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परिषदीय विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों के आपसी सहमति से स्थानांतरण के मामले में नियम बदलने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार से जानकारी मांगी है। इसे लेकर दाखिल याचिका में कहा गया है कि पारस्परिक (म्यूचुअल) स्थानांतरण की सूची जारी होने से ठीक दो दिन पहले राज्य सरकार ने इसके नियम बदलते हुए तीन वर्ष की सेवा अनिवार्यता को समाप्त कर दिया। इससे याचीगण को नए नियम का लाभ नहीं मिल पाया है। इसे लेकर सुमेर शर्मा और 18 अन्य लोगों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है।
याचिका पर न्यायमूर्ति मंजूरानी चौहान ने सुनवाई की। याचीगण के अधिवक्ता सीमांत सिंह का कहना था कि याचीगण ने सहमति के आधार पर अंतरजनदीय तबादले के लिए आवेदन किया था। इस प्रकार के तबादले के लिए पुरुषों के लिए एक जिले में तीन वर्ष की सेवा अनिवार्य है जबकि महिलाओं के लिए एक वर्ष की सेवा होनी चाहिए। याचीगण ने आपसी सहमति के आधार पर ऑन लाइन आवेदन किया था।स्थानांतरण सूची 18 फरवरी 21 को जारी हुई। इससे दो दिन पूर्व 16 फरवरी को नया शासनादेश लाया गया जिसमें सहमति के आधार पर स्थानांतरण के लिए तीन वर्ष सेवा की बाध्यता समाप्त कर दी गई है। याचीगण का कहना था कि स्थानांतरण सूची जारी होने के दो दिन पूर्व नियम बदलने से उनको इसका लाभ नहीं मिल सका। या तो स्थानांतरण सूची रद्द की जाए या याचीगण को बदले नियम का लाभ दिया जाए। कोर्ट ने इस मामले में पांच जुलाई सोमवार को जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है।
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