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राहुल गांधी फिर से ‘दक्षिण भारत बनाम उत्तर भारत’ का मुद्दा फिर से उठाकर देश को बांट रहे हैं

26- FEB – 2021

दक्षिण भारत बनाम उत्तर भारत, वामपंथी इतिहासकारों और कम्युनिस्ट थिंकटैंक का पुराना राग रहा है, जो कि उनकी भारत को तोड़ने की वर्षों की नीति का एक प्रमुख अंग रहा है। अब कांग्रेस के राजकुमार राहुल गाँधी अपनी असफलताओं को ढकने के लिए इसी बकवास को फिर से हवा दे रहे हैं। राहुल गाँधी ने केरल में कहा कि इस राज्य में लोग मुद्दों पर आधारित राजनीति को अधिक तवज्जो देते हैं जबकि उत्तर भारत में ऐसा नहीं है। उन्होंने अपने पूर्व संसदीय क्षेत्र, अमेठी, के लोगों का भी अपमान किया।

राहुल गाँधी ने त्रिवेंद्रम में एक रैली को सम्बोधित करते हुए कहा कि, “सांसद के रूप में मुझे तजुर्बा हुआ, मैं केरल के लोगों कि बुद्धिमत्ता को जान पाया। शुरू के 15 साल, मैं उत्तर भारत में संसद था। वहां मैं दूसरे तरह कि राजनीति का आदी हो रहा था। मेरे लिए केरल आना बहुत अच्छा रहा क्योंकि अचानक ही मुझे पता लगा कि लोग मुद्दों में रूचि रखते हैं और उनकी रूचि केवल सतही नहीं है बल्कि वे हर मुद्दे कि तह तक जाते हैं।”

उन्होंने आगे कहा “मैं अमेरिका में कुछ विद्यार्थियों से बात कर रहा था और मैंने उन्हें बताया कि मुझे केरल जाना कितना पसंद है। यह केवल लगाव के कारण नहीं है बल्कि आप लोग जिस तरह से राजनीति करते हैं। क्या मुझे कहना चाहिए कि, जिस बौद्धिकता के साथ आप राजनीति करते हैं। अब तक यह मेरे लिए यह तजुर्बा सीखने लायक और सुखद रहा है।”

कांग्रेस ने वर्षों तक उत्तर भारतीय राज्यों में एकछत्र राज किया है। खुद राहुल गाँधी 15 वर्षों तक अमेठी के सांसद रहे, इसके बाद भी उनके संसदीय क्षेत्र में कोई विकास कार्य नहीं हुआ। जब अमेठी कि जनता में त्रस्त होकर राहुल गाँधी को चुनाव में हरा दिया तो वो अपनी असफलता को स्वीकार करने के बजाए अमेठी और उत्तर भारत के लोगों का अपमान करने लगे।

उनके बयान पर जवाब देते हुए केंद्रीय मंत्री और वर्तमान अमेठी सांसद स्मृति ईरानी ने कहा “राहुल गाँधी कि राजनीति द्वेषपूर्ण और बदले कि भावना से भरी है, जो न केवल अमेठी के लोगों का अपमान करती है बल्कि उत्तर भारत और दक्षिण भारत के बीच अलगाव को बढ़ावा देती है और हर भारतीय को इसकी आलोचना करनी चाहिए।”

वामपंथी प्रोपोगेंडा फैलाने वाले लोगों द्वारा यह प्रयास हमेशा से किया गया ही कि उत्तर भारत और दक्षिण भारत के बीच अलगाव बढ़ाया जाए। लेकिन कांग्रेस इस तरह के विचार को तब ही समर्थन देती है जब उसे अपनी राजनितिक मृत्यु दिखाई देती है।लोगों को आपस में बाँटकर देश के छोटे छोटे टुकड़ों, पर शाहन करना इन तत्वों के लिए आसान है। देश के लोगों में जो सामाजिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक विभिन्नता है, उसे निहित स्वार्थों के लिए विभाजनकारी तत्वों द्वारा बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जाता है। ये वहीँ लोग हैं जो सत्ता में रहते हुए अनेकता में एकता का ज्ञान देते हैं और विपक्ष में बैठने पर विभाजनकारी विचारों को तवज्जो देते हैं।

