संगम पर सूखी गंगा, आचमन-स्नान के लायक नहीं बचा जल – Lok Shakti

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संगम पर सूखी गंगा, आचमन-स्नान के लायक नहीं बचा जल

prayagraj news : जल की कमी से संगम पर गंगा में टीले बन गए हैं।
– फोटो : prayagraj

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गर्मी शुरू होते ही संगमनगरी में गंगा की धारा कई जगह सिमट गई है। माघ मेला के महज महीने भर बाद जलधारा सूखने से फाफामऊ से अरैल के बीच रेत के टीले उभर आए हैं। संगम पर डुबकी लगाने और आचमन करने लायक भी जल नहीं रह गया है। इससे श्रद्धालुओं,तीर्थपुरोहितों, संतों की चिंता बढ़ गई है। तटवर्ती इलाकों में रेत पर उगाई जाने वाली जायद की फसलों की सिंचाई का भी संकट पैदा हो गया है। साथ ही भूजल स्तर खिसकने की आशंका बढ़ गई है। कहा जा रहा है कि अगर समय रहते न्यूनतम प्रवाह को लेकर सरकारों ने नहीं चेता तो आने वाले समय में तीर्थनगरी में संकट बढ़ने से इंकार नहीं किया जा सकता।
गंगोत्री से गंगासागर तक करोड़ों लोगों के जीवन और आजीविका का आधार बनी जीवन दायिनी गंगा प्रयागराज में अब खुद प्यासी तड़प रही है। प्रवाह न होने से यह संकट पैदा हुआ है। साथ ही नालों से गंदा पानी बहाए जाने से मुक्तिदायिनी की धारा प्रदूषित भी हो रही है। बीती जनवरी से मार्च के बीच कोरोना काल के माघ मेले के दौरान जहां गंगा में तेज प्रवाह की वजह से साधु-संतों के शिविरों के पास कटान हो गई थी, और प्रवाह करीब तीन सौ मीटर के दायरे तक फैला नजर आ रहा था, वहीं अब गंगा सिमट कर कहीं 50 तो कहीं 30 मीटर से भी कम रह गई हैं। संगम पर जल स्तर इतना सिमट गया है कि लोग स्नान भी नहीं कर पा रहे हैं। गंगा की इस दशा को लेकर साधु-संत और तीर्थ पुरोहितों की चिंता बढ़ गई है। संगम नगरी में जहां महीने भर पहले ही माघ मेले में लाखों श्रद्धालुओं का रेला उमड़ा था, वहीं अब संगम पर ही डुबकी लगाने भर के लिए जल नहीं रह गया है।
इसका एक बड़ा कारण यह भी है की माघ मेले के बाद गंगा में नरोरा और कानपुर बैराज से पानी नहीं छोड़ा जा रहा है। गंगा पर लंबे समय से काम कर रहे टीकरमाफी मठ के महंत स्वामी हरि चैतन्य ब्रह्मचारी गंगा में जल न छोड़े जाने से नाराज हैं। उनका कहना है कि पर्र्वों पर ही पानी छोड़ा जा रहा है। जबकि, झूंसी, नैनी और फाफामऊ के सारे नाले खुलेआम गंगा में बहाए जा रहे हैं। इसे किसी भी दशा में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। इसी तरह प्रयागवाल सभा के अध्यक्ष डॉ प्रकाश चंद्र मिश्र ने गंगा की इस दुर्दशा पर सड़क पर उतरने की चेतावनी दी है। उनका कहना है कि बांधों से शीघ्र जल नहीं छोड़ा गया तो आंदोलन शुरू कर दिया जाएगा। उधर, शिवकुटी, बदरा-सोनौटी से लेकर अरैल के बीच जायद की फसलें भी सिंचाई के अभाव में मुरझाने लगी हैं। पप्पू लाल निषाद और संदीप निषाद बताते हैं कि जलधारा सिमट कर दो से तीन सौ मीटर तक आगे निकल गई है। इस वजह से रेत पर उगाई गई सब्जियों की सिंचाई को लेकर संकट पैदा हो गया है।यूपी-उत्तराखंड के सीएम से मिलेंगे अखाड़ा परिषद अध्यक्षअखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने संगम पर गंगा की जलधारा सूखने के लिए उत्तराखंड और यूपी के अफसरों को जिम्मेदार ठहराया है। बृहस्पतिवार को उन्होंने बताया कि वह गंगा की मौजूदा स्थिति पर सीएम योगी आदित्यनाथ और उत्तराखंड के सीएम तीरथ सिंह रावत से मुलाकात करेंगे। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष ने कहा कि कोर्ट ने भी न्यूनतम प्रवाह बनाए रखने का आदेश दिया है। उसका पालन तो हर हाल में किया जाना चाहिए।

