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Baba Saheb Vahini: लोहिया से आंबेडकर में दिख रहा भविष्य…बाबा साहेब वाहिनी बनाने की अखिलेश यादव को क्यों पड़ी जरूरत?

हाइलाइट्स:अखिलेश ने आंबेडकर जयंती पर बाबा साहेब वाहिनी बनाने का फैसला कियालोहिया को आदर्श मानने वाली पार्टी को आंबेडकर में दिख रहीं संभावनाएंढाई दशक पुरानी दुश्मनी भुलाकर मायावती से अखिलेश ने किया था गठबंधन2019 के लोकसभा चुनाव में नहीं मिला फायदा, 5 सीटों पर सिमट गई एसपीनई दिल्लीलोहिया को अपना आदर्श मानने वाली समाजवादी पार्टी को अचानक डॉक्टर आंबेडकर में अपना भविष्य दिखने लगा। पार्टी ने इसी साल उनकी जयंती पर ‘बाबा साहेब वाहिनी’ बनाने का फैसला किया। इससे पहले पार्टी में लोहिया वाहिनी सक्रिय हुआ करती थी। पहली नजर में माना जा रहा है कि उन्होंने दलित समाज के बीच अपनी जगह बनाने के लिए यह कदम उठाया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी के साथ गठबंधन के जरिए जिस सामाजिक समीकरणों को वह अंजाम देना चाहते थे, गठबंधन न रहने पर भी वह उसे बरकरार रखना चाहते हैं। क्या यह सब कुछ इतना आसान है और बाबा साहेब के नाम पर वाहिनी बना देने भर से उन्हें दलित समाज का वैसा ही समर्थन मिल जाएगा, जैसा उन्हें यादव और मुस्लिम समाज से मिलता आया है? राजनीति में अखिलेश यादव को अब इतना तजुर्बा तो हो ही गया है कि यह काम इतना आसान नहीं है, लेकिन वह बीएसपी चीफ मायावती के सुकून को छीनना चाहते हैं। Akhilesh yadav Corona positive: समाजवादी पार्टी अध्यक्ष और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव हुए कोरोना पॉजिटिवलोकसभा चुनाव के नतीजे आने के तुरंत बाद मायावती ने जिस तरह से एकतरफा एसपी के साथ अपने गठबंधन को तोड़ने का फैसला सुनाया था, उसकी कसक कहीं-न-कहीं अखिलेश यादव के भीतर आज भी मौजूद है। अखिलेश यादव को लगता है कि गठबंधन का जो फायदा उन्हें मिलना चाहिए था, वह उन्हें नहीं मिला। मायावती ने गठबंधन का फायदा भी उठाया और उसे नकार भी दिया। इस वजह से विधानसभा चुनाव से ठीक पहले दलित समाज से भावनात्मक रिश्ता कायम रखने को उन्होंने पार्टी में बाबा साहेब के नाम से वाहिनी बनाने की बात कही। वह दलित समाज को यह संदेश देने की कोशिश में हैं कि उनकी तरफ से कोई धोखा नहीं हुआ, शिकायत तो उनकी तरफ से होनी चाहिए थी क्योंकि उन्हें एक भी सीट का फायदा नहीं हुआ। वह मायावती को अलग रखकर समाज से अपना रिश्ता बनाए रखना चाहते हैं।Video: राज्यसभा चुनाव की पिच पर मायावती ने अखिलेश को किया चितदलित वोटों के लिए ‘आत्मनिर्भर’ बने अखिलेश यादव, 2022 में वापसी को MYD समीकरण का सहारा!