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ज्ञानवापी परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण के फैसले का भाजपा विधायक ने किया स्वागत, कहा- हिंदू सशक्तीकरण का युग चल रहा

उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद के बैरिया से भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह ने ज्ञानवापी परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण के फैसले का स्वागत किया।  शुक्रवार को विधायक ने कहा कि वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर हटाया जाएगा। भगवान शिव का भव्य मंदिर बनेगा। उन्होंने कहा कि हिंदू सशक्तीकरण का युग चल रहा है। आने वाले समय में देखने को मिलेगा कि भारत हिंदू राष्ट्र बन गया। विधायक ने अपने आवास पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए ज्ञानवापी मामले में वाराणसी के एक स्थानीय न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि वह न्यायालय के फैसले से बेहद खुश हैं। उन्होंने कहा कि यह परिवर्तन का युग है। जिस तरह राम राज्य स्थापित होने के पहले कुछ दिक्कत आई थी, उसी तरह वर्तमान समय में भी आ रही दिक्कतों का बहुत जल्द समाधान हो जाएगा।मोदी और योगी की सरकार में सपना होगा साकारप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार में यह सपना साकार होगा। विवादित बयानों को लेकर अक्सर चर्चा में रहने वाले विधायक सुरेंद्र सिंह ने प्रतापगढ़ में हाल ही में भाजपा विधायक व पुलिस अधीक्षक के बीच हुए विवाद को निंदनीय बताया। कहा कि अधिकारी स्वेच्छाचारी होकर मनमानी आचरण कर रहे हैं। अधिकारियों के आचरण से योगी सरकार की छवि पर भी असर पड़ रहा है और दल के नेतृत्व को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।अदालत में पेश की गई थी ये दलीलें
ज्ञानवापी परिसर का रडार तकनीक से पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने जाने के मामले में वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी की तरफ से वर्ष 1991 से लंबित मुकदमे में आवेदन देकर कहा गया कि मौजा शहर खास स्थित ज्ञानवापी परिसर के 9130, 9131, 9132 रकबा एक बीघा नौ बिस्वा जमीन का पुरातात्विक सर्वेक्षण करके यह बताया जाए कि जो जमीन है, वह मंदिर का अवशेष है या नहीं। साथ ही विवादित ढांचे का फर्श तोड़कर यह देखा जाए कि 100 फीट गहरा अरघा ज्योतिर्लिंग स्वयंभू विश्वश्वेरनाथ का परिलक्षित होता है या नहीं? दीवारें प्राचीन मंदिर की हैं या नहीं?14वीं शताब्दी के मंदिर में प्रथम तल में ढांचा और भूतल में तहखाना है, जिसमें 100 फीट गहरा शिवलिंग है, यह खुदाई से स्पष्ट हो जाएगा। मंदिर का जीर्णोद्धार पहले 2050 विक्रमी संवत में राजा विक्रमादित्य ने, फिर सतयुग में राजा हरिश्चंद्र ने और वर्ष 1780 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था। यह भी कहा कि 100 वर्ष से ज्यादा समय तक 1669 से 1780 तक मंदिर का अस्तित्व ही नहीं रहा।ज्ञानवापी प्रकरण में अदालत के आदेश की प्रमुख बातें
– ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण करने वाले पांच विख्यात पुरातत्ववेत्ताओं की टीम में दो लोग अल्पसंख्यक समुदाय के होंगे। पुरातत्व विज्ञान के एक विशेषज्ञ और अनुभवी व्यक्ति को इस कमेटी के पर्यवेक्षक की जिम्मेदारी दी जाए। कमेटी विवादित स्थल की विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेगी।- पुरातात्विक सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य यह है कि विवादित स्थल पर धार्मिक ढांचा किसी अन्य धार्मिक निर्माण पर अध्यारोपण, परिवर्तन, संवर्धन अथवा अतिछाजन है…? यदि ऐसा है तो उसकी निश्चित अवधि, आकार, वास्तुशिल्पीय डिजाइन और बनावट विवादित स्थल पर वर्तमान में किस प्रकार की सामग्री का प्रयोग किया गया।- कमेटी यह पता करेगी कि विवादित स्थल पर क्या कोई मंदिर हिंदू समुदाय का कभी रहा, जिस पर मस्जिद बनाई गई या अध्यारोपित की गई या उस पर जोड़ी गई। यदि हां तो उसकी निश्चित अवधि, आकार, वास्तुशिल्प और बनावट के विवरण के साथ किस हिंदू देवता अथवा देवतागण को समर्पित था।
– कमेटी विवादित स्थल के धार्मिक निर्माण के प्रत्येक भाग में प्रवेश कर सकेगी तथा जांच जीपीआर (भूमि वेधक रडार) अथवा जियो रेडियोलाजी सिस्टम अथवा दोनों का प्रयोग कर सर्वेक्षण करेगी। समानांतर खोदाई तभी होगी, जब कमेटी इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि ऐसी खुदाई से निश्चित जमीन के नीचे अवशेष मिलने की संभावना है।- सर्वे के दौरान प्राचीन कलाकृति जो वादी अथवा प्रतिवादी को संबल प्रदान कर रही है, उसको सुरक्षित रखा जाएगा। यदि किसी गहरी खुदाई से वर्तमान ढांचा गंभीर रूप से प्रभावित होता है अथवा कमेटी ऐसा निर्णय लेती है तो फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी और बाहरी माप, नक्शा, ड्राइंग से पुरातात्विक अवशेष को दर्ज किया जाए और उसे हटाया न जाए।- सर्वे के दौरान कमेटी यह सुनिश्चित करेगी कि विवादित स्थल पर मुस्लिम समुदाय के लोगों के नमाज अदा करने में रुकावट न हो। सर्वे कार्य से नमाज अदा करने की सहूलियत देना संभव प्रतीत नहीं होता हो तो कमेटी कोई दूसरा समुचित स्थान नमाज अदा करने के लिए मस्जिद के परिसर में उपलब्ध कराएगी।
– कमेटी का दोनों समुदायों से समभाव का व्यवहार होगा। सर्वे के पहले कमेटी पक्षकारों अथवा उनके अधिवक्ताओं को नोटिस देगी। पक्षकार स्वयं या अधिवक्ता के जरिये उपस्थित रह सकेंगे, परंतु कोई भी पक्षकार एक से अधिक अधिवक्ता नामित नहीं कर सकेगा।- समस्त सर्वे कार्य ढक कर किया जाएगा। आम जनता एवं मीडिया का प्रवेश निषेध रहेगा। न तो पर्यवेक्षक और न ही कमेटी का कोई सदस्य सर्वे के संबंध में मीडिया से बात करेगा। किसी भी पक्षकार को कमेटी को निर्देश देने का अधिकार नहीं होगा।- कमेटी सर्वे के कार्य की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी कराएगी। सर्वे कार्य पूर्ण होने के बाद कमेटी अपनी संपूर्ण रिपोर्ट बंद लिफाफे में न्यायालय में प्रस्तुत करेगी।