गर्मी शुरू होते ही संगमनगरी में गंगा की धारा कई जगह सिमट गई है। माघ मेला के महज महीने भर बाद जलधारा सूखने से फाफामऊ से अरैल के बीच रेत के टीले उभर आए हैं। संगम पर डुबकी लगाने और आचमन करने लायक भी जल नहीं रह गया है। इससे श्रद्धालुओं,तीर्थपुरोहितों, संतों की चिंता बढ़ गई है। तटवर्ती इलाकों में रेत पर उगाई जाने वाली जायद की फसलों की सिंचाई का भी संकट पैदा हो गया है। साथ ही भूजल स्तर खिसकने की आशंका बढ़ गई है। कहा जा रहा है कि अगर समय रहते न्यूनतम प्रवाह को लेकर सरकारों ने नहीं चेता तो आने वाले समय में तीर्थनगरी में संकट बढ़ने से इंकार नहीं किया जा सकता।

prayagraj news : जल की कमी से संगम पर गंगा में टीले बन गए हैं।
– फोटो : prayagraj

गंगोत्री से गंगासागर तक करोड़ों लोगों के जीवन और आजीविका का आधार बनी जीवन दायिनी गंगा प्रयागराज में अब खुद प्यासी तड़प रही है। प्रवाह न होने से यह संकट पैदा हुआ है। साथ ही नालों से गंदा पानी बहाए जाने से मुक्तिदायिनी की धारा प्रदूषित भी हो रही है। बीती जनवरी से मार्च के बीच कोरोना काल के माघ मेले के दौरान जहां गंगा में तेज प्रवाह की वजह से साधु-संतों के शिविरों के पास कटान हो गई थी, और प्रवाह करीब तीन सौ मीटर के दायरे तक फैला नजर आ रहा था, वहीं अब गंगा सिमट कर कहीं 50 तो कहीं 30 मीटर से भी कम रह गई हैं। संगम पर जल स्तर इतना सिमट गया है कि लोग स्नान भी नहीं कर पा रहे हैं। गंगा की इस दशा को लेकर साधु-संत और तीर्थ पुरोहितों की चिंता बढ़ गई है। संगम नगरी में जहां महीने भर पहले ही माघ मेले में लाखों श्रद्धालुओं का रेला उमड़ा था, वहीं अब संगम पर ही डुबकी लगाने भर के लिए जल नहीं रह गया है।

prayagraj news : जल की कमी से संगम पर गंगा में टीले बन गए हैं।
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इसका एक बड़ा कारण यह भी है की माघ मेले के बाद गंगा में नरोरा और कानपुर बैराज से पानी नहीं छोड़ा जा रहा है। गंगा पर लंबे समय से काम कर रहे टीकरमाफी मठ के महंत स्वामी हरि चैतन्य ब्रह्मचारी गंगा में जल न छोड़े जाने से नाराज हैं। उनका कहना है कि पर्र्वों पर ही पानी छोड़ा जा रहा है। जबकि, झूंसी, नैनी और फाफामऊ के सारे नाले खुलेआम गंगा में बहाए जा रहे हैं। इसे किसी भी दशा में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। इसी तरह प्रयागवाल सभा के अध्यक्ष डॉ प्रकाश चंद्र मिश्र ने गंगा की इस दुर्दशा पर सड़क पर उतरने की चेतावनी दी है। उनका कहना है कि बांधों से शीघ्र जल नहीं छोड़ा गया तो आंदोलन शुरू कर दिया जाएगा। उधर, शिवकुटी, बदरा-सोनौटी से लेकर अरैल के बीच जायद की फसलें भी सिंचाई के अभाव में मुरझाने लगी हैं। पप्पू लाल निषाद और संदीप निषाद बताते हैं कि जलधारा सिमट कर दो से तीन सौ मीटर तक आगे निकल गई है। इस वजह से रेत पर उगाई गई सब्जियों की सिंचाई को लेकर संकट पैदा हो गया है।यूपी-उत्तराखंड के सीएम से मिलेंगे अखाड़ा परिषद अध्यक्षअखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने संगम पर गंगा की जलधारा सूखने के लिए उत्तराखंड और यूपी के अफसरों को जिम्मेदार ठहराया है। बृहस्पतिवार को उन्होंने बताया कि वह गंगा की मौजूदा स्थिति पर सीएम योगी आदित्यनाथ और उत्तराखंड के सीएम तीरथ सिंह रावत से मुलाकात करेंगे। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष ने कहा कि कोर्ट ने भी न्यूनतम प्रवाह बनाए रखने का आदेश दिया है। उसका पालन तो हर हाल में किया जाना चाहिए।