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देवरियाः पूर्वोत्तर रेलवे की अनोखी ट्रेन है बरहजिया, कहीं भी जाइए किराया 30 रुपया

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कौशल किशोर त्रिपाठी, देवरिया
वर्तमान में देश जहां बुलेट ट्रेन की चर्चाएं तेज हैं, वहीं देवरिया में एक ऐसी भी ट्रेन है जो टमटम की तरह चलती है। पूर्वोत्तर रेलवे की यह अनोखी बरहजिया ट्रेन टैक्सी की तरह रास्ते भर सवारियां बैठाती और उतारती चलती है। भटनी से बरहज तक 35 किलोमीटर के बीच 6 स्टेशनों से होकर गुजरने वाली बरहजिया के सभी स्टेशनों का किराया 30 रुपया तय है। साल 1896 में व्यापारिक दृष्टिकोण से अंग्रेजों ने इसे शुरू किया था। इस रूट के रेलवे क्रॉसिंग का फाटक भी ड्राइवर और गार्ड ही ट्रेन रोककर बंद करते और खोलते हैं क्योंकि यहां कोई गेटमैन तैनात नहीं है।

साल 1896 में व्यापारिक दृष्टिकोण से अंग्रेजों ने चलाई थी बरहजिया ट्रेन
देवरिया जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर सरयू नदी के किनारे स्थित बरहज बाजार ब्रिटिश शासन काल में प्रमुख व्यापारिक केंद्र हुआ करता था। यहां पर बड़ी संख्या में खांड़सारी और दाल मिलें थीं। शीरा चट्टा का कारोबार भी यहां से होता था। यहां बने लोहे के सामान देश के विभिन्न हिस्सों में जाते थे। यहां की बनी तिजोरी आज भी काफी प्रसिद्ध है। पहले यहां से जलमार्ग के जरिए व्यापार होता था। बाद में इसके व्यापारिक महत्व को देखते हुए अंग्रेजों ने 1896 में बरहज से भटनी तक रेलवे लाइन की स्थापना की और बरहज को देश के प्रमुख शहरों से जोड़ा।

ट्रेन रोककर ड्राइवर और गार्ड ही बंद करते हैं ढाले का फाटक
भटनी-बरहज का यह रेल रूट पूर्वोत्तर रेलवे का शायद सबसे छोटा रेल रूट है। इस रेल रूट पर सलेमपुर, सिसई, सतरांव, देवरहा बाबा हाल्ट, पीव कोल समेत 7 स्टेशन हैं। खास बात यह है कि सभी स्टेशनों का किराया 30 रुपया है। हालांकि कोरोना काल से पहले यह किराया 10 रुपया था लेकिन कोरोना के बाद किराया बढ़ गया है। इस रेल रूट पर पड़ने वाले इकलौता चकरा ढाला रेलवे क्रॉसिंग पर कोई गेटमैन तैनात नहीं है। ऐसे में ढाला के पहले ड्राइवर और गार्ड ट्रेन रोककर फाटक बंद करते हैं और ट्रेन पार करने के बाद फिर खोलकर ट्रेन रवाना करते हैं।

इलाकाई लोगों की जीवन रेखा है बरहजिया
साल 1896 में अंग्रेजों द्वारा चलाई गई 5 बोगियों वाली यह ट्रेन इलाके के लोगों की जीवन रेखा मानी जाती है। रविवार को छोड़ कर अन्य दिनों में यह अपने रूट पर चार फेरा लगाती है। रविवार को सिर्फ एक चक्कर ही चलती है। टैक्सी और टमटम की तरह चलने वाली इस ट्रेन पर रास्ते पर सवारियां बैठती और उतरती रहती हैं।

घाटा देख रेलवे ने बंद की ट्रेन तो हुआ था आंदोलन
घाटे को देखते हुए रेलवे ने 8 साल पहले 2013 में इसे बंद करने की कोशिश की थी लेकिन इसकी भनक लगते ही बड़ा आंदोलन खड़ा हो गया। रेलवे के इस फैसले के खिलाफ इलाकाई लोगों से लेकर व्यापारी, छात्र, विभिन्न दलों के नेता समेत अन्य संगठनों के लोग सड़क पर उतर गए थे। लोगों के आक्रोश को देखते हुए रेलवे ने तब अपना फैसला वापस ले लिया था और ट्रेन बंद नहीं हुई।