कर्ताभाव और कर्मफल की आसक्ति का त्याग करना ही निष्काम कर्मयोग
भोपाल : बुधवार, मार्च 31, 2021, 20:43 IST
आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास द्वारा बुधवार को शंकर व्याख्यानमाला में रामकृष्ण मिशन विवेकानंद विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति स्वामी आत्मप्रियानंद ने ‘निष्काम कर्म’ पर व्याख्यान दिया।स्वामीजी ने श्रीमद भगवद गीता के आधार पर सहजता से निष्काम कर्म को समझाते हुए कहा कि कर्मफल आसक्ति और कर्तव्य बुद्धि का त्याग करके कर्म करना ही ‘निष्काम कर्म’ है। कर्मफल आसक्ति और कर्ता भाव ही बंधन का कारण है। हमें यह बोध होना चाहिए कि कर्म हमारे द्वारा नहीं, परमात्मा के द्वारा किया जाता है। जिस प्रकार कंप्यूटर लेख नहीं लिखता है, वह केवल माध्यम है। इसी प्रकार हम केवल माध्यम हैं, कर्ता नहीं। सभी कार्य ईश्वर की शक्ति से सम्पन्न होते हैं, प्रकृति द्वारा निष्पादित होते हैं। स्वामी जी ने कहा कि कर्म को ईश्वर को अर्पित करना चाहिए। अंतःकरण की शुद्धि के लिए कर्म करना चाहिए।इस व्याख्यान को आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास के यूट्यूब चैनल पर देखा जा सकता है। न्यास द्वारा प्रतिमाह शंकर व्याख्यानमाला का आयोजन किया जाता है। इसमें विश्व के प्रतिष्ठित विद्वान-संत जीवनोपयोगी आध्यात्मिक विषयों पर व्याख्यान देते हैं।स्वामी आत्मप्रियानंदस्वामी आत्मप्रियानंद रामकृष्ण मिशन विवेकानंद शिक्षण एवं शोध संस्थान, बेलूर के प्रति कुलपति हैं। वे 15 वर्षों से अधिक समय तक इस विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके हैं। स्वामी जी को मद्रास विश्वविद्यालय से भौतिकी में विज्ञान परास्नातक तथा मूल कण सिद्धांत पर कार्य करने पर सैद्धांतिक भौतिकी में पीएचडी की उपाधि प्राप्त हुई है। स्वामी जी को 2021 में उत्कृष्ट उपलब्धियों के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर द्वारा डॉक्टर ऑफ साइंस की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया है। बतौर सन्यासी और शिक्षाविद, स्वामी जी के अध्ययन के प्रमुख विषय ‘योग-वेदांत व आधुनिक विज्ञान’ तथा ‘उपनिषदों में वर्णित चेतना अध्ययन’ रहे हैं। स्वामी जी अनेक वैश्विक मंचों पर भारत और हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व भी करते हैं।
सुनीता दुबे
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