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पं. नेहरू की पुण्यतिथि पर मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने अर्पित की श्रद्धांजलि

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रायपुर, 27 मई 2019/देश के पहले प्रधानमंत्री एवं भारत रत्न पं. जवाहर लाल नेहरू की 55 वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आज मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि कृतज्ञ प्रदेश और देश उन्हें आदर के साथ याद कर रहा है। मैं छत्तीसगढ़ की 2 करोड़ 80 लाख जनता की ओर से पं. नेहरू को सादर नमन करता हूँ और श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ।
मुख्यमंत्री श्री बघेल ने इस अवसर पर आकाशवाणी के माध्यम से छत्तीसगढ़ की जनता के नाम संदेश दिया। अपने संदेश में मुख्यमंत्री ने देश के आजादी की दिन 15 अगस्त 1947 को संसद के सेन्ट्रल हॉल में दिए गए एतिहासिक भाषण ‘नियति से साक्षात्कार‘ का उल्लेख किया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि 20वीं शताब्दी में भारत ने दुनिया को अनेक अनमोल रत्न दिए थे, जिन्होंने दुनिया में लोकतंत्र की अलख जगाने के साथ देश के नवनिर्माण में अहम भूमिका निभाई। उनमें यदि पहला नाम महात्मा गांधी का था, तो दूसरा नाम पं. जवाहरलाल नेहरू का। गांधी नेहरू के साथ मिलकर संघर्ष, त्याग और बलिदान करने वाली विभूतियां जन-जन के मन में बसी हुई हैं। उनको याद करना वास्तव में अपने ऐसे पुरखे को याद करना है, जिनके व्यक्तित्व और कृतित्व की अमिट छाप न सिर्फ भारतवासियों के दिल-दिमाग में अंकित है, बल्कि लोकतांत्रिक दुनिया में एक चमकते सितारे की तरह विश्व इतिहास में दर्ज है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पं. नेहरू विख्यात बैरिस्टर के बेटे थे और उनकी पढ़ाई सर्वश्रेष्ठ संस्थाओं में हुई। अगर चाहते तो अमीरों का जीवन बीता सकते थे, लेकिन भारत की आजादी को उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बनाया था और इसके लिए सारी सुख-सुविधाएं छोड़कर, खद्दर पहनकर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। आज़ादी की लड़ाई के दौरान वे महात्मा गांधी के प्रभाव में रहे और उनके आंदोलन को आगे बढ़ाते हुए वे गांधी जी के राजनीतिक उत्तराधिकारी बने।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पं. नेहरू के योगदान पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाले शायद नहीं जानते कि आज़ादी की लड़ाई के दौरान वे नौ वर्ष से भी अधिक समय तक जेल में रहे। आज उन्हें इसलिए याद करने की ज़रूरत नहीं है कि वे देश के पहले प्रधानमंत्री थे या फिर वे 17 वर्षों तक लगातार प्रधानमंत्री बने रहे। आज उनको याद करने की ज़रूरत इसलिए है कि उन्होंने हमें ऐसा भारत दिया जिस पर हम गर्व करते हैं।
पं. नेहरू की सोच एक विराट सोच थी। वे भारत की संस्कृति के उपासक थे। ’धर्म, आध्यात्म, विज्ञान और तर्क के बीच उन्होंने अद्भुत समन्वय बना लिया था। संस्कृति, धर्म और आध्यात्म को सहेजते हुए वे भारत को वैज्ञानिक सोच के साथ आगे बढ़ाना चाहते थे। 1947 में अंग्रेज़ जो भारत छोड़ गए थे उसके बारे में दुनिया में किसी ने कल्पना नहीं की थी कि यह देश वापस अपने पैरों पर कैसे खड़ा होगा। दो सौ साल की गुलामी के बाद छिन्न भिन्न भारत को पं. नेहरू ने ठोस कार्य योजना के साथ खड़ा करना शुरु किया।
पं. नेहरू ने देश के विकास के लिए लोकतंत्र को अपना मूलमंत्र बनाया। शून्य से शुरूआत करते हुए भी बड़े-बड़े बांध, सिंचाई परियोजनाएं, बिजली और खाद के कारखाने, इस्पात कारखाने, भारी उद्योग, रेल, विमानन क्षेत्रों का विकास और सबसे बड़ी खूबसूरती यह कि सारे संस्थान निजी क्षेत्र में नहीं बल्कि सावर्जनिक क्षेत्र में स्थापित किए गए। उन्होंने स्कूल, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों का जाल, रिसर्च सेन्टर, मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज, अस्पताल आदि संस्थानों में न सिर्फ भारत का भविष्य गढ़ा गया, बल्कि आजादी के संघर्ष से निकली नई पीढ़ी को बड़े पैमाने पर रोजगार दिया।
