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कृषि के क्षेत्र में विश्व का पावरहाउस बने भारत

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भारत में ज्यादातर किसान छोटे और मध्यम वर्गीय हैं, जिन्हें अक्सर एक हेक्टेयर से लेकर दो हेक्टयर तक की कृषि जोत पर ही पसीना बहाकर, अपना जीवन यापन करने पर विवश होना पड़ता है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि भारत के 57 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण परिवारों का जीवन कृषि पर निर्भर है।

दुर्भाग्यवश, देश की आधी से ज्यादा कर्मठ आबादी कृषि क्षेत्र में योगदान देने के बावजूद देश इस क्षेत्र में तरक्की नहीं कर पा रहा था। खैर, इस विफलता के बादल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आते ही छट गए और भारत पहली बार कृषि उत्पादक के निर्यात में शीर्ष 10 में जगह बनाने में सफल रहा है।

साल 2019-20 और 2020-21 के 11 महीनों के दौरान कृषि और संबद्ध वस्तुओं के निर्यात की तुलना से पता चलता है कि अप्रैल 2020 और फरवरी 2021 के दौरान निर्यात 2.69 लाख करोड़ रुपये का है जबकि साल  2019-20 में इसी अवधि के दौरान 2.27 लाख करोड़ का निर्यात हुआ था। यदि 2020-21 में भी यही प्रवृत्ति जारी रहती है, तो 2020-21 के सभी 12 महीनों के डेटा उपलब्ध होने पर भारत के निर्यात में और वृद्धि हो सकती है। COVID-19 महामारी के बावजूद, कृषि क्षेत्र में निर्यात अन्य क्षेत्रों की तरह गंभीर रूप से प्रभावित नहीं हुआ है।

World Trade Organizations की हालिया रिपोर्ट कहती है कि भारत 2019 में चावल, सोयाबीन, कपास और मांस के निर्यात में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी के साथ कृषि उत्पाद निर्यातकों की शीर्ष दस सूची में शामिल हो गया। दिलचस्प बात यह है कि अब भारत केवल गेहूं और चावल की खेती में ही अपना सिक्का नहीं जमा रहा है बल्कि सोयाबीन, कपास, मांस और मछ्ली के निर्यात में भी अग्रिम है।

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बीते कुछ वर्षो में भारत ने कृषि क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन किया है। भारत ने भरसक प्रयास किया है कि कृषि उत्पाद के आयात से मुक्ति मिले और निर्यात करने वालों देशों की सूची में अपना नाम दर्ज करवाया जाए। मोदी सरकार ने साल 2014 से कृषि क्षेत्र को नई बुलंदियों पर पाहुचानें की दिशा में काम किया है और हो भी क्यों न जिस देश की आधी से ज्यादा कर्मयोगी आबादी केवल एक व्यवसाय करती हो, उस देश को किसी अन्य देश पर निर्भर होने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

साल 2019 में भारत वैश्विक कृषि निर्यात में 3.1% की हिस्सेदारी के साथ नौवें स्थान पर रहा। पहले इस जगह पर न्यूजीलैंड था। इसी तरह, मैक्सिको वैश्विक कृषि निर्यात में 3.4% की हिस्सेदारी के साथ सातवें स्थान पर है। वर्ष 1995 में, अमेरिका 22.2% की हिस्सेदारी के साथ शीर्ष 10 देशों की सूची में पहले स्थान पर था। 2019 में यूरोपीय संघ 16.1% की हिस्सेदारी के साथ शीर्ष स्थान पर रहा, जबकि अमेरिकी शेयर में 13.8% तक की गिरावट देखी गई।

ब्राजील ने 1995 में 4.8% की हिस्सेदारी के साथ तीसरे सबसे बड़े निर्यातक के रूप में अपनी स्थिति बरकरार रखी है, जो अब 2019 में 7.8% की वृद्धि हुई है। चौथे स्थान पर चीन है जिसकी हिस्सेदारी 5.4% है। 1995 में चीन 4% की हिस्सेदारी के साथ छठे स्थान पर था। बता दें कि साल 2017 में भारत का निर्यात दर 2.7 प्रतिशत था, जबकि 2019 में यह बढ़कर 3.1 प्रतिशत हो गया है।