इसके पूर्व भी जब वाजपेयी काल में भाजपा संसद में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी तो भी कांग्रेस का रवैया ऐसा ही था। भाजपा ने उत्तर भारत में अच्छा प्रदर्शन किया था तो उत्तर भारत के लोगों की राजनितिक सूझबूझ का मजाक बनाने के लिए उत्तर भारत को कम्युनिस्टों और कांग्रेसियों ने “काऊ बेल्ट” कहना शुरू कर दिया था। यह तथ्य नकार दिया गया था कि भाजपा दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक में भी अच्छा प्रदर्शन कर रही थी और यह भी कि ‘काऊ’ उत्तर और दक्षिण के लिए सामान रूप से धार्मिक और आर्थिक महत्त्व की है।

देश की सांस्कृतिक विभिन्नता को देश में अलगाव का जरिया बनाना नैतिक रूप से तो गलत है ही ऐतिहासिक रूप से भी गलत है। उत्तर और दक्षिण में जितनी सांस्कृतिक भिन्नता है उतनी ही समानता भी है। यह सत्य है कि सामाजिक आर्थिक सूचकांकों में उत्तर भारतीय राज्य कई मामलों में दक्षिण भारतीय राज्यों से पीछे हैं लेकिन इसके ऐतिहासिक कारण हैं। ब्रिटिश शासन में 1857 के विद्रोह के बाद इन राज्यों को ब्रिटिश शासन द्वारा योजनाबद्ध तरीके से पीछे धकेला गया। जब उत्तर भारत अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ने के लिए संघर्ष कर रहा था, अंग्रेज उस वक्त मद्रास में विश्वविद्यालय बना रहे थे। मद्रास विश्वविद्यालय कि स्थापना 5 सितंबर 1857 को, जबकि उत्तर भारत को उसका पहला बड़ा विश्वविद्यालय, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी 23 सितम्बर 1887 को स्थापित हुई। यह उदहारण बताता है कि अंग्रेजों ने उत्तर भारत को योजनाबद्ध तरीके से पीछे किया और ऐसे कई अन्य ऐतिहासिक तथ्य मिलेंगे जिन्हे इतिहासकारों के एक विशेष वर्ग द्वारा जानभूझकर दरकिनार किया जाता है।

यह उत्तर भारतीय राज्यों का दुर्भाग्य है कि देश की आजादी के बाद की अधिकांश सरकारों ने उन्हें कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाले राज्यों की तरह विकसित किया और गुजरात, महाराष्ट्र जैसे राज्यों को आर्थिक गतिविधियों का केंद्र बनाया। वस्तुतः तब की सरकारों ने, औपनिवेशिक आर्थिक ढांचे में बदलाव की कोई कोशिश नहीं की, इस कारण उत्तर भारत के कई राज्य आज भी आर्थिक सामाजिक सूचकांकों में पीछे हैं।

अगर रही बात राजनीतिक सूझबूझ की तो भी हमें दोनों क्षेत्रों में कोई विशेष अंतर नहीं दिखता। आंध्र प्रदेश में नायडू बनाम रेड्डी का राजनीतिक संघर्ष वैसा ही है जैसा उत्तर प्रदेश में जाटव बनाम यादव का हो। जाति आधारित राजनीति दक्षिण भारत और उत्तर भारत में सामान ही है, और अधिकांशतः उन्हीं राजनीतिक दलों द्वारा इसका इस्तेमाल होता है जो विपक्ष में हैं। लिंगायत समुदाय की राजनीति, द्रविड़ राजनीति, केरल की इसाई बनाम मुस्लिम आदि राजनीति वैसी ही है जैसे किसी उत्तर भारतीय राज्य में होती है।
वास्तविकता यह है कि सम्पूर्ण भारत अपने सकारात्मक और नकारात्मक, दोनों पहलुओं में एक समान है। सामाजिक और सांस्कृतिक आधार पर जो भिन्नता दिखती है वह, समानता की अपेक्षा नगण्य है। राहुल गाँधी अपनी ओछी राजनीति के लिए दक्षिण भारत बनाम उत्तर भारत की जो राजनीति कर रहे हैं,वह निराधार और बकवास है।