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गंगा किनारे गड़े शवों से हटने लगी मिट्टी, इनके संपर्क में आने से संक्रमित होने की आशंका कितनी?

कोरोना महामारी ने लोगों को इतना डरा दिया है कि लोग अपने प्रियजनों को सही तरीके से अंतिम विदाई भी नहीं दे पा रहे हैं। कहीं कोरोना शवों को गंगा नदी में फेंका जा रहा है तो कहीं सैकड़ों शवों को नदियों के किनारे दफ़न कर दिए जाने की बात सामने आ रही है। इन दृश्यों ने लोगों को हिलाकर रख दिया है। जिन शवों को नदियों के किनारे दफनाया गया था, अब तेज हवाओं के चलने से उनके ऊपर की मिट्टी हट रही है। कई शव खुल गये हैं और अनजाने में ही पशुओं या किसी व्यक्ति के उनके सम्पर्क में आ जाने का खतरा बढ़ गया है। लोगों को डर यह भी लग रहा है कि इन शवों के संपर्क में आने से सामान्य लोगों में दोबारा कोरोना संक्रमण फैल सकता है?
दिल्ली के प्राइमस अस्पताल के एमएस डॉक्टर अनुराग सक्सेना ने  बताया कि अभी तक ऐसा कोई अध्ययन नहीं हुआ है जिसके आधार पर यह बताया जा सके कि जमीन में दफन हुए कोरोना शवों के संपर्क में आने पर कोई व्यक्ति संक्रमित हो सकता है, या नहीं। लेकिन सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि किसी कोरोना पॉजिटिव व्यक्ति के मरने के बाद एक से डेढ़ दिन तक उसके अंदर कोरोना का वायरस जिंदा रह सकता है। यही कारण है कि कोरोना शवों के शवदाह में भी पूरी सावधानी बरती जाती है। ऐसे शवदाह करते समय डॉक्टर और श्मसान के कर्मचारी पीपीई किट्स पहने रहते हैं जिससे उन्हें संक्रमण न हो सके।लेकिन किसी व्यक्ति की कोरोना से मौत होने के कुछ दिन बाद उसके संपर्क में आने से किसी के संक्रमित होने की संभावना न के बराबर है। डॉक्टर अनुराग सक्सेना के मुताबिक अभी तक यही माना जाता था कि कोरोना वायरस किसी वस्तु या सतह पर चिपक जाता है, और इस सतह को छूने वाला कोई भी व्यक्ति कोरोना संक्रमित हो जाता है। यह भी बताया गया था कि कोरोना का वायरस अलग-अलग सतहों पर कुछ घंटों से लेकर 15-20 दिनों तक जिंदा रह सकता है। इस तथ्य के सामने आने के बाद लोग किसी भी अंजान सतह को छूने से डरने लगे थे। लोग अपने ऑफिस और घरों को भी बार-बार सैनिटाइज कर रहे थे। लेकिन नये अध्ययन में यह बात गलत पाई गई है।  नये अध्ययन में खुलासा हुआ है कि किसी सतह के संपर्क में आने से किसी के कोरोना संक्रमित होने की आशंका बहुत कम होती है। बल्कि अब यह साफ हो गया है कि कोरोना हवा से या एरोसोल (एयर ड्रापलेट्स) के जरिये लोगों की नाक से होते हुए उनके शरीर में प्रवेश कर रहा है और उन्हें संक्रमित कर रहा है।
मर जाता है वायरस
बीएल कपूर अस्पताल में कोरोना मामलों के नोडल डॉक्टर संदीप नायर ने कहा कि सामान्य तौर पर किसी व्यक्ति के मरने के बाद उसके अंदर रहने वाला कोई भी वायरस या बैक्टीरिया मर जाता है। उसी तर्ज पर अनुमान है कि कोरोना से मृत व्यक्ति के शव में भी यह वायरस दो से तीन दिनों के अंदर पूरी तरह मर जाता है। इसलिए इस बात की कोई संभावना नहीं है कि कोरोना से मरे किसी व्यक्ति के शव को दफनाने के 15-20 दिन या उसके बाद भी संपर्क में आने से कोई व्यक्ति कोरोना से संक्रमित हो सकता है।हालांकि उन्होंने भी माना कि अभी इस बात पर ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं आई है जो इस मामले पर कोई ठीक-ठीक दावा करती हो।कोरोना शवों को जलाने से वायरस के जिंदा बचने की कोई संभावना नहीं रहती। इसलिए जितना संभव हो सके, कोरोना से मरे व्यक्ति को जलाकर अंतिम क्रिया करना ज्यादा उचित कदम हो सकता है।
नदियों में प्रवाहित शवों से भी संक्रमण की आशंका नहीं