अमेरिका की 2 प्रतिशत से भी कम, जर्मनी की 3 प्रतिशत और फ़्रांस की 4 प्रतिशत आबादी कृषि से जुड़ी है, फिर भी अमेरिका और यूरोपियन संघ कृषि उत्पादन में भारत से आगे रहें है। गौर करने वाली बात है कि भारत जोकि कृषि प्रधान देश है, वह क्यों पिछड़ गया ? इसके पीछे का कारण है कांग्रेस सरकार द्वारा दशकों से चलाई जा रही समाजवादी नीति। यूं तो यह नीतियां बड़े-बड़े दावा करती थी परंतु जमीनी स्तर पर पूरी तरह से विफल नजर नहीं आईं। मोदी सरकार ने कृषि की पुराने नीतियों को जड़ से उखाड़ फेंका है, जिससे इस क्षेत्र में नई उदारवादी ऊर्जा का प्रवाह हुआ है।

केंद्र सरकार द्वारा लाई गई कृषि नीतियों के बारे में जितना बखान किया जाए कम है, पर हमें कुछ अहम बिंदुओं पर प्रकाश डालने की ज़रूरत है। जैसे कि Soil health card scheme जिसके तहत किसानों को कार्ड दिया जाता है। इस कार्ड में खेत की जमीन की मिट्टी किस प्रकार की है, इसकी जानकारी मिलती है। जिससे किसान अपनी जमीन की मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर फसल लगा सकते हैं और अच्छी खेती कर सकते हैं। सरकार के अनुसार किसानों को उनके खेत की गुणवत्ता के अनुरूप तीन साल में एक बार मृदा स्वास्थ्य कार्ड दिया जाता है।

मोदी सरकार द्वारा लाई गई इस योजना का एकमात्र लक्ष्य है- कृषि उपज को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाना। भारत सरकार इस परियोजना में बहुत तक सफल रही है। जिसका परिणाम world trade organizations की रिपोर्ट में स्पष्ट रुप से देखने को मिल रहा है। बता दें कि साल 1995 में शीर्ष चावल निर्यातकों में थाईलैंड (38%), भारत (26%) और अमेरिका (19%) शामिल थे। साल 2019 में, भारत 33% के साथ शीर्ष पर था और थाईलैंड का हिस्सा 20% था। वहीं वियतनाम 12 फीसदी के साथ अमेरिका को पछाड़कर तीसरा स्थान हासिल कर चुका है।

इतना ही नहीं साल 2019 में 7.6% के साथ भारत तीसरा सबसे बड़ा कपास निर्यातक और चौथा सबसे बड़ा आयातक था। वर्ष 1995 में भारत शीर्ष 10 देशों की सूची में शामिल नहीं था। सबसे बड़े व्यापारिक कृषि उत्पाद सोयाबीन में भारत की हिस्सेदारी 0.1% है। मांस की श्रेणी में भारत 4% की हिस्सेदारी के साथ दुनिया में आठवें स्थान पर है, 1995 में, भारत गेहूं और मलमल का सातवां सबसे बड़ा निर्यातक था, लेकिन 2019 में यह शीर्ष 10 की सूची में भी शामिल नहीं हुआ। मोदी सरकार के आने से पहले कृषि-निर्यात में international value-added content material में भारत की हिस्सेदारी भी 3.8 प्रतिशत से कम थी, जिसका मुख्य कारण घरेलू बाजार की रक्षा के लिए कृषि आयात पर अत्यधिक शुल्क था।

केंद्र सरकार ने कृषि क्षेत्र में उदारवादी नीतियों की पहल कर खेती व्यवसाय को व्यापार से जोड़ने की कोशिश की है, जिससे किसान लागत से दोगुना मुनाफा कमा सकें। भारत सरकार साल 2020 में तीन  नए क्रांतिकारी कृषि कानून लेकर आई थी। इन कानूनों को प्रस्तावित करने को लेकर सरकार का तर्क स्पष्ट रूप से ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास को बढ़ावा देना रहा है। सरकार का मानना है कि ये क़ानून खेती-किसानी से जुड़ी बुनियादी सुविधाओं के विकास और कृषि उत्पादन के लिए आपूर्ति श्रृंखलाओं को मज़बूत बनाने के लिए निजी संस्थाओं द्वारा निवेश को आकर्षित करने की दिशा में काम करेंगे।

वर्तमान में भारत सब्जी बनाने वाले तेल, दाल और कुछ फल का आयात सबसे ज्यादा करता है। ऐसे में सरकार कि यह पहल है कि सब्जी बनाने वाले तेल का उत्पादन भारत में बढ़ाया जाए। साल 2020 की बिज़नेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार राष्ट्रीय स्तर पर खाने के तेल के आयात को कम करने की योजना बनाने वाली है। संभवतः भारत आने वाले समय में कृषि क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बनेगा और अपने अनाज को अफ्रीका से लेकर यूरोप तक निर्यात करेगा।