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उत्तर प्रदेश के अशासकीय महाविद्यालयों में विज्ञापन संख्या-49 के तहत प्राचार्य के 290 पदों पर भर्ती के लिए इंटरव्यू 20 मार्च से शुरू होने जा रहा है। उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग (यूपीएचईएससी) कई चरणों में इंटरव्यू का कार्यक्रम आयोजित करेगा। इंटरव्यू के लिए प्रतिदिन 12 अभ्यर्थियों को बुलाया जाएगा। इसके साथ ही आयोग ने 31 मार्च एवं एक अप्रैल को प्रस्तावित अभिलेख सत्यापन का कार्यक्रम टाल दिया है। संशोधित कार्यक्रम के अनुसार अब छह से 12 अप्रैल तक अभिलेख सत्यापन की प्रक्रिया चलेगी।
प्राचार्य पद की भर्ती के लिए लिखित परीक्षा पिछले साल 29 अक्तूबर को आयोजित की गई थी। परीक्षा के लिए 917 अभ्यर्थी पंजीकृत थे और इनमें से 743 अभ्यर्थी परीक्षा में शामिल हुए थे। लिखित परीक्षा के आधार पर आयोग ने 610 अभ्यर्थियों को इंटरव्यू के लिए अर्ह घोषित किया था। प्राचार्य भर्ती के लिए इंटरव्यू कई चरणों में आयोजित किया जाएगा और इनमें से दो चरणों का कार्यक्रम जारी किया जा चुका है। इंटरव्यू शनिवार से शुरू होने जा रहा है। साक्षात्कार से पूर्व अर्ह घोषित किए गए अभ्यिर्थयों के अभिलेखों का सत्यापन भी कराया जा रहा है। सत्यापन के लिए अलग-अलगक तिथियों पर अभ्यर्थियों को बुलाया गया है।
आयोग ने इनमें से 31 मार्च और एक अप्रैल को प्रस्तावित अभिलेख सत्यापन का कार्यक्रम स्थगित कर दिया है। इसकी जगह अभ्यर्थियों को अब क्रमश: छह, सात, आठभ्अप्रैल और आठ, नौ, 12 अप्रैल को अभिलेख सत्यापन के लिए आयोग में आना होगा। आयोग की सचिव वंदना त्रिपाठी के अनुसार अभ्यिर्थयों को अभिलेख सत्यापन के लिए सुबह 10.30 बजे आयोग में उपस्थित होना है। सत्यापन के लिए बुलाए गए अभ्यर्थियों का संशोधित विवरण आयोग के पोर्टल पर उपलब्ध है।
एमएलसी ने प्राचार्य भर्ती में लगाए धांधली के आरोप
विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) आकाश अग्रवाल ने प्राचार्य भर्ती में धांधली के आरोप लगाए हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सचिव को पत्र लिखकर कहा है कि तीन दिनों में मामले की जांच कराकर कोई कार्रवाई नहीं की गई तो इस मुद्दे को सदन में उठाएंगे। एमएलसी का आरोप है कि भर्ती में एक सदस्य की पत्नी भी अभ्यर्थी हैं। आयोग के सभी अफसरों एवं कर्मचारियों को पता है, लेकिन किसी ने संज्ञान नहीं लिया। उनका दावा है कि अभ्यर्थियों को प्रमाणपत्रों का सत्यपन किए बिना ही अनर्ह घोषित कर दिया गया जो पूर्णत: नियमों के विपरीत है। यूजीसी ने प्राचार्य पद के लिए उच्च शिक्षण संस्थानों में केवल 15 वर्ष का अनुभव आवश्यक बताया है, लेकिन आयोग ने इस नियम की भी अनदेखी की और स्ववित्त पोषित संस्थानों में चयन समिति से नियुक्त एवं विश्वविद्यालय के कुलपति की ओर से अनुमोदित शिक्षकों के शिक्षण अनुभव को शामिल नहीं किया। इसी तरह ढेरों गलतियां की गईं।
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