आदि विश्वेश्वर और शृंगार गौरी की पूजा के अधिकार की याचिका मूल वाद के रूप में दर्ज होः कोर्ट – Lok Shakti

Lok Shakti

Nationalism Always Empower People

आदि विश्वेश्वर और शृंगार गौरी की पूजा के अधिकार की याचिका मूल वाद के रूप में दर्ज होः कोर्ट

प्रतीकात्मक तस्वीर
– फोटो : सोशल मीडिया

ख़बर सुनें

ख़बर सुनें

 श्री आदि विशेश्वर और मां शृंगार गौरी की पूजा के अधिकार, नए मंदिर के निर्माण में विपक्षियों को हस्तक्षेप करने से रोकने को लेकर दाखिल याचिका को पोषणीय मानते हुए मूल वाद के रूप में दर्ज किया जाए। यह आदेश बृहस्पतिवार को सिविल जज सीनियर डिवीजन महेंद्र कुमार सिंह की अदालत ने दिया है। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि याचिका पूजा के अधिकार को लेकर दाखिल है जो सिविल अधिकार के अंतर्गत आता है।ऐसे में मूल वाद के रूप मर दर्ज कर सिविल कानून के तहत ही इसका निस्तारण किया जाना न्यायोचित होगा। इस याचिका पर वादी पक्ष और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी और सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से दलीलें सुनने के बाद अदालत ने अपना आदेश 18 मार्च तक के लिए सुरक्षित कर लिया था। कमेटी के अधिवक्ता रईस अहमद ने दलील में कहा था कि याचिका 1991 के पूजा स्थल उपबंध विधेयक से बाधित है।श्री विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट की संपदा होने के कारण वादी पक्ष ने किस हैसियत से अदालत में याचिका दाखिल की है। ज्ञानवापी मस्जिद सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड की संपदा होने के कारण उसे ही सुनवाई का अधिकार है। याचिका में यूपी सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड को भी पक्षकार बनाया गया है और कमेटी वक्फ बोर्ड का ही अंग है। ऐसे में याचिका की सुनवाई का अधिकार वक्फ बोर्ड लखनऊ को है और यह याचिका पोषणीय नहीं है। इसलिए इसे खारिज किया जाए।
इसके पूर्व मां शृंगार गौरी, श्री आदि विश्वेश्वर और श्रद्धालुओं की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने याचिका दाखिल की थी। उन्होंने यूनियन ऑफ इंडिया, काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट, जिला प्रशासन, सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड, अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी आदि को पक्षकार बनाकर ज्ञानवापी मस्जिद को गिराकर हिंदू धर्मिक स्थल घोषित किए जाने और मां गंगा, हनुमान, गणेश, नंदी, मां शृंगार गौरी, श्री आदि विश्वेश्वर के दर्शन-पूजन का आदेश दिए जाने का अनुरोध किया था।अधिवक्ता का कहना था कि श्री आदि विश्वेश्वर का क्षेत्र पांच कोस के दायरे में आता है। 1936 में एक मुकदमे में निर्णीत हुआ था कि लार्ड विश्वेश्वर के समीप ही मां शृंगार गौरी का मंदिर है। मंदिर के ऊपर ढांचा खड़ा कर देने से उसे मस्जिद नहीं कहा जा सकता। यह भी कहा था कि विश्वनाथ मंदिर अधिनियम भी श्री आदि विश्वेश्वर और मां शृंगार गौरी को मान्यता देता है।वहीं, अधिवक्ता मदनमोहन यादव की दलील थी मंदिर में दर्शन-पूजन हिंदुओं का संविधान के तहत मौलिक अधिकार है। इसलिए भगवान श्री आदि विशेश्वर और भगवती शृंगार गौरी के ऊपर से कथित मस्जिद को हटाया जाए। इसके साथ ही उसे गिराकर नए मंदिर के निर्माण की अनुमति दी जाए।

 श्री आदि विशेश्वर और मां शृंगार गौरी की पूजा के अधिकार, नए मंदिर के निर्माण में विपक्षियों को हस्तक्षेप करने से रोकने को लेकर दाखिल याचिका को पोषणीय मानते हुए मूल वाद के रूप में दर्ज किया जाए। यह आदेश बृहस्पतिवार को सिविल जज सीनियर डिवीजन महेंद्र कुमार सिंह की अदालत ने दिया है। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि याचिका पूजा के अधिकार को लेकर दाखिल है जो सिविल अधिकार के अंतर्गत आता है।

ऐसे में मूल वाद के रूप मर दर्ज कर सिविल कानून के तहत ही इसका निस्तारण किया जाना न्यायोचित होगा। इस याचिका पर वादी पक्ष और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी और सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से दलीलें सुनने के बाद अदालत ने अपना आदेश 18 मार्च तक के लिए सुरक्षित कर लिया था। कमेटी के अधिवक्ता रईस अहमद ने दलील में कहा था कि याचिका 1991 के पूजा स्थल उपबंध विधेयक से बाधित है।

श्री विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट की संपदा होने के कारण वादी पक्ष ने किस हैसियत से अदालत में याचिका दाखिल की है। ज्ञानवापी मस्जिद सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड की संपदा होने के कारण उसे ही सुनवाई का अधिकार है। याचिका में यूपी सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड को भी पक्षकार बनाया गया है और कमेटी वक्फ बोर्ड का ही अंग है। ऐसे में याचिका की सुनवाई का अधिकार वक्फ बोर्ड लखनऊ को है और यह याचिका पोषणीय नहीं है। इसलिए इसे खारिज किया जाए।

इसके पूर्व मां शृंगार गौरी, श्री आदि विश्वेश्वर और श्रद्धालुओं की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने याचिका दाखिल की थी। उन्होंने यूनियन ऑफ इंडिया, काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट, जिला प्रशासन, सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड, अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी आदि को पक्षकार बनाकर ज्ञानवापी मस्जिद को गिराकर हिंदू धर्मिक स्थल घोषित किए जाने और मां गंगा, हनुमान, गणेश, नंदी, मां शृंगार गौरी, श्री आदि विश्वेश्वर के दर्शन-पूजन का आदेश दिए जाने का अनुरोध किया था।अधिवक्ता का कहना था कि श्री आदि विश्वेश्वर का क्षेत्र पांच कोस के दायरे में आता है। 1936 में एक मुकदमे में निर्णीत हुआ था कि लार्ड विश्वेश्वर के समीप ही मां शृंगार गौरी का मंदिर है। मंदिर के ऊपर ढांचा खड़ा कर देने से उसे मस्जिद नहीं कहा जा सकता। यह भी कहा था कि विश्वनाथ मंदिर अधिनियम भी श्री आदि विश्वेश्वर और मां शृंगार गौरी को मान्यता देता है।वहीं, अधिवक्ता मदनमोहन यादव की दलील थी मंदिर में दर्शन-पूजन हिंदुओं का संविधान के तहत मौलिक अधिकार है। इसलिए भगवान श्री आदि विशेश्वर और भगवती शृंगार गौरी के ऊपर से कथित मस्जिद को हटाया जाए। इसके साथ ही उसे गिराकर नए मंदिर के निर्माण की अनुमति दी जाए।