यूपी पुलिस के सिपाहियों ने विवादित ‘बॉर्डर स्कीम’ को हटाने की मांग कीगुरुवार को ट्विटर पर खोला मोर्चा, सरकार से की 2800 ग्रेड पे की मांगड्यूटी का फिक्स समय निर्धारित करने और वीकली ऑफ देने की भी मांगमायावती सरकार ने 2010 में लागू की थी बॉर्डर स्कीम, होता रहा है विरोधलखनऊ
उत्तर प्रदेश पुलिस के सिपाहियों ने गुरुवार को अपनी कुछ मांगों को लेकर ट्विटर पर मोर्चा खोल दिया। सिपाहियों के लिए 2800 ग्रेड पे, ड्यूटी के फिक्स घंटे और वीकली ऑफ जैसी मांगों को लेकर सेवारत पुलिसकर्मियों ने ट्वीट किए। उनकी मांग है कि कम से कम इन बेसिक चीजों को सिपाहियों के लिए लागू किया जाए, जिससे वे भी मन लगाकर काम कर सकें और परिवार के साथ भी समय बिता सकें।
इन मांगों के अलावा इन सिपाहियों की एक और मांग है और वह है विवादित ‘बॉर्डर स्कीम’ को हटाना। नॉन गजेटेड कर्मचारियों के लिए बॉर्डर स्कीम किसी बुरे सपने से कम नहीं है। साल 2010 में मायावती सरकार ने इसे लागू किया था। जिसके तहत किसी कॉन्स्टेबल, हेड कॉन्स्टेबल, दरोगा या इंस्पेक्टर को अपने गृह जनपद और उसकी सीमा से सटे किसी जिले में तैनाती नहीं मिल सकती है।
अपने गृह जनपद या पड़ोसी जिले में नहीं तैनात हो सकते सिपाही
इस स्कीम के तहत लखनऊ के रहने वाले किसी नॉन गजेटेड पुलिसकर्मी को लखनऊ के अलावा उसकी सीमा से सटे जिलों जैसे- उन्नाव, बाराबंकी, सीतापुर, हरदोई में भी तैनाती नहीं मिल सकती। इन जिलों के बाद आने वाले दूसरे जिलों जैसे गोंडा, लखीमपुर-खीरी या कानपुर आदि में ही उसे तैनाती दी जा सकती है। साधारण शब्दों में कहें तो तैनाती वाले जिले और गृह जनपद के बीच एक जिला होना चाहिए। इसके अलावा सिपाहियों की मांग है कि उनका शुरुआती ग्रेड पे 2000 से बढ़ाकर 2800 किया जाए। मौजूदा व्यवस्था के अनुसार करीब 16 साल की सर्विस पूरी करने के बाद सिपाहियों को 2800 ग्रेड पे मिल पाता है।
‘जो सभी सरकारी कर्मचारियों को मिलता है, वही मांग रहे’
नाम न छापने की शर्त पर एक सिपाही ने बताया, ‘हम अपनी मूलभूत समस्याओं को लेकर धरना/विरोध प्रदर्शन नहीं कर सकते। मगर अभिभावक जैसी सरकार और सीनियर अफसरों से वह तो मांग ही सकते हैं, जो आमतौर पर सभी सरकारी कर्मचारियों को मिलता है। किसी समय प्राइमरी स्कूल के टीचर और एक सिपाही के वेतन में महज 1 रुपये का फर्क था जो आज हजारों में है।’
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