समीकरण कामयाब नहीं रहावैसे अगर अतीत पर नजर डालें तो पता चलता है कि दलित समाज के साथ सामाजिक समीकरण बनाने की समाजवादी पार्टी की कोशिश बहुत कामयाब नहीं रही है। छह दिसंबर 1992 के घटनाक्रम के बाद धार्मिक उन्माद के बीच बीजेपी से मुकाबला करने को मुलायम सिंह यादव और कांशीराम ने पहली बार गठबंधन का फैसला किया था। इसके जरिए दलित+पिछड़ा वर्ग+मुस्लिम को गोलबंद करने की कोशिश हुई थी। पहली बार में ही यह गठबंधन सत्ता तक भी पहुंच गया था, लेकिन भरोसे के संकट ने इसे डेढ़ साल भी नहीं चलने दिया और अगले करीब ढाई दशक यह समीकरण अविश्वास की नाव में ही हिचकोले खाता रहा।SP-BSP गठबंधन: सच साबित हुई मोदी की भविष्यवाणीAkhilesh Yadav News:’आंबेडकर जयंती पर मनाएं दलित दिवाली’ ट्वीट पर फंसे समाजवादी पार्टी चीफ, ट्विटर पर ट्रेंड हुआ #माफी_मांगो_अखिलेश2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जब एसपी-बीएसपी दोनों को ही अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाने की चुनौती दिख रही थी तो उन्होंने ढाई दशक पुरानी दुश्मनी को खत्म करने का फैसला किया था। यह उम्मीद की जा रही थी कि नए सिरे से परवान चढ़ा यह गठबंधन ज्यादा स्थायी होगा और यूपी की राजनीति की नई कहानी भी लिखेगा। लेकिन इसके जरिए फौरी का फौरी लाभ लेने की ख्वाहिश ने नतीजे आते ही इसका गला घोंट दिया। 2019 के लोकसभा चुनाव में एसपी-बीएसपी के बीच अघोषित समझौता था कि लोकसभा चुनाव में मायावती को आगे करके चुनाव लड़ा जाएगा। लेकिन विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव के चेहरे को समर्थन करना होगा। लोकसभा चुनाव खत्म होते ही विधानसभा चुनाव के लिए अपनी दावेदारी खत्म करने को बीएसपी तैयार नहीं हुई।मायावती ने किया गेस्ट हाउस कांड का जिक्र तो क्या बोले अखिलेश?UP opposition Politics: यूपी में नहीं बिहार जैसा विपक्ष? वो 5 मौके जब कमजोर दिखे अखिलेश, माया और प्रियंकाआगे का क्या रास्ता देखते हैं अखिलेश?राजनीतिक गलियारों में कहा जाता है कि अखिलेश यादव को किसी नए प्रयोग पर जाने के बजाय अपने पिता के ‘पुराने नोट्स’ को पढ़ लेना कहीं ज्यादा फायदेमंद होगा। जब तक मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में पार्टी चली, उन्होंने न तो कांग्रेस के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ना चाहा और न ही कांशीराम के साथ गठबंधन का प्रयोग विफल हो जाने पर उसे दोहराने की कोशिश ही की। ऐसा इसलिए कि वह अपने राजनीतिक तजुर्बे से इस निष्कर्ष पर पहुंच गए थे कि इन दोनों के जरिए उन्हें कोई फायदा नहीं होगा।SP-BSP गठबंधन: अखिलेश-मायावती के साथ की 7 बड़ी बातेंअखिलेश यादव पर FIR से भड़के सपाई, रामगोपाल बोले- यह मुकदमा योगी सरकार के ताबूत की आखिरी कीलउन्होंने समाजवादी पार्टी की कामयाबी के लिए पिछड़ा वर्ग में आने वाली छोटी-छोटी जातियों के नेतृत्व को आगे करने की बात कही थी। इसी के जरिए समाजवादी पार्टी का विस्तार भी हुआ था। पिछले दिनों मुलायम सिंह जब समाजवादी पार्टी की नई लीडरशिप से मिले थे तो उन्हें कामयाबी के इस पुराने फॉर्मुले को कतई न भूलने की सलाह दी। देखने वाली बात होगी कि नई लीडरशिप ने उनकी बातों को कितना आत्मसात किया?अखिलेश यादव (फाइल फोटो)