हैं।  सिराथू तहसील के रमसहायपुर निवासी नरेंद्र कुमार पुत्र लल्लू राम भारतीय सेना की 72वीं टास्क फोर्स (स्पेशल ऑपरेशन) में तैनात थे। नरेंद्र की तैनाती आंध्रप्रदेेश के औरंगाबाद जिले में थी। जहां जंगल में माओवादी गतिवधियों की सूचना पर कांबिग शुरू हुई। घात लगा कर बैठे माओवादियों ने जवानों पर ताबड़तोड़ गोलियां चलानी शुरू कर दी।

इस दौरान नरेंद्र कुमार के सीने में गोली लगी। जवाबी कार्रवाई में माओवादी भाग खड़े हुए। घायल जवानों को अस्पताल में भर्ती कराया गया। जिसमे नरेंद्र कुमार भी थे। पुणे के कमांड हॉस्पिटल में आठ माह तक इलाज के बाद सोमवार को उन्होंने शाम 7.36 बजे अंतिम सांस ली। मातृभूमि के लिए अपना सर्वोत्तम बलिदान देने वाले जवान नरेंद्र कुमार के निधन की सूचना पर परिजन पुणे के लिए रवाना हो गए है। ग्राम प्रधान सूर्य प्रकाश मिश्रा ने बताया, गांव के लिए यह दु:ख की घड़ी है। परिजन पार्थिव शरीर लेने रवाना हो चुके हैं। ग्रामीण अपने वीर जवान का शव आने का इंतजार कर रहे हैं। पार्थिव शरीर मंगलवार की दोपहर तक गांव पहुंचने की जानकारी परिजनों से मिली है।

Prayagraj News : शहीद नरेंद्र के गमजदा परिजन।
– फोटो : प्रयागराज

मासूमों के सिर से उठा पिता का साया
जवान नरेंद्र अपने पीछे पत्नी वीणा देवी, तीन बच्चे वैशाली (11), आमना (नौ), व दो माह की नवजात को छोड़ गए हैं। परिवार में पिता लल्लू राम दिवाकर (रिटायर्ड सीओ पुलिस) माता सुदामा देवी, दो भाई व दो बहन राकेश दिवाकर, महेंद्र दिवाकर, रेखा और सोनी हैं। भाई राकेश दिवाकर ने बताया, नरेंद्र कुमार 12 साल पहले सेना में भर्ती हुए थे। सेना में भर्ती होने के बाद वह 72वीं टास्क फोर्स के लिए चुने गए। इसके बाद से जवान नरेंद्र मातृभूमि की सेवा में देश के अलग अलग हिस्सों में तैनात रहे। तीन जनवरी को उसकी तैनाती आंध्र प्रदेश के औरंगाबाद जिले में थी। 

छुट्टी में गांव आने पर दोस्तों को सुनाते थे वीरता की कहानियां
सिराथू तहसील के रामसहायपुर गांव में पले बढ़े नरेंद्र कुमार पढ़ाई के दौरान ही मातृभूमि की सेवा की बातें किया करते थे। दोस्त प्रांशु मिश्रा ने बताया कि वह भी नरेंद्र कुमार के साथ सेना में भर्ती होने की तैयारी कर रहे थे। करीब 12 साल पहले भर्ती के लिए उनके साथ गांव के डेढ़ दर्जन युवा गए थे। जिसमें अनुज केसरवानी, आशीष केसरवानी, हरिप्रताप, अन्नू दुबे, मन्नू दुबे, श्रवण पाल, नारायण पांडेय और नरेंद्र कुमार एक ही बैच में भर्ती हुए। प्रांशु की हाइट कम होने के चलते वह भर्ती नहीं हो सका। बताया कि जब भी वह छुट्टी पर आते घंटों बात कर अपनी और अपने साथियों के वीरता की कहानियां सुनाते थे।

प्राणों की आहुति देकर गांव का नाम किया रोशन 
ग्राम प्रधानपति सूर्य प्रताप मिश्रा ने बताया कि गांव में हर तीसरे घर का बेटा देश की सेवा में कार्यरत है। नरेंद्र के शहीद होने पर सबको दु:ख है, लेकिन नरेंद्र ने देश के दुश्मनों से लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति देकर गांव का नाम सदा-सदा के लिए अमर कर दिया है। इसका सभी को गर्व है।