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धूमिल होती धरोहर : सिर्फ कागजों में मौजूद है पंडित नेहरू की जन्मस्थली की निशानी

सार
तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि इस घर-आंगन में जिसकी किलकारियां गूंजीं, उसकी प्रतिभा, प्रतिष्ठा पूरे देश में गूंजेगी और तब खपरैल या ईंट-पत्थरों से बना यह अदना सा घर धरोहर में तब्दील हो जाएगा। आज शहर की ऐसी ही कई धरोहर धूमिल होती जा रहीं हैं, जहां कभी जन्मे या रहे किसी सितारे ने सूरज बनकर सबको रोशनी दी। आज इन जगहों की या तो सूरत बदल गई या फिर पहचान गुम हो गई है। ऐसी विभूतियों की सूची में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, महामना मदनमोहन मालवीय, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला आदि शख्सियत शामिल हैं। इस अनियतकालीन शृंखला की पहली कड़ी में जवाहर लाल नेहरू की जन्मस्थली की बात… 

prayagraj news : पंडित जवाहर लाल नेहरू (फाइल फोटो)।
– फोटो : prayagraj

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प्रयागराज आने वाले अधिकांश तीर्थयात्री या पर्यटक संगम और आनंद भवन के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू की जन्मस्थली भी देखना चाहते हैं, लेकिन तमाम शहरियों को भी उनकी जन्मस्थली के बारे में ठीक तौर पर पता ही नहीं है। लोग सिर्फ इतना जानते हैं कि उनका जन्म रेड लाइट एरिया कहे जाने वाले चौक के मीरगंज मोहल्ले में हुआ था, लेकिन उनके घर की शिनाख्त को लेकर संशय है, क्योंकि पंडित नेहरू जिस घर में जन्मे, उसकी कोई भी निशानी अब बाकी नहीं है। वह मकान तकरीबन सौ बरस पहले ही जमींदोज कर दिया गया था।
मीरगंज के ही तमाम नए-पुराने लोग बादशाही मंडी पुलिस चौकी के करीब 77, मीरगंज वाले मकान को पंडित नेहरू की जन्मस्थली से जोड़ने का दावा करते हैं, जहां आज दशरथ मार्केट बनी हुई है। मार्केट में टंच और स्वर्णकारों की दुकानें हैं। लेकिन, इससे जुड़े तथ्य आधारहीन हैं। ऐसे में दूसरे दावे में ही असर है। शहर की सांस्कृतिक विरासत को करीब से जानने वाले बाबा अभय अवस्थी कहते हैं, मोतीलाल नेहरू के मीरगंज वाले घर में आने-जाने वाले उनके मित्र चित्रकार प्रभाकर सिंह मेरे बाबू जी को बताते थे कि मौजूदा लोकनाथ चौराहे के दक्षिण पूर्व एक मुस्लिम रईस का बाग था, जिसमें बने एक खपरैल के मकान में ही शहर के जानेमाने वकील पंडित मोतीलाल नेहरू किराए पर रहते थे।
इसी मकान की पहली मंजिल के एक कमरे में 14 नवंबर 1889 को पंडित नेहरू का जन्म हुआ था। लेकिन, बाद में राजनीतिक विद्वेष में पंडित नेहरू की जन्मस्थली को 77, मीरगंज वाले मकान से जोड़कर प्रचारित किया जाने लगा, जो सही नहीं है। क्योंकि तब तक नगर निकाय जैसी संस्था ही नहीं थी, ऐेसे में मकान नंबर का सवाल ही नहीं उठता। जवाहरलाल के जन्म के बाद पंडित मोतीलाल नेहरू मीरगंज वाले मकान में तकरीबन छह वर्षों तक रहे और 1895 में स्वराज भवन चले गए। वर्ष 1924 में म्युनिस्पल डेवलपमेंट बोर्ड के  अस्तित्व में आने के बाद मीरगंज के उक्त बाग वाले इलाके को अधिगृहीत करके वहां बने मकानों को गिराकर नए सिरे से प्लाटिंग की गई।
सराय मीर खां के बाग वाले इलाके में  होटल, बाजार और लोकनाथ व्यायामशाला को जगह मिली
चौक के बुजुर्गों के मुताबिक पुराने चौक इलाके में जीरो रोड के दक्षिण से लेकर भारती भवन तिराहे तक का पूरा इलाका सराय मीर खां के नाम से मशहूर था। तब सिविल इलाका होने के कारण सराय मीर खां के तहत जीटी रोड के दक्षिणी ओर कारोबारियों व कुलीन परिवारों के घर, जबकि उत्तरी ओर तवायफों के कोठे थे, जहां मुजरे हुआ करते थे। लेकिन, मोतीलाल का मकान लोकनाथ चौराहे के दक्षिण-पूर्व कोने पर था, जहां कई वर्ष पहले तक अन्नपूर्णा होटल हुआ करता था, अब उसके नीचे कटे-फटे नोट बदलने वालों की दुकानें हैं।

