यूपी पुलिस में 2009 में विज्ञापित 3500 आरक्षियों की नियुक्ति के मामले में पेच फंस गया है। विज्ञापित पदों से 856 ओबीसी महिला अभ्यर्थियों को चयनित करने और फिर बाद में उनको आगामी रिक्तियों में 2014 में समायोजित करने के खिलाफ तमाम अभ्यर्थी हाईकोर्ट पहुंच गए हैं। मुकेश गोस्वामी और नौ अन्य की विशेष अपील पर सुनवाई कर रही कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति एमएन भंडारी और न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की पीठ ने प्रदेश सरकार और पुलिस भर्ती बोर्ड से पूछा है कि 856 चयनित महिला अभ्यर्थियों को किस वर्ष की रिक्तियों में शामिल किया गया है। कोर्ट ने बोर्ड को दस दिन में यह बताने के लिए कहा है कि क्या 2009 की भर्ती में अतिरिक्त चयनित अभ्यर्थियों को बाद में नियुक्तियां दी गई हैं। याचीगण का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी और विभू राय का कहना था कि 2009 की भर्ती में भर्ती बोर्ड ने ओबीसी कटेगरी की 856 महिला अभ्यर्थियों को जनरल कोटे में नियुक्ति दे दी।
इसके खिलाफ याचिका हुई। हाईकोर्ट ने माना कि चयन गलत हुआ है और घोषित पदों के सापेक्ष अतिरिक्त चयन किया गया है। एकल पीठ के फैसले के खिलाफ भर्ती बोर्ड की स्पेशल अपील और सुप्रीमकोर्ट से विशेष अनुमति याचिका खारिज हो गई। इसके बाद प्रदेश सरकार ने 2014 में शासनादेश जारी भविष्य में होने वाली रिक्तियों के सापेक्ष इन चयनित अभ्यर्थियों को समायोजित कर दिया। याची के अधिवक्ता की दलील थी कि बिना पदों को बढ़ाए अतिरिक्त चयनित अभ्यर्थियों को नियुक्ति नहीं दी जा सकती है और यदि पद बढ़ाए जाते हैं तो उसमें आरक्षण लागू करना अनिवार्य होगा। ऐसा किए बिना भर्ती बोर्ड नियुक्तियां नहीं कर सकता है। कोर्ट ने जानना चाहा है कि अतिरिक्त चयनित अभ्यर्थियों को किन रिक्तियों के सापेक्ष नियुक्ति दी गई है।
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