देश में 1953 में परमाणु अनुसंधान संस्थान, 1956 में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, 1961 में आईआईटी और 1962 में अंतरिक्ष अनुसंधान की शुरुआत की गई। आज अगर भारत 104 सैटेलाइट एक साथ अंतरिक्ष में स्थापित करने का इतिहास रचता है तो उसकी नींव में नेहरू जी की सोच ही थी। सामाजिक अधोसंरचना से लेकर सड़क, बिजली, पानी, रेलवे, विमानन जैसी भौतिक अधोसंरचना के विकास के लिए उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
मुख्यमंत्री ने कहा कि भिलाई स्टील प्लांट छत्तीसगढ़ को पं. नेहरू की अनुपम सौगात है। यह संस्थान ‘नेहरू मॉडल’ के औद्योगिकीकरण की मिसाल है कि किस तरह इससे इस्पात ही नहीं बना, बल्कि जिंदगियां भी बनाई गईं। दुनिया भर के विद्वान मानते हैं कि यदि नेहरू जी प्रधानमंत्री न होते तो वे दुनिया के नामचीन लेखक, चिंतक और विचारक होते। उनकी दो किताबें ‘विश्व इतिहास की झलक‘ और ‘भारत एक खोज‘ इसका साक्षात प्रमाण हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि छोटे-छोटे राज्यों में बंटे भारत को एक अखंड देश के रूप में पिरोने की कल्पना नेहरू जी ने ही की थी और अपने अनन्य सहयोगी वल्लभ भाई पटेल के साथ मिलकर इसे अमली जामा पहनाया। आज़ादी के बाद राष्ट्रवाद का ज़ोर चल रहा था तब उन्होंने अंतरराष्ट्रवाद की बात कही और लोगों को चेतावनी दी थी कि राष्ट्रवाद अगर संकीर्ण होगा तो ख़तरा बन जाएगा और नेहरू जी की चेतावनी सही साबित हो रही है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि कश्मीर को लेकर फैलाए जा रहे झूठ का पर्दाफाश अब युवाओं और बुद्धिजीवियों को करना चाहिए। यह तथ्य इतिहास में अमिट रूप से दर्ज है कि अगर नेहरू न होते तो कश्मीर भारत का अंग ही न होता। उन्होंने यह भी कहा कि पं. नेहरू और नेता जी सुभाष चंन्द्र बोस को लेकर अनेक भ्रम परोसे जाते हैं। सच तो यह कि नेहरू उनके अनन्य सहयोगी और मित्र थे। यह भी झूठ है कि पं. नेहरू भारत के विभाजन और पाकिस्तान बनाने के लिए जिम्मेदार थे। सच यह है कि जब कुछ लोग धर्म के आधार पर भारत के विभाजन की रुपरेखा बना रहे थे तब नेहरू एक प्रगतिशील भारत के लिए ब्लू पिं्रट तैयार कर रहे थे।
मुख्यमंत्री श्री बघेल ने कहा कि 1931 में कराची के कांग्रेस अधिवेशन में उस भारत की कल्पना कर ली गई थी जिस पर आज हम गर्व करते हैं। उसी अधिवेशन में संविधान की बुनियाद रख दी गई थी। वे सांप्रदायिकता के ख़तरे से ठीक तरह से वाकिफ़ थे। इसलिए वे लगातार धर्म निरपेक्षता की बात कह रहे थे। उन्होंने स्पष्ट भी किया कि धर्म निरपेक्षता का मतलब धर्म विहीन नहीं बल्कि हर धर्म और संप्रदाय को सम्मान देना है। उन्होंने उच्च जीवन मूल्यों की बात की।
पं. नेहरू बच्चों को आधुनिक भारत के निर्माण का अग्रदूत बनाना चाहते थे, नई पीढ़ी को ज्ञान और कौशल से सक्षम बनाना चाहते थे। वे भारत को पोंगापंथ और रूढ़िवाद से दूर करके वैज्ञानिक सोच वाले देश में बदलना चाहते थे। उन्होंने जो बुनियाद रखी थी, उसी पर बुलंद भारत की इमारत खड़ी हो रही है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पं. नेहरू विराट व्यक्तित्व के धनी थे, जिनके पुण्य कर्मों की वजह से आज भारत एक विश्व शक्ति है। भारत रत्न और एक महान भारतीय आत्मा के बारे में फैलाए जा रहे भ्रम को तोड़ना हम सबका साझा कर्तव्य है। यही उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का यह सार्थक तरीका है और उनके प्रति हमारी यह सच्ची श्रद्धाजंलि भी होगी।