विस्तार

प्रयागराज आने वाले अधिकांश तीर्थयात्री या पर्यटक संगम और आनंद भवन के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू की जन्मस्थली भी देखना चाहते हैं, लेकिन तमाम शहरियों को भी उनकी जन्मस्थली के बारे में ठीक तौर पर पता ही नहीं है। लोग सिर्फ इतना जानते हैं कि उनका जन्म रेड लाइट एरिया कहे जाने वाले चौक के मीरगंज मोहल्ले में हुआ था, लेकिन उनके घर की शिनाख्त को लेकर संशय है, क्योंकि पंडित नेहरू जिस घर में जन्मे, उसकी कोई भी निशानी अब बाकी नहीं है। वह मकान तकरीबन सौ बरस पहले ही जमींदोज कर दिया गया था।

prayagraj news : जवाहर लाल नेहरू अपनी माता स्वरूपरानी नेहरू के साथ। फाइल फोटो।
– फोटो : prayagraj

मीरगंज के ही तमाम नए-पुराने लोग बादशाही मंडी पुलिस चौकी के करीब 77, मीरगंज वाले मकान को पंडित नेहरू की जन्मस्थली से जोड़ने का दावा करते हैं, जहां आज दशरथ मार्केट बनी हुई है। मार्केट में टंच और स्वर्णकारों की दुकानें हैं। लेकिन, इससे जुड़े तथ्य आधारहीन हैं। ऐसे में दूसरे दावे में ही असर है। शहर की सांस्कृतिक विरासत को करीब से जानने वाले बाबा अभय अवस्थी कहते हैं, मोतीलाल नेहरू के मीरगंज वाले घर में आने-जाने वाले उनके मित्र चित्रकार प्रभाकर सिंह मेरे बाबू जी को बताते थे कि मौजूदा लोकनाथ चौराहे के दक्षिण पूर्व एक मुस्लिम रईस का बाग था, जिसमें बने एक खपरैल के मकान में ही शहर के जानेमाने वकील पंडित मोतीलाल नेहरू किराए पर रहते थे।

prayagraj news : लोकनाथ चौराहे के दक्षिणी पूर्वी छोर पर इसी भवन की जगह बने मकान जन्मे थे देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू।
– फोटो : prayagraj

इसी मकान की पहली मंजिल के एक कमरे में 14 नवंबर 1889 को पंडित नेहरू का जन्म हुआ था। लेकिन, बाद में राजनीतिक विद्वेष में पंडित नेहरू की जन्मस्थली को 77, मीरगंज वाले मकान से जोड़कर प्रचारित किया जाने लगा, जो सही नहीं है। क्योंकि तब तक नगर निकाय जैसी संस्था ही नहीं थी, ऐेसे में मकान नंबर का सवाल ही नहीं उठता। जवाहरलाल के जन्म के बाद पंडित मोतीलाल नेहरू मीरगंज वाले मकान में तकरीबन छह वर्षों तक रहे और 1895 में स्वराज भवन चले गए। वर्ष 1924 में म्युनिस्पल डेवलपमेंट बोर्ड के  अस्तित्व में आने के बाद मीरगंज के उक्त बाग वाले इलाके को अधिगृहीत करके वहां बने मकानों को गिराकर नए सिरे से प्लाटिंग की गई।

prayagraj news : मीरगंज स्थित दशरथ मार्केट वाली जगह को भी पं. जवाहरलाल नेहरू के जन्म स्थान होने का दावा किया जाता है।
– फोटो : prayagraj

सराय मीर खां के बाग वाले इलाके में  होटल, बाजार और लोकनाथ व्यायामशाला को जगह मिलीचौक के बुजुर्गों के मुताबिक पुराने चौक इलाके में जीरो रोड के दक्षिण से लेकर भारती भवन तिराहे तक का पूरा इलाका सराय मीर खां के नाम से मशहूर था। तब सिविल इलाका होने के कारण सराय मीर खां के तहत जीटी रोड के दक्षिणी ओर कारोबारियों व कुलीन परिवारों के घर, जबकि उत्तरी ओर तवायफों के कोठे थे, जहां मुजरे हुआ करते थे। लेकिन, मोतीलाल का मकान लोकनाथ चौराहे के दक्षिण-पूर्व कोने पर था, जहां कई वर्ष पहले तक अन्नपूर्णा होटल हुआ करता था, अब उसके नीचे कटे-फटे नोट बदलने वालों की दुकानें हैं।