रिश्चंद्र ने और वर्ष 1780 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था। यह भी कहा कि 100 वर्ष से ज्यादा समय तक 1669 से 1780 तक मंदिर का अस्तित्व ही नहीं रहा।ज्ञानवापी प्रकरण में अदालत के आदेश की प्रमुख बातें

– ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण करने वाले पांच विख्यात पुरातत्ववेत्ताओं की टीम में दो लोग अल्पसंख्यक समुदाय के होंगे। पुरातत्व विज्ञान के एक विशेषज्ञ और अनुभवी व्यक्ति को इस कमेटी के पर्यवेक्षक की जिम्मेदारी दी जाए। कमेटी विवादित स्थल की विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेगी।- पुरातात्विक सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य यह है कि विवादित स्थल पर धार्मिक ढांचा किसी अन्य धार्मिक निर्माण पर अध्यारोपण, परिवर्तन, संवर्धन अथवा अतिछाजन है…? यदि ऐसा है तो उसकी निश्चित अवधि, आकार, वास्तुशिल्पीय डिजाइन और बनावट विवादित स्थल पर वर्तमान में किस प्रकार की सामग्री का प्रयोग किया गया।- कमेटी यह पता करेगी कि विवादित स्थल पर क्या कोई मंदिर हिंदू समुदाय का कभी रहा, जिस पर मस्जिद बनाई गई या अध्यारोपित की गई या उस पर जोड़ी गई। यदि हां तो उसकी निश्चित अवधि, आकार, वास्तुशिल्प और बनावट के विवरण के साथ किस हिंदू देवता अथवा देवतागण को समर्पित था।